पाठ्यपुस्तक- पीयूष
प्रवाह कक्षा -12
रचना - उसने कहा
था।
पाठ्यपुस्तक- प्रश्नोत्तर हिंदी अनिवार्य कक्षा -12
रचनाकार-
चंद्रधर शर्मा गुलेरी।
प्रश्न-
पलटन का विदूषक किसे माना जाता था?
उत्तर-पलटन
का विदूषक वजीरा सिंह को माना जाता था। क्योंकि वह विदूषक की तरह सबका मनोरंजन
करता और हँसाता रहता था।
प्रश्न-
उसने कहा था कहानी की पृष्ठभूमि में किस युद्ध का वातावरण है?
उत्तर- उसने
कहा था कहानी की पृष्ठभूमि में प्रथम विश्वयुद्ध जो 1914 ई. से 1918 के मध्य हुआ
था का वातावरण चित्रित है।
प्रश्न- उसने कहा था कहानी के आधार पर सूबेदारनी के चरित्र की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
सूबेदारनी के चरित्र की विशेषताएं निम्न हैं- विवेक सम्पन्न नारी और पति और पुत्र
की सदैव मंगलकामना करने वाली आदर पत्नी और महान माँ।
प्रश्न-
उसने कहा था कहानी की शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- किसी
भी रचना का शीर्षक पाठक को अपनी तरफ आकर्षित करता है। पाठक सबसे पहले शीर्षक ही
पढ़ता है और शीर्षक पढ़ते ही उसकी मन में रचना को पढ़ने की रूचि जागृति होती है। अतः
किसी भी रचना का शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक,
जिज्ञासात्मक और सार्थक होना चाहिए। उसने कहा था कहानी का शीर्षक इन
सभी गुणों पर खरा उतरता है। इस शीर्षक को पढ़ते ही पाठक के मन में सवाल आता है कि
किसने कहा था, किससे कहा था, क्या कहा
था, क्यों कहा था, कब कहा था, इन सवालों के जवाब पाने के लिए पाठक इस कहानी को पढ़ जाता है। इससे कहानी के शीर्षक की सार्थकता
बनी रहती है। हम कह सकते हैं कि कहानी का शीर्षक एकदम उपयुक्त है।
प्रश्न-
बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही। इस कथन की युक्ति-युक्त विवेचना
कीजिए।
उत्तर- यह
कथन सिपाही और घोड़े के संबंध में सर्वथा उचित है। क्योंकि घोड़े को चलाने पर और
सिपाही के न लड़ने पर उन दोनों में नीरसता, सुस्ती और
अलस्यपन आ जाता है। अतः घोड़े का चलना और सिपाही का लड़ना उनकी शक्ति और उनके
पराक्रम का बोधक माना जाता है। उपयुक्त पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि लेखक को
लोक की गहरी अनुभूति है।
प्रश्न-
उसने कहा था कहानी की मूल संवेदना क्या है?
उत्तर- उसने
कहा था एक मार्मिक कहानी है। जिसका कथानक प्रेम, त्याग और
कर्तव्यनिष्ठा को केंद्र में रखकर बुना गया है। लहनासिंह बचपन के प्रेम के लिए
अपना जीवन त्याग देता है। 25 वर्ष बाद सूबेदारनी जब लहनासिंह से मिलती है तब अपने
पति और पुत्र की रक्षा की भीख माँगती है। लहनासिंह अपने वचन का निर्वाह करते हुए
प्रेम और देश के लिए अपने प्राण त्याग देता है।
प्रश्न-
सुनते ही लहना को दुःख हुआ क्रोध आया उस पर लहनासिंह की यह प्रतिक्रिया क्यों हुई?
