राजा दशरथ के पुत्र नहीं थे, जिस कारण वे चिंतित रहते थे। उचित समय आने पर राजगुरु वशिष्ठजी ने राजा को सलाह दी कि वे संतान के लिए ऋष्यश्रृंग मुनि से पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराएँ। यज्ञ पूरा होने पर अग्निदेव हाय में खीर लेकर प्रकट हुए और दशरथ से बोले कि वे इसे उनकी रानियों में बाँट दें। पहली रानी कौसल्या, दूसरी रानी कैकेयी और तीसरी रानी सुमित्रा। राजा ने तीनों को यह प्रसाद दे दिया। इसके बाद चैत्र मास की शुक्ल पक्ष को नवमी के दिन अभिजित मुहूर्त में श्रीरामजी का जन्म हुआ। कैकेयी ने भरतजी को जन्म दिया। सुमित्रा ने लक्ष्मणजी और शत्रुघ्नजी नामक जुड़वाँ भाइयों को जन्म दिया।