राजस्थान माध्यमिक बोर्ड परीक्षा-2022: कक्षा -10 हिंदी व्याकरण महत्वपूर्ण नोट्स
व्याकरण- कुल 12 अंक
क्रिया , विशेषण ,कारक ,काल,वाच्य, समास , वाक्य शुद्धि , मुहावरे, लोकोक्तिया
क्रिया
क्रिया’ का अर्थ होता है-करना। प्रत्येक भाषा के
वाक्य में क्रिया का बहुत महत्त्व होता है। प्रत्येक वाक्य क्रिया से पूरा होता
है। क्रिया किसी कार्य के करने या होने को दर्शाती है। क्रिया को करने वाला कर्ता
कहलाता है।
जिन
शब्दों से किसी काम के करने या होने का पता चले, वे
शब्द क्रिया कहलाते
हैं; जैसे-पढ़ना, खेलना, खाना, सोना
आदि।
धातु – क्रिया
का मूल रूप धातु’ कहलाता है। इनके साथ कुछ
जोड़कर क्रिया के सामान्य रूप बनते हैं। जैसे-हँस, बोल, पढ़-हँसना, बोलना, पढ़ना।
मूल
धातु में ‘ना’ प्रत्यय लगाने से क्रि या का सामान्य रूप बनता है।
कर्म
के आधार पर क्रिया के दो भेद होते हैं।
- सकर्मक क्रिया
- अकर्मक क्रिया
वाक्य में क्रिया के होने के समय कर्ता का प्रभाव
अथवा फल जिस व्यक्ति अथवा वस्तु पर पड़ता है, उसे
कर्म कहते हैं, जैसे
नेहा(कर्ता)
दूध पी(कर्म) रही है।(क्रिया)
1. सकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है, उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे-लड़की पत्र लिख रही है।
सकर्मक
क्रियाओं के दो भेद हैं
एककर्मक
क्रिया
द्विकर्मक
क्रिया
(i) एककर्मक क्रिया – जिन
सकर्मक क्रियाओं में केवल एक ही कर्म होता है, वे
एककर्मक सकर्मक क्रिया कहलाती है; जैसे-नेहा
झाडू लगा रही है।
इस
उदाहरण में झाड़ कर्म है और लगा रही हे क्रिया। क्रिया का फल सीधा कर्म पर पड़ रहा
है। अतः यहाँ एककर्मक क्रिया है।
(ii) द्विकर्मक क्रिया – जिन
सकर्मक क्रियाओं में एक साथ दो-दो कर्म होते हैं, वे द्विकर्मक
सकर्मक क्रिया कहलाते हैं; जैसे-ओजस्व अपने भाई के
साथ क्रिकेट खेल रहा है।
2. अकर्मक क्रिया –
जिस
क्रिया में कर्म नहीं पाया जाता है। वह अकर्मक क्रिया कहलाती है; जैसे-प्रणव इंजीनियर है।
संरचना के आधार पर क्रिया के.भेद
संरचना के आधार पर क्रिया के चार भेद होते हैं
संयुक्त
क्रिया
नामधातु
क्रिया
प्रेरणार्थक
क्रिया
पूर्वकालिक
क्रिया।
(i) संयुक्त क्रिया – दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर जब किसी एक पूर्ण
क्रिया का बोध कराती हैं, तो उन्हें संयुक्त क्रिया
कहते हैं; जैसे-बच्चे दिनभर खेलते रहते हैं।
(ii) नामधातु क्रिया –
संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण आदि शब्दों से बनने वाली क्रिया