उत्तर- जब
लहनासिंह द्वारा पूछे जाने पर बालिका ने उत्तर दिया कि मेरी कुड़माई कल हो गई है तो
उसके प्रेम को ठेस लगने से उसे दुःख होता है। इस तरह मन में पनपे प्रेम के अचानक
टूट जाने पर क्रोध भी आता है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि इच्छा के अनुसार कार्य न
होने पर मनुष्य का स्वभाव चिड़चिड़ा और क्रोधयुक्त हो जाता है।
प्रश्न-
उसने कहा था कहानी से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर- उसने
कहा था कहानी से हमें कुछ प्रेरक संदेश मिलते हैं जो निम्न हैं-
आदर्श प्रेम
का निर्वहन- लड़का लहनासिंह लड़की होरां का बचपन का मिलन, लड़के की हृदय में उसकी प्रति आकर्षण जगा देता है। यह घटना पूर्व स्मृति का
काम करती है और 25 वर्ष पश्चात वह लड़की को दिए गए वचन का पालन करते हुए उसके पति
और पुत्र की रक्षा करता है और खुद अपने प्राण त्याग देता है। इससे हमें आदर्श
प्रेम के निर्वहन की प्रेरणा मिलती है।
· वचन पालन की
प्रेरणा– लहनासिंह ने सूबेदारनी को उसके
पति और पुत्र की रक्षा का वचन दिया था। वह अपने प्राण देकर उन दोनों की रक्षा करता
है।
· कर्तव्य-निष्ठा
की प्रेरणा– प्रस्तुत कहानी में कर्तव्य-निष्ठा की प्रेरणा भी दी गई है। सूबेदार
की अनुपस्थिति में एक शत्रु लपटन साहब बनकर आता है तब लहना सिंह अपनी तुरंत बुद्धि
से उसकी पहचान करता है तथा खुद के और अपने साथियों के प्राण बचाता है। त्याग करने
की प्रेरणा- लहनासिंह अपने आदर्श प्रेम और देश के लिए निस्वार्थ भाव से अपने
प्राणों का त्याग कर देता है। इसी हमें त्याग की प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न-
मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। उसने कहा था करने के आधार पर
लेखक के इस कथन की सत्यता उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तर- उसने
कहा था कहानी का नायक लहनासिंह जब घायल होकर मरणासन्न स्थिति में बड़बड़ाने लगता है।
उस समय उसे अपनी किशोरावस्था से लेकर अब तक की सभी घटनाएँ स्मृत्ति में आ जाती
हैं। अमृतसर के बाजार में उसकी लड़की से कैसे भेंट हुई जो बाद में सूबेदार
हजारासिंह की पत्नी बनी। पुनः मिलने पर उसी ने उससे अपने पुत्र और पति की रक्षा का
वचन माँगा। जिसका उसने पालन किया। इसके साथ ही मरणासन्न स्थिति में वह अपने भतीजे
कीरत सिंह के साथ हुई बातचीत का भी स्मरण करता है। इस प्रकार का घटनाक्रम चित्रित
कर कहानीकार ने यह सिद्ध किया है कि मरणासन्न व्यक्ति के अवचेतन मन में पूर्व की
स्मृति स्पष्ट उभर आती है।
पाठ्यपुस्तक- प्रश्नोत्तर हिंदी अनिवार्य कक्षा -12
पाठ- सत्य के
प्रयोग (आत्मकथा अंश)
लेखक- मोहनदास करमचंद गाँधी।
प्रश्न-
गोखले ने गाँधीजी को क्या प्रतिज्ञा कराई?
उत्तर- गोखले
ने गाँधीजी से प्रतिज्ञा करवाई थी कि उन्हें एक वर्ष तक देश में भ्रमण करना है।
किसी सार्वजनिक प्रश्न पर अपना विचार न तो बनाना है और न ही प्रकट करना है।
गाँधीजी ने प्रतिज्ञा का पूर्ण रुप से पालन किया।
प्रश्न-
सभ्य दिखने के लिए गाँधीजी ने क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर-
गाँधीजी ने सभ्यता सीखने के लिए महँगी पोशाकें सिलाई। कीमती ‘चिमनी‘ टोपी पहनना
आरंभ किया। भाइयों से सोने की चौन मँगवाई। टाई बाँधना सिखा, बालों में पट्टी डालना और सीधी मांग निकालना सीखा नाचना और वाद्य यंत्र
सीखना शुरू किया था और लच्छेदार भाषण देना भी सीखना शुरू किया।
प्रश्न-
गाँधीजी के अनुसार आत्मा के विकास का क्या अर्थ है?
उत्तर-
गाँधीजी के अनुसार आत्मा के विकास का अर्थ है- स्वयं के चरित्र निर्माण करना, ईश्वर का ज्ञान पाना एवं आत्मज्ञान प्राप्त करना। इसमें बच्चों को सहायता
की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है।
प्रश्न-
बालकों को आत्मिक शिक्षा देने के संबंध में गाँधीजी ने क्या अनुभव किया?
उत्तर-
बालकों को आत्मिक शिक्षा देने के संबंध में गाँधीजी ने अनुभव किया कि आत्मिक
शिक्षा का ज्ञान पुस्तकों द्वारा नहीं दिया जा सकता। शरीर की शिक्षा जिस प्रकार
शारीरिक कसरत द्वारा दी जाती है। बुद्धि की बौद्धिक कसरत द्वारा ठीक उसी प्रकार
आत्मा की शिक्षा आत्मा की कसरत द्वारा दी जा सकती है। आत्मा की कसरत शिक्षक के
आचरण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न-
बेल साहब द्वारा गाँधीजी के कानों में घंटी बजाने से क्या तात्पर्य है? और गाँधी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- गाँधीजी इससे जागे और उन्हें अनुभूति हुई कि मुझे इंग्लैंड में कौनसा जीवन
बिताना है? लच्छेदार भाषण सीखकर मैं क्या करूँगा? नाच-नाचकर मैं सभ्य कैसे बनूँगा? वायलिन तो देश में
भी सीखा जा सकता है। मैं तो विद्यार्थी हूँ। मुझे विद्याधन बढ़ाना चाहिए। मुझे अपने
पेशे से संबंध रखने वाली तैयारी करनी चाहिए। मैं अपने सदाचार से सभ्य समझा जाऊँ तो
ठीक है नहीं तो हमें यह सब छोड़ना चाहिए।
प्रश्न-
चरखे के प्रयोग के प्रति गाँधीजी की क्या अवधारणा थी?
