Smile 3.0 Solution DATE :- 23/8/2021
CLASS -12 हिन्दी अनिवार्य
रघुवीर सहाय (केमरे में बंद अपाहिज) भाग -1
कवि परिचय
जीवन परिचय-
- जन्म लखनऊ (उ०प्र०) में सन् 1929 में हुआ था।
- रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील कवि हैं।
- प्रारंभ में ये पेशे से पत्रकार थे।
- इन्होंने प्रतीक अखबार में सहायक संपादक के रूप में काम किया।
- कुछ समय तक हैदराबाद से निकलने वाली पत्रिका कल्पना और
- उसके बाद दैनिक नवभारत टाइम्स तथा दिनमान से संबद्ध रहे।
- साहित्य-सेवा के कारण इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- इनका देहावसान सन 1990 में दिल्ली में हुआ।
रचनाएँ-रघुवीर सहाय नई कविता के कवि हैं। इनकी कुछ
आरंभिक कविताएँ अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक (1935) में प्रकाशित हुई। इनके महत्वपूर्ण
काव्य-संकलन हैं-सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के
विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसी, लोग भूल गए हैं आदि।
काव्यगत
विशेषताएँ-रघुवीर सहाय ने अपने काव्य में आम आदमी की पीड़ा व्यक्त की है।
ये साठोत्तरी काव्य-लेखन के सशक्त, प्रगतिशील व
चेतना-संपन्न रचनाकार हैं। इन्होंने सड़क, चौराहा, दफ़्तर, अखबार, संसद, बस, रेल और बाजार की बेलौस भाषा में कविता लिखी।
इन्होंने
कविता को एक कहानीपन और नाटकीय वैभव दिया। रघुवीर सहाय ने बतौर पत्रकार और कवि
घटनाओं में निहित विडंबना और त्रासदी को देखा। इन्होंने छोटे की महत्ता को
स्वीकारा और उन लोगों व उनके अनुभवों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया जिन्हें समाज
में हाशिए पर रखा जाता है। इन्होंने भारतीय समाज में ताकतवरों की बढ़ती हैसियत व सत्ता
के खिलाफ़ भी साहित्य और पत्रकारिता के पाठकों का ध्यान खींचा।
भाषा-शैली-रघुवीर सहाय ने अधिकतर बातचीत
की शैली में लिखा। ये अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचते रहे हैं। भयाक्रांत अनुभव
की आवेग रहित अभिव्यक्ति भी इनकी कविता की अन्यतम विशेषता है। इन्होंने कविताओं
में अत्यंत साधारण तथा अनायास-सी प्रतीत होने वाली शैली में समाज की दारुण
विडंबनाओं को व्यक्त किया है। साथ ही अपने काव्य में सीधी, सरल और सधी भाषा का प्रयोग किया
है।
कविता का सार
प्रतिपादय-कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को ‘लोग भूल गए हैं’ काव्य-संग्रह से लिया गया है।
इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ-साथ
दूर-संचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया है। किसी की पीड़ा को दर्शक
वर्ग तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरों
को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए। आज विडंबना यह है कि जब पीड़ा को परदे
पर उभारने का प्रयास किया जाता है तो कारोबारी दबाव के तहत प्रस्तुतकर्ता का रवैया
संवेदनहीन हो जाता है। यह कविता टेलीविजन स्टूडियो के भीतर की दुनिया को समाज के
सामने प्रकट करती है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों की तरफ इशारा करती है जो दुख-दर्द, यातना-वेदना आदि को बेचना चाहते
हैं।
सार-इस कविता में दूरदर्शन के संचालक स्वयं को शक्तिशाली बताते
हैं तथा दूसरे को कमजोर मानते हैं। वे विकलांग से पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? आप अपाहिज क्यों हैं? आपको इससे क्या दुख होता है? ऊपर से वह दुख भी जल्दी बताइए
क्योंकि समय नहीं है। प्रश्नकर्ता इन सभी प्रश्नों के उत्तर अपने हिसाब से चाहता
है। इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा जाता है। प्रश्नकर्ता अपने कार्यक्रम को रोचक
बनाने के लिए उसे रुलाने की कोशिश करता है ताकि दर्शकों में करुणा का भाव जाग सके।
इसी से उसका उद्देश्य पूरा होगा। वह इसे सामाजिक उद्देश्य कहता है, परंतु ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ वाक्य से उसके व्यापार की पोल
खुल जाती है।
Smile 3.0 Solution DATE :- 23/8/2021
प्रश्न .1. सप्तक कौन से कवि
द्वारा संपादित है ? रघुवीर सहाय कौन से सप्तक के कवि हैं?
उत्तर सप्तक अज्ञेय द्वारा
सम्पादित है और दूसरा सप्तक के कवि है ।
प्रश्न .2. कैमरे में बंद
अपाहिज कौन से संग्रह से ली गई है ?
उत्तर कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को ‘लोग भूल गए हैं’ काव्य-संग्रह से लिया गया है।
प्रश्न .3. "एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं।"
में दोनों कौन-कौन हैं ?
उत्तर दर्शकों व अपाहिज
प्रश्न .4. "बस थोड़ी सी कसर
रह गई "क्या कसर रही ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर कवि
अनुसार कार्यक्रम
का उदेश्य अपाहिजों के दुःख दर्द को सम्प्रेषित करना था ।थोड़ी सी
कसर रह गई अर्थात रोने का द्रश्य नही आ पाया । संचालक अपने कार्यक्रम को सफल
बनाने के लिए अपंग व्यक्ति को विभिन्न प्रकार से रुलाने का प्रयास करता है।
प्रश्न .5. कविता में बीच-बीच
में कथ्य लिखे गए हैं, यह कौन सी शैली
कहलाती है ?
उत्तर यह कविता मीडिया के व्यापार व कार्यशैली पर
व्यंग्य करती है। व्यंग्यात्मक शेली जिसमे भाषा सपाट बयानी या साधारण
प्रयुक्त हुई है ।