google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 लक्ष्मण परशुराम संवाद

लक्ष्मण परशुराम संवाद


परशुरामजी अत्यंत पराक्रमी थे और उन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया था। वे बहुत बड़े शिवभक्त थे और शिव धनुष टूटने का समाचार सुनकर भरी सभा में गए थे। जब वे क्रोधित होकर पूछने लगे कि धनुष किसने तोड़ा, तो लक्ष्मणजी ने हँसी-हँसी में कह दिया, धनुष पुराना था, छूते ही टूट गया। उन्होंने कहा, देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त
और गाय इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और हार जाने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए अपनी शक्ति का दर्प दिखाएँ। तब परशुरामजी ने अपना पराक्रम कहकर सुनाया।
इस पर लक्ष्मणजी बोले, हे मुनि आपके रहते आपकी प्रशंसा दूसरा कौन कर सकता है? शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का काम करते हैं, ख़ुद अपनी तारीफ़ करके अपने पराक्रम का डंका नहीं बजाते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा कि धनुष टूट गया है और आपके क्रोध करने से जुड़ नहीं जाएगा। यदि धनुष अत्यंत ही प्रिय हो तो किसी बड़े कारीगर को बुलवाकर जुड़वा लें। जब यह सुनकर परशुरामजी बहुत गुस्से में गए, तो रामचंद्रजी ने अपने कोमल वचनों से परशुरामजी को शांत किया। फिर परशुरामजी ने रामचंद्रजी की परीक्षा लेते हुए कहा कि राम, अब तुम यह विष्णु का धनुष लेकर इसे चढ़ाओ, ताकि मेरा संदेह मिट जाए। परशुरामजी के देने से पहले ही धनुष अपने आप रामचंद्रजी के हाथों में चला गया। तब परशुरामजी को ज्ञान हुआ कि रामचंद्रजी तो साक्षात अवतार हैं और वे उनकी जय-जयकार करते हुए वहाँ से चले गए।
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