बगडावत कथा -32
भाटजी कमर में तीतर बांधकर सावर गढ़
में घुसते हैं और परकोटे के दरवाजे पर आकर चौकीदार से कहते हैं कि मैं अजमेर से
आया हूं राजाजी का भाट हूं। द्वारपाल भाटजी को लेकर दियाजी के पास जाता हैं।
चौकीदार जाकर दरबार में जहां दियाजी का दरबार लगा हुआ है, आकर कहता
है कि अजमेर से भाट आया है। और भाटजी दियाजी की कचहरी में जाकर दुआ सलाम करते हैं।
और कहते हैं मैं आपके ननीहाल अजमेर से आया हूं और साथ में राजाजी के कुंवर भी
हमारे साथ शिकार खैलने के वास्ते आये हैं। गांव के बाहर टिमक्या तालाब पर बिराज
रहे हैं और आपको याद किया है और आपको साथ लेकर आने को कहा हैं। सावर के जोधा दिया
जी के साथ शिकार खैलने की इच्छा कुंवर जी ने की है। छोछू भाट दियाजी के नजदीक जाकर
कहते हैं कि आप चालो कुंवर सा के पास, दो चार
गांव और आपकी जागीर में बढ़ा देगें। दरबार में बैठे कालूमीर ने कहा कि दियाजी ये
तो मुझे बगड़ावतों का भाट लगता है। यह सुनकर दियाजी भाला उठाकर छोछू को कहते है
क्यों रे भाट तू बगड़ावतों का भाट है क्या ? भाट बोलता
है कि मैं झूठ बोलूं तो इस जीव की सोगन्ध, मैं अजमेर
के राजा जी, जो आपके मामा जी हैं, उनका भाट
हूं। भाट के झूट बोलते ही एक तीतर मर जाता है। आप दो-चार गांव अपनी जागीर में बढ़वाना चाहो
तो जल्दी चलो, कुंवर सा
आपका इन्तजार करे रहे हैं। चालो दियाजी बुंली घोड़ी पर सवार होकर चालो सुवर का
शिकार करने। दियाजी कहते हैं कि भाट जी बुंली घोड़ी पर तो मैं नहीं बैठूं। वो
मनुष्य को तो अपने पास ही नहीं आने देती है। बांस के धकेले तो खल (खाना) खाती है और नली से पानी पीती है। और १२ मण की जंजीर उसके आगे
पीछे के पांवों में और १२ मण की जंजीर उसके गले में बंधी हुई है और ग्यारह वर्षो
से सूरज के दर्शन तक नहीं किये, बुरां (गुफा) में बंधी
पड़ी है, दियाजी
कहते हैं। भाट बुंली घोड़ी के तो नजदीक जाना ही मुश्किल है, सवारी
कैसे करें ? भाट कहता है मैं सवाई भोज की घोड़ी के बारे में जानता हूं।
उसको थोड़ी दारु पिलानी पड़ेगी और उसको समझाने का काम मेरा। दियाजी को शक होता है।
भाट की और भाला उठाकर कहते है कि भाट तू बगड़ावतों का भाट तो नहीं। भाट सोगन्ध खाकर
कहता है सरकार मैं झूठ बोलूं तो इस जीव की सोगन्ध और दूसरा तीतर मर जाता है।
दियाजी को विश्वास हो जाता है कि भाट तो अजमेर का ही है और भाट को कहते हैं कि जाओ
और बुंली घोड़ी को सवारी के लिये तैयार करो। देखे कर पाते हो कि नहीं। छोछू भाट
दारु की मश्क लेकर वहां आ जाता है जहां सवाई भोज की बुंली घोड़ी बंधीं है और घोड़ी
के साथ वार्ता करता जाता है और उसे मश्क से दारु डालता रहता है फिर उसे वीणा बजाकर
खुश करता है। घोड़ी छोछू भाट को पहचान जाती है। भाट कहता है की है माताजी (बुंली
