Maha Shivratri special : शिव जी के अवतारों की कथाएं..
मंगलवार, 1 मार्च को महशिवरात्रि है। भगवान विष्णु की तरह ही समय-समय पर शिव
जी ने भी अवतार लिए हैं। शिव जी के अवतारों के बारे में शिवपुराण और लिंगपुराण में
बताया गया है। धरती पर बढ़ते पाप को खत्म करने के
लिए भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए थे, जिसके
बारे में ज़्यादातर लोग जानते हैं। तो जानिए शिव पुराण में भगवान शंकर के 19
अवतारों का वर्णन और उनसे जुड़ी कथाएं...
1.शरभ अवतार
भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध
करने के लिए नृसिंह अवतार लिया था। हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भी नृसिंह शांत
नहीं हो रहे थे। तब शिव जी ने शरभ के रूप में अवतार लिया।
भगवान शिव आधे हिरण और आधे शरभ
पक्षी के रूप में प्रकट हुए थे। शरभ आठ पैर वाला एक जानवर था, जो कि शेर से भी ज्यादा शक्तिशाली
था।
शरभ जी ने नृसिंह भगवान को शांत
करने के लिए प्रार्थना की थी, लेकिन वे शांत नहीं हुए। वे इसी रूप में भगवान
नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ। तब शरभ
जी ने अपनी पूंछ में नृसिंह जी को लपेटा और उड़ गए। इसके बाद नृसिंह जी शांत हुए
और शरभावतार से क्षमा मांगी।
2.वीरभद्र
शंकर भगवान का यह अवतार दक्ष के यज्ञ में माता सती द्वारा अपने देह का त्याग
करने पर हुआ था। जब यह बात शिवजी को पता चली कि माता सती ने अपने प्राण अग्नि में त्याग
दिए हैं तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के ऊपर पटक
दिया। उस जटा के पूर्व भाग से महाभयंकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष
का विध्वंस कर दिया तथा उसका सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।
3.पिप्पलाद मुनि
पिप्पलाद मुनि को भी शिव जी का
अवतार माना गया है। वे दधीचि ऋषि के पुत्र थे। दधीची अपने पुत्र को बचपन में ही
छोड़कर चले गए थे। एक दिन पिप्पलाद ने देवताओं से इसकी वजह से पूछी तो देवताओं ने
कहा कि शनि की वजह से ऐसा कुयोग बना था, जिसकी वजह से पिता-पुत्र बिछड़ गए। ये सुनकर
पिप्पलाद ने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का शाप दे दिया।
शाप की वजह से शनि गिरने लगे तो
देवताओं की शनि को क्षमा करने की प्रार्थना पिप्पलाद जी से की। तब पिप्पलाद ने शनि
को किसी व्यक्ति को जन्म के बाद 16 साल कष्ट न देने का निवेदन किया था, शनि ये बात मान ली। इसके बाद से
पिप्पलाद मुनि का नाम लेने से शनि के दोष दूर हो जाते हैं।
4.नंदी अवतार
शिलाद मुनि एक ब्रह्मचारी ऋषि थे।
उन्होंने विवाह नहीं किया था तो एक दिन उनके पितरों ने शिलाद से संतान पैदा करने
के लिए कहा, ताकि उनका
वंश आगे बढ़ सके। इसके बाद शिलाद ने संतान पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की। तब
शिव जी ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।
कुछ समय बाद हल चलाते समय शिलाद
मुनि को भूमि से एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। शिव जी ने नंदी को
गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर बन गए।
5.भैरव देव
शिवपुराण के मुताबिक भैरव देव शिव
जी के स्वरूप हैं। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी खुद को श्रेष्ठ बता रहे थे, विवाद कर रहे थे। तभी वहां शिव जी
तेजपुंज से एक व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए। उस समय ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम
मेरे पुत्र हो। ये सुनकर शिव जी को क्रोध आ गया। तब शिव जी ने उस व्यक्ति से कहा
कि काल की तरह दिखने की वजह से आप कालराज हैं और भीषण होने से भैरव हैं। कालभैरव
ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था। इसके बाद काशी में कालभैरव को ब्रह्महत्या
के दोषी से मुक्ति मिली थी।
6.अश्वथामा
महाभारत के समय द्रोणाचार्य के
पुत्र अश्वत्थामा को शिव जी का ही अंशावतार माना जाता है। द्रोणाचार्य ने शिव जी
को पुत्र रूप में पाने के लिए तप किया था। शिव जी ने उन्हें वर दिया था कि वे उनके
पुत्र के रूप में अवतार लेंगे।
7.दुर्वासा मुनि
अनुसूइया और उनके पति महर्षि अत्रि
ने पुत्र प्राप्त करने के लिए तप किया था। तप से प्रसन्न होकर उनके सामने ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी प्रकट हुए थे। तब
तीनों भगवानों ने कहा था कि हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र पैदा होंगे। इसके बाद
अनुसूइया और अत्रि के यहां ब्रह्मा जी के अंश से चंद्र, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय और
शिव जी के अंश से दुर्वासा मुनि ने जन्म लिया था।
