जीवन मंत्र:-अपने काम को श्रेष्ठ समझें, लेकिन दूसरों के काम को कम समझना गलत बात है!
प्रसंग- देवताओं के राजा
इंद्र ने एक बार बहुत सुंदर महल बनवाया। वह महल इसलिए भी खास था, क्योंकि उसे देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने बनाया था।
देवराज इंद्र सभी को बुला-बुलाकर अपना महल दिखाते और बढ़ा-चढ़ाकर महल के बारे में
बताते। जब सभी उस महल की तारीफ करते तो इंद्र का अहंकार बढ़ जाता।
धीरे-धीरे इंद्र ने ये कहना शुरू कर दिया कि पूरी
दुनिया में मेरे महल से सुंदर महल नहीं है। एक दिन उन्होंने देवर्षि नारद को
बुलाया और कहा, 'आप तो पूरी दुनिया में घूमते हैं, बहुत कुछ देखते हैं। मेरा ये महल देखिए, और बताइए, इससे भी श्रेष्ठ महल
अब तक कहीं और नजर आया है?'
नारदजी ने कहा, 'मैं इसके बारे
में क्या जानकारी दूंगा। मैं घूमता जरूर हूं, लेकिन सही
जानकारी आपको लोमश ऋषि दे पाएंगे, क्योंकि उनकी
उम्र एक हजार साल है। अच्छा तो यही होगा कि आप उनसे पूछें।'
देवराज इंद्र ने लोमश ऋषि को बुलवाया और अपना महल
दिखाते हुए कहा, 'क्या आपने मेरे महल जैसा कोई दूसरा महल देखा है?'
लोमश ऋषि बोले, 'देवराज, मैंने मेरे जीवन में अनेक इंद्र देखे हैं। एक से एक राजा
देखे हैं। उनके महल भी देखे हैं और वे सभी इससे भी कहीं सुंदर थे, लेकिन अब वे सारे महल नष्ट हो चुके हैं। यही दुनिया का क्रम
है। तुम जिस महल पर अहंकार कर रहे हो, ये भी एक दिन
फीका होगा और खत्म हो जाएगा। इस दुनिया में अंतिम और दूसरा कुछ नहीं होता है।
तुम्हें पहले और श्रेष्ठ होने का घमंड हो गया है।'
शिक्षा - लोमश ऋषि ने
इंद्र को समझाया, 'ये दुनिया बहुत बड़ी है। दूसरों से तुलना करो, लेकिन अहंकार न करो। अपना काम श्रेष्ठ हो सकता है, लेकिन दूसरों के काम को कम समझना गलत है।'