घोड़ी देवी का अवतार होती है।) आप को थोड़ी देर के वास्ते दियाजी को
अपनी पीठ पर बैठाना पड़ेगा और बाद में गांव के बाहर आते ही हम आप को छुड़ा कर गोठां (चौसला खैड़ा) ले
जायेगें। घोड़ी पहले तो मना करती है कि मैंने अपनी पीठ पर सवाई भोज को बिठाया था अब
उनके दुश्मनों को नहीं बिठा सकती फिर भाट के समझाने से घोड़ी मान जाती है और घोड़ी
की जंजीरे खोलकर और उसका श्रृंगार कर भाट दियाजी की कचहरी के बाहर लेकर आ जाता है। घोड़ी को देखकर फिर दियाजी को शक होता है
कि ये घोड़ी किसी को अपने पास तक नहीं आने देती है और ये भाट कैसे खोल कर ले आया।
दियाजी भाट के ऊपर अपना भाला उठाकर कहते हैं कि भाट तूं कहीं बगड़ावतों का भाट तो
नहीं है ? भाट कमर में बंधे तीतर पर हाथ लगाकर सोगन्ध खाता है कि मैं
झूठ बोलूं तो इस जीव की सोगन्ध और तीसरा तीतर मर जाता है। दियाजी को विश्वास हो
जाताहै कि झूठ बोलता तो अभी ये भाट यहीं मर जाता। और दियाजी बुंली घोड़ी पर सवार
होकर पहले अपने महलों में आते हैं और रानियों से (दियाजी के चार रानियां होती है।) कहते हैं
कि मैं अजमेर से पधारे कुंवर के साथ शिकार खैलने जा रहा हूं। दियाजी जैसे ही रवाना
होने के लिये तैयार होते हैं अपशगुन होने लग जाते है और रानियां उन्हें जाने के
लिये मना करती है कि धणीजी आप नहीं जाओ शगुन अच्छे नहीं है। और दियाजी वापस घोड़े
से नीचे उतर जाते हैं। भाट देखता हैं कि बड़ी मुश्किल से तो
चलने को तैयार हुए और ये फिर रुक गये। भाट दियाजी से कहते हैं सरकार कुंवर सा आपका
इन्तजार कर रहे हैं। आप चलो आपकी जागीरी में दो-चार गांव बढ़ा देगें। शगुन वैसे ही
अच्छे हो जायेगें। और दियाजी घोड़े पर चढ़कर वापस चलने
लगते हैं। रानियां फिर से दासियों के हाथ कहलवाती है कि धणी जी अभी मत जाओ शगुन
अच्छे नहीं है। आज खाली घड़ा पनिहारियां मिली और काला वलदा घोड़ा सामने से आ रहा है।
शगुन खराब हो रहे हैं। भाट कहता है दियाजी बुरा नहीं मानो तो एक बात कहूं, सरकार
मेरे भी दो औरतें हैं और यदि मैं कहीं जाता हूं तो औरतें जाने के लिये मना करती
हैं तो मैं तो उनको पीट देता हुं। शगुन अच्छे हो जाते है। अभी आया था तब भी ऐसा ही
हुआ और मैं तो पीट कर आया शगुन वैसे हीअच्छे हो गये। दियाजी भाट के बहलावे में आ
जाते हैं और महलों में जाकर घोड़ी के ताजणे से अपनी रानियों को पीटते हैं। रानियां
रास्ता छोड़ देती हैं। दियाजी बुंली घोड़ी पर सवार होकर चल पड़ते हैं। और भाट से कहते
हैं भाट कहीं तूं झूठ तो नहीं बोल रहा है, कहीं तू
बगड़ावतों का भाट तो नहीं भाट जल्दी से बोलता है सरकार झूठ बोलूं तो इस जीव की
सोगन्ध और चौथा तीतर भी मर जाता है। और भाट सोचता है कि यदि अब झूठ बोलना पड़ा तो
मैं तो मर ही जाउंगा।
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देवनारायण कथा