उत्तर- चरखे
के प्रयोग के प्रति गाँधीजी की अवधारणा थी कि इसके प्रयोग से हिंदुस्तान की भुखमरी
मिटेगी। स्वावलंबन एवं स्वदेशी की महत्ता उजागर होने के साथ ही स्वराज्य भी
मिलेगा।
प्रश्न-
सत्य के मेरे प्रयोग आत्मकथा अंश के आधार पर गाँधीजी के चरित्र की विशेषताएं
लिखिए।
उत्तर- इस
अंश को पढ़ने से गाँधीजी के चरित्र की कुछ विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं। इनमें से
प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
अन्नाहार के
प्रति श्रद्धा- गाँधीजी इंग्लैंड में माँसाहार की उपयोगिता समझते हुए भी अपनी
प्रतिज्ञा पर डटे रहे और उन्होंने अन्नाहार पर ही बल दिया।
सभ्य बनने की
धुन- सभ्य बनने के चक्कर में गाँधी ने कई चीजें सीखना शुरू किया था।
पक्षपात और
अन्याय के विरोधी- दक्षिण अफ्रीका में एशियाई अधिकारियों द्वारा भारतीय लोगों के
साथ किए जा रहे अन्याय का विरोध किया था। इससे साबित होता
है कि गाँधीजी पक्षपात और अन्याय के विरोधी थे।
· दृढ़ निश्चयी-
गाँधीजी दृढ़ निश्चयी थे। गोखले द्वारा प्रतिज्ञा करवाने के बाद गाँधी ने देशभर का
भ्रमण किया और खादी विकास के बल दिया। खादी के विकास के लिए चरखे का प्रयोग किया।
· आत्म निर्माण
की भावना- गाँधीजी शरीर और मन को शिक्षित करने की अपेक्षा आत्मा को शिक्षित करने
पर अधिक बल देते थे।
· स्वदेश की
भावना- गाँधीजी विदेशी वस्तुओं की बजाय स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर बल देते थे।
· स्वावलंबन की
भावना- गाँधीजी के अनुसार मनुष्य को अपना काम खुद करना चाहिए। इससे स्वावलंबन की
भावना को बल मिलता है।
पाठ- गौरा
(रेखाचित्र)
लेखिका-
महादेवी वर्मा।
प्रश्न-
गौरा के पुत्र का क्या नाम रखा गया था?
उत्तर- गौरा
के पुत्र का नाम लालमणि रखा गया क्योंकि वह अपने लाल रंग के कारण गेरू के पुतले
जैसा जान पड़ता था।
प्रश्न-
गौरा का महादेवी के घर में किस तरह स्वागत किया गया?
उत्तर- गाय
का महादेवी के घर पहुँचते ही उसके स्वागत में उसे लाल-सफेद गुलाब की माला पहनाई गई, केसर और रोली का टीका लगाया गया। घी का
चौमुखा दीया जलाकर उसकी आरती उतारी गई। उसे दही पेड़ा खिलाया गया और उसका नामकरण
हुआ गौरंगिनी या गौरा।
प्रश्न-
गौरा को मृत्यु से बचाने के लिए महादेवी ने क्या क्या प्रयास किए?
उत्तर- गौरा
को मृत्यु से बचाने के लिए लेखिका ने एक नहीं अनेक पशु चिकित्सकों को यहाँ तक कि
लखनऊ और कानपुर तक के पशु विशेषज्ञों को बुलाया। उनके कहे अनुसार एक्सरे करवाए गए।
इंजेक्शन लगवाए गए। सेब का रस पिलाया गया तथा बताए अनुसार दवाइयाँ दी गई। लेकिन
अंत तक गौरा को कोई लाभ नहीं हुआ। गौरा के ऐसे दर्द को देखकर लेखिका की मानवीय
संवेदना तड़प उठी थी।
प्रश्न-
महात्मा गाँधी के ‘गाय करुणा की कविता है‘ इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गाय
की आँखों में अपने पालक के प्रति विश्वास होता है। वह पालक के प्रति अपनी हानि की
आशंका नहीं रखती और न उसे विश्वास होता है कि हमारा पालक ही हमारी हानि या हत्या
कर रहा है। कथन का भाव यह है कि जो गाय मनुष्य जाति पर इतना विश्वास करती है तो
बदले में मनुष्य को गौ हत्या बंद कर देनी चाहिए।
प्रश्न-
अंत में एक ऐसा निर्मम सत्य उद्घाटित हुआ, जिसकी
कल्पना मेरे लिए संभव नहीं थी। लेखिका किस निर्मम सत्य की बात कर रही है?
उत्तर- जब
लेखिका को डॉक्टर द्वारा बताया गया कि गाय को सुई खिला दी गई है जो गाय के हृदय तक
पहुँच गई है। जब लेखिका को पता चला कि यह सुई और किसी के द्वारा नहीं बल्कि गाय का
दूध निकालने वाले ग्वाले के द्वारा खिलाई गई है तो उन्हें यह बहुत ही निर्मम कृत्य
लगा। इसी कारण उन्होंने कहा कि ऐसे सत्य की कल्पना मेरे लिए संभव नहीं थी।
प्रश्न-
लेखिका की आँखों में क्या सोच कर आँसू आ जाते थे?
