राजस्थान माध्यमिक बोर्ड परीक्षा-2022: कक्षा -10 पाठ्यपुस्तक आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर-अध्याय -01 सूरदास के पद
क्षितिज भाग -2 (काव्य – खंड)
अध्याय -01 सूरदास के पद
जीवन परिचय-
- सूरदास का जन्म सन 1478 में हुआ था ।
- एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था।
- दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है।
- महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
- वह मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट में रहते थे और श्रीनाथजी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे।
रचनाएँ-
- सूरसागर - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।
- सूरसारावली
- साहित्य-लहरी - जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं।
- सूरदास को वात्सल्य और श्रृंगार रस का श्रेष्ठ कवि माना जाता हैं। इनकी कविताओं में बृज भाषा का निखरा हुआ रूप मिलता है।
- सूरसागर का मुख्य वर्ण्य विषय श्री कृष्ण की लीलाओं का गान रहा है।
- सूरसारावली में कवि ने जिन कृष्ण विषयक कथात्मक और सेवा परक पदों का गान किया उन्ही के सार रूप में उन्होंने सारावली की रचना की है।
- सहित्यलहरी मैं सूर के दृष्टिकूट पद संकलित हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
सूर ने वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रसों को मुख्य रूप से अपनाया है। सूर ने अपनी कल्पना और प्रतिभा के सहारे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है। बालकों की चपलता,
स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप का चित्रण किया है। बाल-कृष्ण की एक-एक चेष्टा के चित्रण में कवि ने कमाल की होशियारी एवं सूक्ष्म निरीक्षण का परिचय दिया है़-
मैया कबहिं बढैगी चौटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
सूर के कृष्ण प्रेम और माधुर्य प्रतिमूर्ति है। जिसकी अभिव्यक्ति बड़ी ही स्वाभाविक और सजीव रूप में हुई है।
सूरदास के पदों का सार
यहां सूरदास के “सूरसागर के भ्रमरगीत” से चार पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों को सन्देश भेजा था। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया । लेकिन गोपियाँ ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थी। इसी कारण उन्हें उद्धव का यह संदेश पसंद नहीं आया। और वो उद्धव पर तरह –
तरह के व्यंग बाण छोड़ने लगी।
- प्रथम पद में जिसमें गोपियाँ श्री कृष्ण के परम् सखा उद्धव से अपने मन की व्यथा को व्यंग रूप में कह रही हैं।
- द्वितीय पद में गोपियां उद्धव से कहती हैं कि कृष्ण के गोकुल से चले जाने के बाद उनके मन की सारी अभिलाषाएं मन में ही रह गई है। वो कृष्ण से अपने मन की बात कहना चाहती थी। लेकिन अब वो कभी भी अपने मन की बात कृष्ण से कह नहीं पाएंगी।
- तीसरे पद में गोपियां उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव ! जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजों से लकड़ी को मजबूती के साथ पकड़े रहता है। लकड़ी को ही अपने जीवन का आधार समझ कर उसे कभी गिरने नहीं देता हैं। ठीक उसी प्रकार कृष्ण भी हम गोपीयों के जीने का आधार है।
- अंतिम पद में गोपियां कहती हैं कि उद्धव तो पहले से ही चालाक है और कृष्ण के द्वारा उसे राजनीति का पाठ पढ़ाने से वह और भी चतुर हो गया है। अब वह हमें छल-कपट के माध्यम से बड़ी चतुराई के साथ श्री कृष्ण का योग संदेश सुना रहा है।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
सप्रसंग व्याख्या
संदेसनि मधुबन कूप भरे।
अपने तो पठवत नहीं मोहन, हमरे फिरि न फिरे॥
जिते पथिक पठए मधुबन कौं, बहुरि न सोध करे।
कै वै स्याम सिखाइ प्रमोधे, कै कहुँ बीच मरे॥
कागद गरे मेघ, मसि खूटी, सर दवे लागि जरे॥
सेवक सूर लिखन कौ आंधौ, पलक कपाट अरे॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुतं पद कवि सूरदास के ‘सूर सागर’ काव्यग्रन्थ में संकलित है। यह ‘भ्रमरगीत’ नामक प्रसंग से लिया गया है। इस पद
में गोपियाँ मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण को अपने द्वारा भिजवाए गए संदेशों का उत्तर
