खुशहाल जीवन की कल्पना :मारवाङी कविता

खुशहाल जीवन की कल्पना :मारवाङी कविता

मनुष्य को केवल सकारात्मक चिंतन करने की आवश्यकता है। इसी से वह खुशहाल जीवन जी सकता है। और ऐसे जीवन की कल्पना इस मारवाड़ी कविता के माध्यम से प्रकट होती प्रतीत हो रही है !.....




हाथी दीज्ये घोड़ा दीज्यै, गधा गधेड़ी मत दीज्यै,
सुगरां री संगत दे दीज्यै, नशा नशेड़ी मत दीज्यै

घर दीज्यै घरवाळी दीज्यै, खींचाताणीं मत दीज्यै
जूणं बळद री दे दीज्ये, 
तेली री घाणीं  मत दीज्यै

काजळ दीज्यै टीकी दीज्यै, पोडर वोडर मत दीज्यै
पतळी नार पदमणीं दीज्यै, 
तूं बुलडोजर मत दीज्यै

टाबर दीज्यै टींगर दीज्यै, बगनां  बोगा मत दीज्यै
जोगो एक देय दीज्यै पणं, 
दो नांजोगा मत दीज्यै

भारत री  मुद्रा दे दीज्यै, डालर  वालर मत दीज्यै
कामेतणं घरवाळी दीज्यै, ब्यूटी पार्लर मत दीज्यै

कैंसर वैंसर मत दीज्यै, 
तूं दिल का दौरा दे दीज्यै
जीणों दोरो धिक ज्यावेला, मरणां सोरा दे दीज्यै

भागवत री भगती दीज्यै, रामायण गीता दीज्यै
नर मं  तूं  नारायण  दीज्यै, नारी मं सीता दीज्यै

मंदिर दीज्यै मस्जिद दीज्यै, दंगा रोळा मत दीज्यै
हाथां  में हुन्नर  दे  दीज्यै, 
तूं हथगोळा मत दीज्यै

दया - धरम  री  पूंजी दीज्यै, वाणी में  सुरसत दीज्यै
भजन करणं री खातर दाता, थोड़ी तूं फुरसत दीज्यै

घी में गच - गच  मत दीज्यै, तूं लूखी सूखी दे दीज्यै
मरती बेल्यां महर करीज्यै, लकड्यां सूखी दे दीज्यै 

'निरंजन' नै कुछ मत दीज्यै, कविता नै इज्जत दीज्यै
जीवुं जठा तक लिखतो रेवूं,  इतरी तू हिम्मत दीज्यै

 

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