उत्तर- जब
गौरा ग्वाले की निर्मम करतूत के कारण बीमार हो गई और अब उसकी मृत्यु निश्चित हो गई
तो महादेवी यह सोचकर दुःखी हो जाती थी कि इतनी हष्ट-पुष्ट, सुंदर और दूध देने वाली गाय, अपने प्यारे से बछड़े को
छोड़कर किसी भी क्षण निर्जीव हो जाएगी। यही सोचकर उनकी आँखों में आँसू आ जाते थे।
प्रश्न-
अब मेरी एक ही इच्छा थी। महादेवी की क्या इच्छा थी?
उत्तर- गौरा
को मृत्यु के निकट जानकर महादेवी ने सोचा कि अंतिम समय में भी गौरा के पास रहे। वह
रात-दिन कई-कई बार उसे देखने जाती थी। अंत में एक दिन ब्रह्ममुहूर्त में जब
महादेवी उसे देखने गई तो उसने सदा की तरह अपना सिर उठाकर महादेवी के कंधे पर रखा
और उसी समय उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
प्रश्न-
गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शन थी। कथन के आधार पर कोई गौरा के बाह्य सौंदर्य की
विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
प्रियदर्शन गौरा का रूप सौंदर्य अनेक विशेषताओं से मंडित था। उसकी काली बिल्लौरी
आँखों का तरल सौंदर्य देखने वाले की दृष्टि को निश्चल कर देता था। उसके चौड़े और
उज्ज्वल माथे और लंबे तथा साँचे में ढले हुए मुख पर आँखें बर्फ में नीले जल के
कुंडों के समान प्रतीत होती थीं। उसके पैर पुष्ट एवं लचीले थे। पुट्ठे भरे हुए तथा
चिकनी भरी हुई पीठ, लंबी सुडौल गर्दन, निकलते
हुए छोटे-छोटे सींग, भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की
अधखुली पंखुड़ियों जैसे कान, लंबी और अंतिम छोर तक काले सघन
चमर का स्मरण दिलाने वाली पूँछ सब कुछ साँचे में ढला हुआ था। मानो इटालियन मार्बल
में गाय का स्वरूप तराशकर उसे गौरा पर ओप दिया गया हो। इस प्रकार गौरा का बाह्य
सौंदर्य अतीव आकर्षक था।
प्रश्न-
‘आह मेरा गोपालक देश!‘ पंक्ति में निहित वेदना का चित्रण कीजिए।
उत्तर- गौरा महादेवी की अत्यंत
प्रिय थी। जब गौरा का मृत शरीर गंगा में समर्पित करने ले जाया गया तो उस समय लेखिका
का हृदय करुणा और वेदना से अत्यधिक व्यथित हो रहा था परंतु गौरा का बछड़ा उसी
करुणाजनक दृश्य को भी एक खेल समझकर उछल-कूद रहा था। उस समय लेखिका ने अपनी पीड़ा को
व्यक्त करते हुए ऐसा कहा कि गाय को हमारे देश में माता के समान माना जाता है और
भारतवासी स्वयं को गोपालक भी कहते हैं। यह गाय के साथ क्रूर मजाक है, पाखंड मात्र है। क्योंकि कुछ स्वार्थी लोग ऐसे उपयोगी पशु से भी ईर्ष्या
रखकर स्वार्थ पूर्ति की दृष्टि से उसके साथ ऐसा क्रूर आचरण करते हैं जो निंदनीय है
यह कहाँ का कैसा गोपालक देश है?
पाठ- राजस्थान के
गौरव(जीवन चरित)
प्रश्न-
संप सभा की स्थापना किसने की थी?
उत्तर- पूज्य गोविंद गुरु ने संप सभा की स्थापना की थी।
प्रश्न-
देवनारायण को किसका अवतार माना जाता है?
उत्तर- देवनारायण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
प्रश्न-
‘सिर साँटे रूंख तो भी सस्ता जाण‘ पंक्ति का अर्थ क्या है?
उत्तर- सिर कटने पर भी पेड़ बच जाए तो इसे सस्ता ही समझना चाहिए।
प्रश्न- सूरजमल कहाँ के राजा थे?
उत्तर- सूरजमल भरतपुर राज्य के राजा थे।
प्रश्न-
संत जंभेश्वर को दिव्य ज्ञान कहाँ प्राप्त हुआ?