न मिलने पर, चुटीले व्यंग्य बाण चला रही हैं।
व्याख्या-गोपियाँ श्रीकृष्ण के उपेक्षापूर्ण
व्यवहार पर चोट करते हुए कह रही हैं कि उन्होंने अब तक इतने संदेश श्रीकृष्ण के
पास भिजवाए हैं कि उनसे मथुरा के सारे कुएँ भर गए होंगे। मथुरा के जन-जन को हमारे संदेशों का पता चल गया होगा। श्रीकृष्ण जान बूझकर
हमारी उपेक्षा कर रहे हैं। वे अपने संदेश तो भेजते ही नहीं। हमारे द्वारा संदेश ले
गए लोग भी इधर लौटकर नहीं आए। ऐसा लगता है कि कृष्ण ने उनको सिखाकर (बहकाकर) अपने साथ मिला लिया है। लौटकर नहीं
आने दिया है या फिर वे बेचारे कहीं बीच में ही मर गए। यदि ऐसा न होता तो वे अवश्य
लौटकर आए होते। ऐसा भी हो सकता है कि मथुरा के सारे कागज वर्षा में भीगकर गल गए
हों या फिर वहाँ की सारी स्याही ही समाप्त हो गई हो ? हो सकता है वहाँ कलम बनाने के लिए काम
आने वाले सरकंडे ही वन की आग में जलकर भस्म हो गए हों। यह भी हो सकता है कि कृष्ण
का पत्रों का उत्तर लिखने वाला सेवक ही अंधा हो गया हो। उसके नेत्रों के पलकरूपी
किवाड़ ही न खुल पा रहे हों। इनमें से कोई न कोई कारण अवश्य रहा होगा, तभी हमारे संदेशों का उत्तर हमें अब
तक नहीं मिला।
विशेष-
1. पद की एक-एक पंक्ति गोपियों के आक्रोश और व्यंग्य प्रहार से भरी हुई है।
2. गोपियों को विश्वास हो गया है कि वे
प्रेम के नाम पर कृष्ण द्वारा छली गई हैं।
3. भाषा और शैली व्यंग्य के लिए सर्वथा
उपयुक्त है।
4. ‘स्याम सिखाइ’ तथा ‘मेघ, मसि’ में अनुप्रास’ पलक कपाट’ में रूपक और पूरे पद में ‘संदेह’ अलंकार का चमत्कार है।
ऊधौ मन माने की बात।
दाख छुहारी छांड़ि अमृत फल, बिषकीरा बिष खात॥
ज्यों चकोर कों देई कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।
मधुप करत घर फोरि काठ मैं, बंधत कमल के पात॥
ज्य पतंग हित जानि आपनो, दीपक सौं लपटात।
सूरदास जाको मन जासौ , सोई ताहि सुहात॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद कवि सूरदास जी द्वारा रचित है। यह उनके काव्यग्रन्थ ‘सूरसागर’ से संकलित है। यह सूरसागर के ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से लिया गया है।
व्याख्या-उद्धव द्वारा कृष्ण को भुलाकर योग
साधना करने का उपदेश दिए जाने पर, गोपियाँ कह रही हैं-हे उद्धव! कृष्ण जैसे भी हैं, हमें प्रिय हैं। यह तो मन के मानने की बात है। जिससे मन लग जाय वही
प्यारा लगता है। उसे व्यक्ति कष्ट पाकर भी प्रेम करता है, अपनाता है। गोपियाँ कहती हैं कि संसार
में अंगूर और छोहारी जैसे अमृत के समान मधुर फल हैं किन्तु विष का कीट इन सबको
ठुकराकर विष को ही खाता है। उसका मन विष से लगा हुआ है। चाहे चकोर को कोई सुगंधित
और शीतल कपूर चुगाए पर वह उसे त्यागकर झुलसा देने वाले अंगारे को ही खाता है।
भौंरा अपना घर बनाने के लिए कठोर काठ में भी छेद कर देता है किन्तु वही कमल की कोमल पंखुड़ियों के
बीच बन्द हो जाता है। उसे काटकर बाहर नहीं निकलता। इसी प्रकार दीपक से प्रेम करने
वाला पतंगा दीपक की लौ से लिपटने में ही अपनी भलाई मानकर उसमें भस्म हो जाता है। बात
वही है कि जिससे जिसका मन लगा होता है, उसे वही सुहाता है। हमारा मन श्रीकृष्ण से लगा है। हमें वही सुहाते
हैं। आपके योग को स्वीकार कर पाना हमारे वश की बात नहीं।
विशेष-
1. सरस ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
2. शैली भावात्मक है।
3. उद्धव के उपदेशों और तर्को का गोपियों
ने अपनी प्रेम-विवशता से नम्रतापूर्ण खंडन किया है।
4. अनुप्रास, उदाहरण, दृष्टांत आदि अलंकार हैं।
5. वियोग शृगार रस की रचना है।
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प्रश्नोत्तर
प्रश्न1.उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर-उद्धव के व्यवहार की तुलना दो
वस्तुओं से की गई है
· कमल के पत्ते से जो पानी में रहकर भी
गीला नहीं होता है।
· तेल में डूबी गागर से जो तेल के कारण
पानी से गीली नहीं होती है।
प्रश्न 2.गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर-गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों
के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं ।
1.