को नामधातु क्रिया कहते हैं; जैसे-बात
से बतियाना, अपना से अपनाना, नरम से नरमाना।
(iii) प्रेरणार्थक क्रिया – जिस क्रिया को कर्ता स्वयं न करके दूसरों को करने की
प्रेरणा देता है, उसे प्रेरणार्थक क्रिया
कहते हैं। प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं।
प्रेरक
कर्ता-प्रेरणा देने वाला, जैसे–मालिक, अध्यापिका
आदि।
प्रेरित
कर्ता-प्रेरित होने वाला अर्थात जिसे प्रेरणा दी जा रही है; जैसे–नौकर, छात्र आदि।
(iv) पूर्वकालिक क्रिया – जिस वाक्य में मुख्य क्रिया से पहले यदि कोई क्रिया आ
जाए, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती हैं।
पूर्वकालिक
क्रिया का शब्दिक अर्थ है-पहले समय में हुई।
पूर्वकालिक
क्रिया मूल धातु में कर अथवा करके लगाकर बनाई जाती है; जैसे-चोर सामान चुराकर भाग गया। छात्र ने पुस्तक से
देखकर उत्तर दिया।
बहुविकल्पी
प्रश्न
1. ‘क्रिया’ को
कहते हैं
(i) जब काम को करना पाया जाए।
(ii) जब काम को होना पाया जाए।
(iii) जब काम को करना या होना पाया जाए।
(iv) जब कर्ता कुछ कहना चाहे।
2. कर्म के आधार पर क्रिया के भेद होते हैं
(i) दो
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच
3. जिस क्रिया में कर्म होता है वह कहलाती है
(i) अकर्मक क्रिया
(ii) द्विकर्मक क्रिया
(iii) एककर्मक क्रिया
(iv) सकर्मक क्रिया
4. ओजस्व से मिलकर मैं घंटों बतियाता रहा। यहाँ क्रिया
भेद है
(i) सामान्य क्रिया
(ii) नामधातु क्रिया।
(iii) संयुक्त क्रिया
(iv) प्रेरणार्थक क्रिया
5. ‘आयुष दूध पीकर सो गया’ रेखांकित
अंश का क्रिया भेद है
(i) प्रेरणार्थक क्रिया
(ii) नामधातु क्रिया
(iii) पूर्वकालिक क्रिया
(iv) सामान्य क्रिया
6. ‘अंशु पुस्तक पढ़ती है’–क्रियाओं
का कौन-सा भेद है।
(i) सकर्मक
(ii) अकर्मक
(iii) एककर्मक
7. ग्वाला दूध दूहता है-कौन सी क्रिया है?
(i) प्रेरणार्थक
(ii) अकर्मक
(iii) सकर्मक
(iv) द्विकर्मक
8. ‘पतंग उड़ रही है’-वाक्यों
में क्रिया के भेद बताइए।
(i) सकर्मक
(ii) अकर्मक
(iii) द्विकर्मक
(iv) प्रेरणार्थक
9. ‘राजू खाकर सो गया’।
क्रिया का और कौन-सा भेद है?
(i) संयुक्त क्रिया।
(ii) पूर्वकालिक क्रिया
(iii) प्रेरणार्थक क्रिया
(iv) द्विकर्मक क्रिया
10. ‘अपना’ शब्द
से बनी नामधातु क्रिया कौन सी है?
(i) अपनत्व
(ii) अपनापन
(iii) अपने
(iv) अपनाना
काल.
काल- क्रिया के जिस रूप में उसके होने का बोध हो तो उसे काल कहते हैं।
काल तीन प्रकार का होता
है
1.
वर्तमान काल
2.
भूतकाल
3.