उत्तर- संत जंभेश्वर को समराथल धोरां में दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।
प्रश्न-
जम्मा-जागरण आंदोलन के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जम्मा जागरण आंदोलन बाबा रामदेव द्वारा चलाया गया था। इसका उद्देश्य
दलितों के साथ संपर्क बढ़ाकर उन्हें जाग्रत कर अच्छाइयों की ओर मोड़ना था। जम्मा
जागरण का यह पुनीत कार्य मेघवाल जाति के द्वारा ही किया जाता था। बाबा रामदेव
मेघवाल जाति में चेतना जाग्रत करना चाहते थे।
प्रश्न-
महाराजा सूरजमल की राष्ट्रीय भावना से संबंधित किसी एक घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर- महाराजा सूरजमल वीर और साहसी योद्धा थे। उन्होंने मुगल बादशाहों से
युद्ध ही नहीं किया बल्कि उन्हें वीर शिवाजी की तरह परास्त भी किया। इसी क्रम में
उन्होंने रात के अंधेरे में सलावत खान की छावनी पर सिंह-झपट्टा मारकर उसे
आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया और उन्होंने उससे जो शर्तें थे कि वे उनकी
राष्ट्र भावना से संबंधित थी। जो निम्न हैं- मुगल सेना पीपल के वृक्ष नहीं काटेगी
और मंदिरों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा।
प्रश्न-
खेजड़ली गाँव की अमृता देवी का बलिदान किस कारण हुआ था? लिखिए
उत्तर- खेजड़ली गाँव की अमृता देवी का बलिदान प्रकृति एवं पर्यावरण-संरक्षण की
दृष्टि से खेजड़ी के पेड़ों की कटाई रोकने के कारण हुआ था। क्योंकि राजा के सैनिक इस
गाँव से खेजड़ी के पेड़ काटने आए थे। अमृता बाई ने उन्हें पेड़ काटने से रोका।
परिणामस्वरूप एक पेड़ से चिपकी अमृता देवी को सैनिकों ने काट दिया। इस प्रकार पेड़ों
की रक्षा करने के लिए अमृता देवी से प्रेरित होकर उनकी तीन पुत्रियाँ और पति के
साथ ही 363 लोगों ने अपना बलिदान दिया था। पेड़ों के लिए इतने लोगों का एक साथ
बलिदान अपने आप में अद्वितीय उदाहरण है।
प्रश्न-
मानगढ़ का विशाल पहाड़ किस दिव्य-बलिदान का साक्षी है? विस्तार से लिखिए।
उत्तर- भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में राजस्थान की धरती पर गोविंद
गुरु ने विदेशी अंग्रेज सरकार के साथ ही सामंत-जागीरदारों का भी विरोध किया था। इस
हेतु मानगढ़ के विशाल पहाड़ पर वनवासियों का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया। इससे
स्थानीय सामंतों और जमीदारों को बहुत कुढ़न हुई। इस सम्मेलन में लाखों लोग आए थे।
देशद्रोहियों ने ब्रिटिश सरकार के कान भरे हर कर्नल शटल ने वहाँ जलियाँवाला बाग से
भी वीभत्स हत्याकांड करवा डाला था। जिसमें 1500 से ज्यादा लोग मारे गए थे। मानगढ़
का विशाल पहाड़ इसी दिव्य बलिदान का साक्षी है। यह बलिदान आज भी वनवासियों के गीतों
और कथाओं में रचा-बसा है।
प्रश्न-
जंभेश्वर के अनुयायी कौन हैं?
उत्तर- जंभेश्वर के अनुयायी विश्नोई लोग हैं। आज भी इन विश्नोईयों के गाँव में
प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से न तो पेड़ काटे जाते हैं और न ही हरिण
मारे जाते हैं। आज भी उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष मेला लगता है हजारों लोग आते हैं।
उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं तथा प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण का
संकल्प लेते हैं।
पाठ्यपुस्तक- प्रश्नोत्तर हिंदी अनिवार्य कक्षा -12
पाठ्यपुस्तक-
संवादसेतु
इस पुस्तक में से 5 कुल 5 प्रश्न पूछे जाएँगे जिनका अंकभार 12 होगा। इनमें तीन प्रश्न दो-दो अंक के तथा दो प्रश्न
तीन-तीन अंकों के होंगे।
अध्याय- समाचार लेखन
प्रश्न-
समाचार लेखन के छह ककारों का उपयोग बताइए।
उत्तर- समाचार लेखन से पूर्व मुख्य रूप से 6 प्रश्नों के उत्तर देने की कोशिश
की जाती है। यह 6 प्रश्नोत्तर ही छह ककार कहलाते हैं। क्या, कौन या किसने, कहाँ, कब, क्यों और कैसे। समाचार लेखन में सर्वप्रथम क्या,
कौन, कब व कहाँ ककार के आधार पर समाचार लिखा
जाता है। शेष दो ककारों क्यों और कैसे के आधार पर समाचार के विश्लेषण, विवरण व व्याख्या पर जोर दिया जाता है।
प्रश्न-
समाचार लेखन की उलटा पिरामिड शैली का स्वरूप बताइए।
उत्तर- समाचार पत्रों के लिए समाचार लेखन में आमतौर पर उलटा पिरामिड शैली
अपनाई जाती है। इसमें महत्त्वपूर्ण घटना का उल्लेख पहले किया जाता है एवं कम