8.हनुमान
श्रीराम के सेवक हनुमान जी को शिव
जी का ही अवतार माना गया है। हनुमान जी देवी सीता के वरदान की वजह से अजर-अमर हैं
यानी हनुमान जी कभी बूढ़े नहीं होंगे और अमर रहेंगे।
9.किरात अवतार
महाभारत में अर्जुन शिव जी से
दिव्यास्त्र पाने के लिए तप कर रहे थे। उस समय एक असुर सूअर के रूप में अर्जुन को
मारने के लिए पहुंच गया था। जब अर्जुन ने सूअर पर बाण छोड़ा तो उसी समय एक किरात
वनवासी ने बाण सूअर को मारा था। एक साथ दोनों के बाण उस सूअर को लगे। इसके बाद
अर्जुन और किरात के बीच उस सूअर पर अधिकार पाने के लिए युद्ध हुआ था। युद्ध में
अर्जुन की वीरता देखकर शिव जी प्रसन्न हुए और अर्जुन को दिव्यास्त्र दिया।
10.अर्द्धनारिश्वर
शिवपुराण के मुताबिक ब्रह्मा
जी सृष्टि की रचना कर दी थी, लेकिन सृष्टि आगे नहीं बढ़ रही थी। तभी ब्रह्मा जी के
सामने आकाशवाणी हुई कि उन्हें मैथुनी सृष्टि की रचना करनी चाहिए। इसके बाद ब्रह्मा
जी ने शिव जी प्रसन्न करने के लिए तप किया। शिव जी अर्द्धनारिश्वर के रूप में
प्रकट हुए। इसके बाद शिव जी ने अपने शरीर से शक्ति यानी देवी को अलग किया और इसके
बाद से सृष्टि आगे बढ़ने लगी।
11.ब्रह्मचारी अवतार
दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने
हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती
की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती
ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का
उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक
भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध आ गया। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव
ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया था।
12.सुनटनर्तक अवतार
पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने
के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में
हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य
किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव
ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद
नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और
हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।
13.सुरेश्वर अवतार
भोलेनाथ के सुरेश्वर अवतार के पीछे की कहानी ये
है कि उन्होंने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति
और अमर पद का वरदान दिया था।
14.भिक्षुवर्य अवतार
भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने
वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश
देता है।
15.अवधूत अवतार
शंकर भगवान ने अवधूत अवतार लेकर भगवान इंद्र के
अहंकार को चूर किया था। धर्म ग्रंथों में अवतारों की कहानियों का विस्तार से वर्णन
किया गया है।
16.कृष्ण दर्शन अवतार
शिवजी ने इस अवतार को लेकर यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों
के महत्व को बताया है। इसी कारण इस अवतार को पूरी तरह से धर्म का प्रतीक माना गया है।
धर्म ग्रंथों के मुताबिक, इक्ष्वाकुंशीय श्राद्धदेव की नवमी
पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ था।
17.यतिनाथ अवतार
भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व
का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दंपत्ति की परीक्षा ली
थी, जिसके कारण भील दंपत्ति को अपने
प्राण गवाने पड़े थे।
18.वृषभ अवतार
भगवान शंकर ने विशेष परिस्तिथियों में वृषभ अवतार
लिया था। कथानुसार, जब विष्णु भगवान दैत्यों को मारने
पाताल लोक तो उनको देखकर कई स्त्रियां उन पर मोहित हो गईं। इन स्त्रियों से उत्पन्न
विष्णु के पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव मचाया था। उनसे घबराकर ब्रह्मा
जी शिव जी के पास गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तभी शिवजी ने वृषभ अवतार लेकर
उनका संहार किया।
19.गृहपति अवतार
भगवान शिव के गृहपति अवतार के बारे में। इनके बारे में यह बताया गया है कि एक
दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया था। मुनि ने बालरूपधारी शिव की
पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने
का उन्हें वरदान दिया। जिसके बाद कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर
शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए थे।
आज हमने आपको भगवान भोलेनाथ
के 19 अवतारों और उससे जुड़े
रहस्यों के बारे में बताया। आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। इसी तरह
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