भविष्य काल
वर्तमान काल:- क्रिया के जिस रूप में उसके मौजूद होने का पाया जाता है उसे वर्तमान काल कहते हैं।
वर्तमान काल पांच
प्रकार का होता है।
1. सामान्य वर्तमान काल:- इस काल में धातु के साथ या क्रिया के साथ ता है,ती है, ते हैं आदि शब्द आते हैं तो उसे
सामान्य वर्तमान काल कहते हैं जैसे- अंकित पुस्तक पढ़ता है।
2. अपूर्ण वर्तमान काल:- इसमें क्रिया में चलने का बोध पाया जाता है तथा इसमें क्रिया के
साथ रहा है,रही है, रहे हैं आदि शब्द आते हैं- जैसे
प्रशांत खेल रहा है।
3. संदिग्ध वर्तमान काल:- क्रिया के साथ में
वर्तमान काल में संडे का बोध हो तो उसे वर्तमान काल कहते हैं। इसमें क्रिया के साथ
ता,ते ती के साथ होगा होगी होगी का प्रयोग होता है जैसे-राम पत्र
लिखता होगा।
4. संभागीय वर्तमान काल:- किस काल में क्रिया
में वर्तमान काल की अपूर्ण क्रिया की आशंका व्यक्त हो उसे संभाव्य वर्तमान काल
कहते हैं जैसे- शायद आज पिताजी आते हो।
5. अज्ञार्थ वर्तमान काल:- वर्तमान समय में
क्रिया के चलाने की आज्ञा का बोध हो उसे अज्ञान वर्तमान काल कहते हैं जैसे- आप भी
पढ़िए।
भूतकाल:- किया के जिस रूप
में उसके बीते हुए समय का बोध हो तब उसे भूतकाल कहते हैं
वाच्य.
वाच्य- क्रिया के उस परिवर्तन को
वाच्य कहते हैं, जिसके
द्वारा इस बात का बोध होता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी
प्रधानता है।
इनमें किसी के अनुसार क्रिया के पुरुष, वचन आदि आए हैं।
वाच्य के तीन प्रकार हैं -
- कर्तृवाच्य (Active Voice)
- कर्मवाच्य (Passive Voice)
- भाववाच्य (Impersonal Voice)
कर्तृवाच्य:-क्रिया के उस
रूपान्तर को कर्तृवाच्य कहते हैं, जिससे
वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध हो। सरल शब्दों में, क्रिया के जिस रूप में कर्ता प्रधान हो, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं।
उदाहरण
रमेश केला खाता है।
दिनेश पुस्तक नहीं
पढता है।
कर्मवाच्य:-क्रिया के उस
रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं, जिससे
वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो। सरल शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में
कर्म प्रधान हो, उसे कर्मवाच्य कहते
हैं।
उदाहरण
कवियों द्वारा
कविताएँ लिखी गई।
रोगी को दवा दी गई।
उससे पुस्तक पढ़ी
गई।
उक्त वाक्यों में
कर्म प्रधान हैं तथा उन्हीं के
लिए 'लिखी गई', 'दी गई' तथा 'पढ़ी गई' क्रियाओं का विधान हुआ है, अतः यहाँ कर्मवाच्य है।
भाववाच्य:-क्रिया के उस रूपान्तर
को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में
क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो। दूसरे शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में
न तो कर्ता की प्रधानता हो न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है।
उदाहरण
मोहन से टहला भी
नहीं जाता।
मुझसे उठा नहीं
जाता।
धूप में चला नहीं
जाता।
उक्त वाक्यों में
कर्ता या कर्म प्रधान न होकर भाव मुख्य हैं, अतः इनकी क्रियाएँ भाववाच्य का उदाहरण हैं।
वाक्य शुद्धि
वाक्य में अनावश्यक शब्द प्रयोग से
लिंग वचन कारक का सही प्रयोग नहीं होने से तथा संज्ञा सर्वनाम का भी सही प्रयोग
नहीं होने से वाक्य शुद्ध हो जाता है उसे ही वाक्य शुद्धि कहते हैं
1. अनावश्यक शब्द के कारण अशुद्धि:- समान अर्थ वाले 2
शब्द तथा विपरीत अर्थ वाले 2 शब्द एक साथ प्रयोग होने पर वाक्य शुद्ध हो जाता है
अशुद्ध वाक्य - में प्रातः काल के समय
पढ़ता हूं
शुद्ध वाक्य - मैं प्रातः काल पढ़ता
हूं।
2. अनुपयुक्त शब्द के कारण अशुद्धि:- वाक्य में अनुपयुक्त शब्द के प्रयोग होने से वाक्य शुद्ध हो जाता
है।
शुद्ध वाक्य- सीताराम की पत्नी थी
अशुद्ध वाक्य- सीताराम की स्त्री थीl
3. लिंग संबंधी अशुद्धि:- वाक्य में लिंग का उचित प्रयोग नहीं होने से वाक्य शुद्ध हो जाता
है
शुद्ध वाक्य- मेरा एक प्रसिद्ध
कवियत्री हैं
अशुद्ध वाक्य- मेरा एक प्रसिद्ध कवि
है।