महत्त्व की घटनाओं को समाचार के रूप में घटते क्रम में लिखा जाता है। इसमें इंट्रो, बॉडी और समापन के क्रम में घटित घटनाओं को लिखा जाता है। इस
प्रकार समाचार तीन भागों में रखा जाता है। इंट्रो, बॉडी और
समापन के क्रम से लिखने के कारण ही इसे उलटा पिरामिड शैली कहते हैं।
प्रश्न-
रेडियो के लिए समाचार लेखन में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर- रेडियो समाचार लेखन में दो बुनियादी बातों का ध्यान रखना जरूरी है-
1 समाचार साफ-सुथरी और टाइप कॉपी में हो।
2 डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षर स्पष्ट
अंकित हो ताकि समाचार वाचक को कोई दिक्कत न हो। समाचार लेखन के आरंभ में बोलचाल की
तिथि-वार आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। संक्षिप्ताक्षर अति प्रचलित रूप में
होने चाहिए।
प्रश्न-
समाचार लेखन में मुद्रित माध्यम का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- संचार माध्यमों में मुद्रित या प्रिंट मीडिया सबसे पुराना है। भारत में
ईसाई मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए छापेखाने खोले थे। मुद्रण
कला का प्रसार होते ही समाचार पत्रों का प्रकाशन होने लगा स्थायित्व, प्रसार, विचार-विश्लेषण तथा सूचना संप्रेषण
की दृष्टि से मुद्रित माध्यम का विशेष महत्त्व है। मुद्रित माध्यम का सबसे बड़ा गुण
ये है कि जरूरत पड़ने पर पुराने अखबार आदि से समाचार देखे जा सकते हैं। वर्तमान में
इसे जनता की आवाज माना जाता है।
प्रश्न-
फिल्म पटकथा लेखन के स्वरूप को समझाइए।
उत्तर- टीवी धारावाहिक, फिल्म और थिएटर में पटकथा का विशेष
महत्त्व है। इसमें पहले कहानी लिखी जाती है शूटिंग के अनुसार फिर संवाद लिखे जाते
हैं। पटकथा से स्क्रीनप्ले का ढाँचा तैयार होता है। फिल्म पटकथा लेखन के लिए अच्छे
लेखक की जरूरत होती है। उसमें भाषा तथा डायलॉग पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
स्क्रिप्ट या पटकथा जितनी अच्छी होगी फिल्म उतनी ही श्रेष्ठ हो रहेगी।
प्रश्न-
इंटरनेट के स्वरूप एवं उपयोग का महत्व बताइए।
उत्तर- इंटरनेट अंतर्कि्रयात्मकता और विश्व के करोड़ों कंप्यूटरों को जोड़ने
वाला ऐसा संजाल है जो केवल एक टूल अर्थात उपकरण से सूचनाओं के विशाल भंडार का
माध्यम है। यह सूचना, मनोरंजन, ज्ञान,
व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक संबंधों के आदान-प्रदान का त्वरित माध्यम
है। इंटरनेट की उपयोगिता यह है कि इससे एक सेकंड में लगभग सत्तर हजार शब्द एक जगह
से दूसरी जगह भेज सकते हैं। अब 4जी से इसकी गति तकरीबन दस गुना बढ़ गई है।
पाठ्यपुस्तक- प्रश्नोत्तर हिंदी अनिवार्य कक्षा -12
अध्याय- विविध प्रकार
के लेखन फीचर, संपादकीय, संपादक के
नाम पत्र एवं प्रतिक्रिया लेखन
प्रश्न-
संपादकीय क्या है?
उत्तर- किसी भी समाचार पत्र का अत्यंत महत्त्वपूर्ण भाग संपादकीय ही होता है।
यह किसी ज्वलंत मुद्दे या घटना पर समाचार-पत्र के दृष्टिकोण एवं विचार को व्यक्त
करता है। संपादकीय संक्षेप में तथ्यों और विचारों की तर्कसंगत एवं सुरुचिपूर्ण
प्रस्तुति होता है।
प्रश्न-
फीचर किसे कहते हैं?
उत्तर- किसी रोचक विषय का मनोरम
और विशद प्रस्तुतीकरण ही फीचर कहलाता है। यह एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन होता है। इसमें भाव और भाषा की मिश्रित
लेखन-शैली अपनाई जाती है जो कि मानवीय भावनाओं और उनकी अभिरुचि को मनोरंजक ढंग से
प्रस्तुत करती है। इसका लक्ष्य पाठकों को सूचना देना, शिक्षित
करना एवं उनका मनोरंजन करना होता है।
प्रश्न-
लेख एवं फीचर की शैली में क्या अंतर है?
उत्तर- लेख एवं फीचर की शैली में मुख्य अंतर निम्न हैं-
1. लेख गहन अध्ययन पर आधारित एक प्रामाणिक लेखन है जबकि फीचर पाठकों की रूचि के
अनुरूप किसी घटना या विषय की तथ्यपूर्ण रोचक प्रस्तुति।
2. लेख दिमाग को प्रभावित करता है जबकि फीचर दिल को।
3. लेख एक गंभीर और उच्च स्तरीय गद्य रचना है जबकि फीचर एक गद्य-गीत की तरह
संवेदनाएं जाग्रत करता है।
4. लेख किसी घटना या विषय के सभी आयामों को स्पर्श करता है जबकि फीचर कुछ ही
आयामों को।
5. लेख में तथ्यों को वस्तुनिष्ठ तरीके से प्रस्तुत किया जाता है जबकि फीचर में
लेखक को अपना दृष्टिकोण व्यक्त करने की छूट रहती है।
प्रश्न-
समाचार और फीचर में प्रमुख अंतर क्या है?
