भगवान धन्वंतरि के हाथों में सोने के कलश में अमृत था, इसलिए बर्तन और सोना खरीदने की परंपरा
· धनतेरस से पांच दिनों का
दीपोत्सव पर्व शुरू हो गया है। आज हर तरह की खरीदारी, निवेश और नई शुरुआत के लिए पूरे दिन शुभ मुहूर्त रहेंगे।
त्रिपुष्कर योग बनने से तीन गुना फायदा मिलने की भी संभावना है।
· धनतेरस पर सोना-चांदी और बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इस दिन शाम को प्रदोष काल में भगवान धन्वंतरि के साथ कुबेर और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। अकाल मृत्यु से बचने और अच्छी सेहत की कामना से घर के बाहर यमराज के लिए दक्षिण दिशा में एक बत्ती का दीपक जलाया जाता है।
तीन गुना फायदा
देने वाला योग
धनतेरस पर्व पर त्रिपुष्कर योग
बन रहा है। यानी इस शुभ योग में किए गए निवेश, खरीदारी और शुरुआत में तीन गुना
फायदा मिलेगा। ये सुबह 6.35 से दोपहर तकरीबन 12 बजे तक रहेगा। लेकिन खरीदारी का अबूझ मुहूर्त होने के कारण खरीदी
के लिए पूरा दिन शुभ है। आज चंद्रमा अपने ही नक्षत्र में है और उस पर बृहस्पति की
दृष्टि पड़ रही है। ये स्थिति भी सुख-समृद्धि और शुभ फल देने वाली रहेगी।
सोना और बर्तन
खरीदने की परंपरा क्यों
समुद्र मंथन करने पर भगवान
धन्वंतरि हाथ में सोने का कलश लेकर प्रकट हुए। जिसमें अमृत भरा हुआ था। उनके दूसरे
हाथ में औषधियां थी और उन्होंने आयुर्वेद का ज्ञान दिया। यही वजह है कि इस दिन
आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
धन्वंतरि के हाथ में सोने का कलश था इसलिए इस दिन बर्तन
और सोना खरीदने की परंपरा शुरू हुई। बाद में आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए
चांदी और अन्य धातुओं की खरीदी होने लगी। तब से परिवार में समृद्धि बनाए रखने की
कामना से इस दिन चांदी के सिक्के,
गणेश व लक्ष्मी जी की मूर्तियां
और ज्वेलरी की खरीदारी की जाती है। साथ ही पीतल, कांसे, स्टील व तांबे के बर्तन भी खरीदने की परंपरा है।
समुद्र मंथन का फल, धन्वंतरि...
देवताओं और दानवों ने समुद्र
मंथन किया था। जिससे लक्ष्मी,
चंद्रमा और अप्सराओं के बाद
त्रयोदशी तिथि पर धन्वंतरि हाथ में अमृत कलश लेकर निकले, यानी समुद्र मंथन का फल इसी दिन मिला था। इसलिए दीपावली का उत्सव
यहीं से शुरू हुआ। वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है कि अमावस्या को भगवान
विष्णु-लक्ष्मी जी का विवाह हुआ था। इसलिए दीपावली पर लक्ष्मी पूजा होती है।
प्रदोष काल में
लक्ष्मी जी और कुबेर पूजा
विद्वानों के मुताबिक, धनतेरस पर प्रदोष काल में भगवान धन्वंतरि के साथ लक्ष्मी जी और
कुबेर की भी पूजा करनी चाहिए। प्रदोष काल शाम 5.35 से रात 8.10 तक रहेगा। इसी समय यम के लिए दीपदान करने की भी परंपरा है।
1. भगवान धन्वंतरि को पूजा सामग्री
के साथ औषधियां चढ़ानी चाहिए। औषधियों को प्रसाद के तौर पर खाने से बीमारियां दूर
होती हैं।
2. धन्वंतरि को कृष्णा तुलसी, गाय का दूध और उससे बने मक्खन का भोग लगाना चाहिए।
3. पूजा के दीपक में गाय के घी का
इस्तेमाल करना चाहिए।
यम के लिए
दीपदान...
स्कंद पुराण के मुताबिक, धनतेरस पर यम देव के लिए दीपदान करने से परिवार में बीमारी नहीं
आती और अकाल मृत्यु का डर भी नहीं रहता।
सूर्यास्त के बाद यमराज के लिए दीपदान के लिए आटे का
दीपक बनाएं। उसमें सरसों या तिल का तेल डालकर घर के बाहर दक्षिण दिशा में रखना
चाहिए। ऐसा करते हुए यमराज से परिवार की लंबी उम्र की कामना करनी चाहिए।