4. वचन संबंधी अशुद्धि:- वचन का सही प्रयोग नहीं होने से वाक्य शुद्ध हो जाता है
शुद्ध वाक्य- यह मेरे ही हस्ताक्षर
हैं
अशुद्ध वाक्य- यह मेरा ही हस्ताक्षर
हैं
5. क्रम संबंधी अशुद्धि:- शब्द का सही स्थान पर प्रयोग नहीं होने से अशुद्धि हो जाती हैं।
शुद्ध वाक्य- तुम वास्तव में चतुर हो।
अशुद्ध वाक्य- वास्तव में तुम चतुर
हो।
6. सर्वनाम संबंधी अशुद्धि:- सर्वनाम का सही प्रयोग नहीं होने से वाक्य में अशुद्धि उत्पन्न हो
जाती है।
शुद्ध वाक्य- मुझे आज अजमेर जाना है।
अशुद्ध वाक्य- मैंने आज अजमेर जाना
है।
7. मुहावरे के कारण अशुद्धि:- मुहावरे का सही प्रयोग नहीं होने से वाक्य शुद्ध हो जाता है
शुद्ध वाक्य- प्रधानमंत्री ने देश का
तूफानी दौरा किया
अशुद्ध वाक्य- प्रधानमंत्री ने देश का
धुआंधार दौरा किया।
मुहावरे
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कलेजा मुंह को आना - बहुत परेशान होना
·
कफन सिर पर बांधना - लड़ने मरने को तैयार होना
·
किंकर्तव्यविमूढ़ होना - कोई निर्णय नहीं कर पाना
·
कोल्हू का बैल होना - हर समय तैयार रहना
·
कलेजा का टुकड़ा होना - दुख पहुंचाना कच्चा
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चिट्ठा खोलना -वेद खोलना
·
कलेजा का टुकड़ा होना - अत्यंत प्रिय होना
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कटे पर नमक छिड़कना - दुखी को दुखी करना
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गागर में सागर भरना -थोड़े में बहुत कुछ कह देना
·
चोली दामन का साथ होना - कनिष्ठ संबंध होना
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जमीन पर पैर ना रखना - बहुत गर्व होना
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डूबते को तिनके का सहारा - मुसीबत में थोड़ी सहायता लाभप्रद होती
है
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दूध का दूध पानी का पानी - ठीक न्याय करना
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दोनों हाथों में लड्डू वरना - लाभ ही लाभ होना
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नीला पीला होना - क्रोध करना
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पांचों अंगुलियां घी में होना - सब और लाभ होना
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प्राण हथेली पर रखना - जान देने के लिए तैयार होना
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दांत खट्टे करना -परेशान करना
लोकोक्तियां
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अपनी करनी पार उतरनी - स्वयं का परिश्रम ही काम आता है
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अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता - अकेला व्यक्ति शक्ति हीन
होता है
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अधजल गगरी छलकत जाए - ओझा आदमी अधिक इत्र आता है
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अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत - अवसर निकल जाने
के बाद पछताने का कोई मतलब नहीं
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अंधा चाहे दो आंखें - बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना
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आम के आम गुठलियों के दाम - एक काम से दो लाभ होना
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आधा तीतर आधा बटेर - अनमेल मिश्रण
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ऊंट के मुंह में जीरा - आवश्यकता की नगन्य पूर्ति
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एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा - बुरे से अधिक पूरा होना
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कभी गीत ना तो कभी मुक्ति चना - परिस्थितियां एक समान नहीं
रहती है
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घर बैठे गंगा आना बिना - पर यतन के लाभ होना