उत्तर- समाचार दैनिक एवं तात्कालिक घटित घटनाओं, सूचनाओं
और विषयों पर आधारित होते हैं। उनका लेखन उल्टा पिरामिड शैली में तथा 6 का ककारों
के आधार पर होता है। इसके विपरीत फीचर आलेख जैसा होता है जिसमें दैनिक समाचार,
सामयिक विषय एवं पाठकों की रुचि वाले विषयों की चर्चा मनोरंजनपूर्वक
होती है। समाचार लेखन में संक्षिप्तता का ध्यान रखा जाता है जबकि फीचर लेखन में
विषय वस्तु को विस्तार से लिखा जाता है।
प्रश्न-
प्रतिक्रिया लेखन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- किसी खास अवसर पर तथा किसी चर्चित मुद्दे को लेकर या तो मीडिया द्वारा
संबंधित पक्षों से प्रतिक्रिया आमंत्रित की जाती है अथवा किसी प्रमुख मामले में
व्यक्ति विशेष या पदाधिकारी को अपनी राय देते हैं उनकी बात जो प्रतिक्रिया रूप में
छपती है उसे ही प्रतिक्रिया लेखन कहा जाता है।
अध्याय-
साक्षात्कार लेने की कला
प्रश्न-
साक्षात्कार किसे कहते हैं?
उत्तर- किसी भी क्षेत्र में चर्चित एवं विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त करने वाले
व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त
की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मुद्रित माध्यम एवं रेडियो-टीवी में
प्रकाशित एवं प्रसारित होने वाली भेंटवार्ता को भी साक्षात्कार कहते हैं।
प्रश्न-
साक्षात्कार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर- साक्षात्कार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-
1 विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं या नौकरियों हेतु आयोजित साक्षात्कार।
2 रेडियो-टीवी में समाचार पत्र हेतु रिपोर्टर या संपादक द्वारा लिए जाने वाले
साक्षात्कार।
प्रश्न-
साक्षात्कार के संबंध में कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर‘ का क्या कथन है?
उत्तर- पत्रकारिता के क्षेत्र में साक्षात्कार दिए जाते हैं। उनके संबंध में
मिश्र जी का कथन है कि मैंने इंटरव्यू के लिए वर्षों पहले एक शब्द रचा था-
अंतर्व्यूह। मेरा भाव यह है कि इंटरव्यू के द्वारा हम सामने वाले के अंर्त में एक
व्यूह रचना करते हैं मतलब यह कि दूसरा उसे बचा न सके, जो हम उससे पाना चाहते हैं। यह एक तरह का युद्ध है और
इंटरव्यू हमारी रणनीति व्यूह रचना है।
प्रश्न-
एक पत्रकार होने के नाते आप अखबार या टीवी दोनों में से किसके लिए साक्षात्कार
करना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर- एक पत्रकार होने के नाते हम टीवी के लिए साक्षात्कार लेना पसंद करेंगे
क्योंकि टीवी में साक्षात्कार का प्रसारण होता है। उसमें जिसका साक्षात्कार लिया
जा रहा है उसका तथा साक्षात्कार करने वाले का भी फोटो सामने आ जाता है। उसमें
चेहरे के हाव-भाव भी व्यक्त होते हैं। टीवी पर साक्षात्कार अनेक चौनलों से एक साथ
या दो-तीन दिन तक लगातार प्रसारित होने से नाम और यश भी मिलता है। व्यक्तित्व का
प्रकाशन भी होता है और इसमें आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
अध्याय- विविध
क्षेत्रों में पत्रकारिता
प्रश्न-
खेल पत्रकारिता पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- आधुनिक युग में खेलों के प्रति पाठकों की रुचि बढ़ी है। पाठकों की
जानकारी के लिए समाचार पत्रों में खेल समाचारों के अलग से पृष्ठ तय रहते हैं। खेल
समाचारों की रिपोर्टिंग करने में अनुभव एवं तकनीकी बातों की जरूरत होती है।
प्रत्येक खेल के अलग-अलग नियम होते हैं। उनके अलग-अलग संगठन होते हैं तथा उनके
नियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदलते रहते हैं। इन सबकी जानकारी खेल रिपोर्टर को होनी
चाहिए। खेल पत्रकार में अनेक गुणों एवं विशेषज्ञताओं की अपेक्षा की जाती है।
प्रश्न-
व्यापारिक पृष्ठ के विभिन्न अंग कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर- व्यापारिक या वाणिज्यिक पत्रकारिता के कई स्तंभ होते हैं। प्रायः
समाचार-पत्र के पृष्ठों में मंडी भाव, सर्राफा
बाजार, शेयर बाजार, रूई बाजार, चाय-किराना बाजार, तेल-तिलहन, गुड़-खांडसारी
आदि के स्तंभ या कॉलम निर्धारित रहते हैं। इन्हीं पृष्ठों में आयात-निर्यात,
कंपनी समाचार एवं मुद्रा बैंकिंग आदि का विश्लेषण भी दिया जाता है।
प्रश्न-
विज्ञान पत्रकारिता क्या है?