उन्होंने कहा कि उनकी प्रेम-भावना उनके मन में ही रह गई है। वे न
तो कृष्ण से अपनी बात कह पाती हैं, न अन्य किसी से।
2.
वे कृष्ण के आने की इंतज़ार में ही जी रही थीं, किंतु कृष्ण ने स्वयं न आकर योग-संदेश भिजवा दिया। इससे उनकी
विरह-व्यथा और अधिक बढ़ गई है।
3.
वे कृष्ण से रक्षा की गुहार लगाना चाह रही थीं, वहाँ से प्रेम का संदेश चाह रही थीं। परंतु वहीं से योग-संदेश की
धारा को आया देखकर उनका दिल टूट गया।
4.
वे कृष्ण से अपेक्षा करती थीं कि वे उनके प्रेम की मर्यादा को
रखेंगे। वे उनके प्रेम का बदला प्रेम से देंगे। किंतु उन्होंने योग-संदेश भेजकर
प्रेम की मर्यादा ही तोड़ डाली।
प्रश्न 3.‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी
मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर-प्रेम की यही मर्यादा है कि प्रेमी और
प्रेमिका दोनों प्रेम को निभाएँ। वे प्रेम की सच्ची भावना को समझें और उसकी
मर्यादा की रक्षा करें। परंतु कृष्ण ने गोपियों से प्रेम निभाने की बजाय उनके लिए
नीरस योग-संदेश भेज दिया, जो कि
एक छलावा था, भटकाव
था। इसी छल को गोपियों ने मर्यादा का उल्लंघन कहा है।
प्रश्न 4.उद्धव
द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर-श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ पहले से
विरहाग्नि में जल रही थीं। वे श्रीकृष्ण के प्रेम-संदेश और उनके आने की प्रतीक्षा
कर रही थीं। ऐसे में श्रीकृष्ण ने उन्हें योग साधना का संदेश भेज दिया जिससे उनकी
व्यथा कम होने के बजाय और भी बढ़ गई । इस तरह उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेशों
ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया।
प्रश्न 5.कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त
किया है?
उत्तर-गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपनी
अनन्य भक्ति की अभिव्यक्ति निम्नलिखित रूपों में करती हैं
· वे अपनी स्थिति गुड़ से चिपटी
चींटियों जैसी पाती हैं जो किसी भी दशा में कृष्ण प्रेम से दूर नहीं रह सकती हैं।
· वे श्रीकृष्ण को हारिल की लकड़ी के
समान मानती हैं।
· वे श्रीकृष्ण के प्रति मन-कर्म और वचन
से समर्पित हैं।
· वे सोते-जागते, दिन-रात कृष्ण का जाप करती हैं।
· उन्हें कृष्ण प्रेम के आगे योग संदेश
कड़वी ककड़ी जैसा लगता है।
प्रश्न 6.गोपियों ने उधव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर-गोपियों ने उद्धव को कहा है कि
वे योग की शिक्षा ऐसे लोगों को दें जिनके मन स्थिर नहीं हैं। जिनके हृदयों में
कृष्ण के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। जिनके मन में भटकाव है, दुविधा है, भ्रम है और चक्कर हैं।
प्रश्न 7.संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ
बताइए?
उत्तर-सूरदास के पदों के आधार पर
भ्रमरगीत की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1.
सूरदास के भ्रमरगीत में विरह व्यथा का मार्मिक वर्णन है।
2.
इस गीत में सगुण ब्रह्म की सराहना है।
3.
इसमें गोपियों के माध्यम से उपालंभ, वाक्पटुता, व्यंग्यात्मकता का भाव मुखरित हुआ है।
4.
गोपियों का कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम का प्रदर्शन है।
5.
उद्धव के ज्ञान पर गोपियों के वाक्चातुर्य और प्रेम की विजय का
चित्रण है।
6.
पदों में गेयता और संगीतात्मकता का गुण है।
Laxmi
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