🌺 राजस्थान के लोकदेवता : देवनारायण जी 🌺

🌺 राजस्थान के लोकदेवता : देवनारायण जी 🌺


🌺 राजस्थान के लोकदेवता : देवनारायण जी 🌺

राजस्थान की पावन धरती पर अनेक लोकदेवताओं ने जन्म लिया, जिनमें देवनारायण जी का स्थान अत्यंत विशेष है 🙏। सम्पूर्ण राजस्थान में इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है।

मुख्य रूप से ये गुर्जर समाज के आराध्य देव हैं।
✨ ये मेवाड़ शासक महाराणा साँगा के भी इष्ट देव थे।
✨ इसी कारण महाराणा साँगा ने देवडूंगरी (चित्तौड़गढ़) में देवनारायण जी का भव्य मंदिर बनवाया था 🛕।

👶 बाल्यकाल

देवनारायण जी का जन्म 1243 ई. के लगभग हुआ था।
🔹 इनके पिता भोजा बगड़ावत और माता सेंदु गूजरी थीं।
🔹 जन्म के समय इनका नाम उदयसिंह था।

⚔️ इनके पिता भोजा बगड़ावत, भिनाय के शासक से संघर्ष में अपने 23 भाइयों सहित वीरगति को प्राप्त हुए।
🛡️ उस समय बालक देवनारायण जी की रक्षा हेतु माता सेंदु उन्हें लेकर मालवा चली गईं।

⚔️ वीरता गाथा

🔥 मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में देवनारायण जी पिता की मृत्यु का बदला लेने राजस्थान लौटे।
💍 मार्ग में धारा नगरी में जयसिंह देव परमार की पुत्री पीपलदे से उनका विवाह हुआ।

🐄 भिनाय पहुँचकर गायों की रक्षा हेतु हुए संघर्ष में उन्होंने भिनाय ठाकुर का वध किया।
➡️ इसी कारण देवनारायण जी को गौरक्षक लोकदेवता के रूप में भी पूजा जाता है।

🕌 उन्होंने मुस्लिम आक्रमणकारियों से युद्ध करते हुए
📍 देवमाली (ब्यावर) में देह त्याग किया।

🎶 देवनारायण जी की फड़ – “देवजी की फड़”

📜 राजस्थान की सबसे लंबी फड़ मानी जाती है।
🎵 फड़ वाचन में प्रमुख वाद्य यंत्र – “जन्तर”
🎤 गुर्जर देवजी और बगड़ावत समुदाय के लोग ‘बगड़ावत’ काव्य द्वारा यशोगान करते हैं।

📮 भारत सरकार ने
🗓️ 2 सितम्बर 1992 को
💰 ₹5 का डाक टिकट देवनारायण जी की फड़ पर जारी किया।

🕯️ किंवदंती है कि यदि यह फड़ हर रात तीन पहर गाई जाए, तो इसे पूर्ण होने में छः माह लगते हैं।

📌 देवनारायण जी से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

🔹 अन्य नाम – देवजी
🔹 स्वरूप – विष्णु के अवतार
🔹 ज्ञान – आयुर्वेद के ज्ञाता

📅 जन्म – 1243 ई. (माघ शुक्ल सप्तमी)
📍 जन्म स्थान – मालासेरी डूंगरी, आसींद (भीलवाड़ा)

👨 पिता – भोजा (बगड़ावत प्रमुख)
👩 माता – सेंदु गूजरी
👩‍❤️‍👨 पत्नी – पीपलदे

🐍 कुल – बगड़ावत (नागवंशीय गुर्जर)
🐎 घोड़ा – लीलागर

🛕 प्रमुख पूजा स्थल

📍 आसींद (भीलवाड़ा) – मुख्य मंदिर
📍 देवधाम जोधपुरिया (निवाई, टोंक)
📍 देवमाली (भीलवाड़ा)
📍 देवमाली (ब्यावर)
📍 देवडूंगरी (चित्तौड़गढ़)

🌿 आसींद मंदिर में नीम के पत्तों का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

🎉 मेला एवं परंपराएँ

🎊 भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को
📍 आसींद (भीलवाड़ा) में विशाल मेला लगता है।

🥛 इस दिन गुर्जर समाज दूध नहीं बेचता, यह विशेष परंपरा मानी जाती है।

🧱 पूजा प्रतीक

✨ देवनारायण जी के मंदिरों (देवरों) में
❌ मूर्ति के स्थान पर
🧱 ईंटों की पूजा की जाती है – जो लोक आस्था का अद्भुत उदाहरण है।

🔔 निष्कर्ष

देवनारायण जी केवल एक लोकदेवता नहीं, बल्कि
🌿 गौरक्षा, वीरता, न्याय और लोकआस्था के प्रतीक हैं।
राजस्थान की लोक संस्कृति में उनका स्थान अमर है 🙏।


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