उत्तर- वैज्ञानिक क्षेत्र के किसी कार्यक्रम, प्रमुख
घटना, उपलब्धि या खोज की तह तक जानकारी प्राप्त करना तथा
उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बताना और भविष्य की संभावनाओं की जानकारी देना विज्ञान
पत्रकारिता कहलाती है। जिसमें विज्ञान से संबंधित समस्त तकनीकी पक्षों की जानकारी
समाचार माध्यम से दी जाती है।
प्रश्न-
विज्ञान पत्रकारिता करते समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
उत्तर- विज्ञान पत्रकारिता के लिए उपलब्ध सामग्री जटिल होती है। विज्ञान की
तकनीकी शब्दावली को आम पाठक समझ नहीं पाता इसलिए विज्ञान संबंधी समाचार देते समय
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इसमें सरल एवं आम जनता की समझ आने वाली भाषा का प्रयोग
किया जाए। समस्त समाचार को मनोरंजक कथा-शैली में प्रस्तुत किया जाए अर्थात पत्रकार
अपनी सहज भाषा में समाचारों को प्रस्तुत करें।
प्रश्न-
फिल्म पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर- फिल्म जगत की संपूर्ण जानकारी, विवरण-विश्लेषण
के साथ प्रस्तुत की जाती है। फिल्म की पटकथा, उसके संवाद,
उसकी संवेदना, पात्रों का प्रदर्शन, समाज पर उसका प्रभाव तथा सामयिक संदेश, फिल्म की
शूटिंग एवं विविध शॉट तथा उनकी कलात्मक पृष्ठभूमि आदि समस्त पक्षों की जानकारी
प्रस्तुत करना फिल्म पत्रकारिता कहलाती है। इसी में फिल्म की समीक्षा भी आ जाती
है।
अध्याय- वार्ता, रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्तान्त, डायरी
लेखन, संदर्भ ग्रन्थ की महत्ता
प्रश्न-
रिपोर्ट और रिपोर्ताज में क्या अंतर है?
उत्तर- रिपोर्ट और रिपोर्ताज में निम्न अंतर हैं-
1. किसी घटना या विषय का तथ्यात्मक विवरण या लेखा-जोखा प्रस्तुत करना रिपोर्ट
कहलाता है परंतु जब वह रिपोर्ट कलात्मक, संवेदनामय
एवं साहित्यिक शैली में प्रस्तुत हो तो वह रिपोर्ताज कहलाता है।
2. घटनाओं एवं सूचनाओं का आँखों देखा विवरण लिखना रिपोर्ट माना जाता है परंतु उसे
कलात्मक अभिव्यक्ति व संवेदनशीलता के साथ ज्ञान व आनंद का समावेश हो तो वह
रिपोर्ताज बन जाता है।
3. रिपोर्ट को प्रतिवेदन भी कहते हैं इस में तथ्यात्मकता होने से नीरसता रहती है
जबकि रिपोर्ताज भावात्मक अभिव्यक्ति होती है तथा इसमें सरसता एवं संवेदना का पुट
रहता है। रिपोर्ट से भिन्न रिपोर्ताज एक साहित्यिक विधा है।
4. रिपोर्ट अंग्रेजी भाषा का शब्द है जबकि रिपोर्ताज फ्रेंच भाषा का शब्द है।
प्रश्न-
वार्ता से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर- वार्ता रेडियो प्रसारण की एक विशिष्ट विधा है। यह समाचार आधारित भी
होती है और साहित्यक, संस्कृतिक, वैज्ञानिक
व आर्थिक विषयों की भी हो सकती है। समाचारों पर आधारित वार्ता के साथ-साथ अन्य
डायलॉग संवाद का भी प्रसारण होता है। जिसमें एक विशेषज्ञ से समाचार संपादक या
संवाददाता किसी तात्कालिक विषय पर अपनी बात करके उनसे विस्तृत जानकारी देने का
प्रयास करता है। वार्ता में दो पक्ष होते हैं एक वक्ता और दूसरा श्रोता।
प्रश्न-
यात्रावृत्त लेखन के विकास में राहुल सांकृत्यायन का योगदान अप्रतिम है। समझाइए।
उत्तर- यात्रा साहित्य के विकास में राहुल सांकृत्यायन का योगदान अप्रतिम है।
यह पक्के घुमक्कड़ थे और उनके जीवन का बहुत बड़ा भाग घूमने फिरने में व्यतीत रहा।
इतिवृत्त प्रधान शैली के उपरांत भी गुणवत्ता व परिमाण की दृष्टि से उनके यात्रा
वृत्तांतों की तुलना में कोई दूसरा लेखक कहीं नहीं ठहरता। उन्होंने तिब्बत में सवा
वर्ष, मेरी यूरोप यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा शीर्षक से यात्रा-वृत्त लिखे। मेरी यूरोप यात्रा में यूरोप के दर्शनीय स्थलों के अतिरिक्त कैंब्रिज और
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों के रोचक किस्से भी प्रस्तुत किए गए हैं। सन् 1948 में
उन्होंने घुमक्कड़ शास्त्र नामक ग्रंथ की रचना की जिससे यात्रा करने की कला को सीखा
जा सकता है।
प्रश्न-
डायरी लेखन में किस तरह की भाषा शैली अपनानी चाहिए?
उत्तर- डायरी लेखन में परिष्कृत एवं मानक भाषा शैली का आग्रह नहीं रखना चाहिए।
यह अत्यंत निजी एवं व्यक्तिगत होती है। परिष्कृत एवं क्लिष्ट भाषा के प्रयोग से
कथ्य एकदम भारी हो जाता है। डायरी लेखन में यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि भाषा
कितनी शुद्ध है और शैली-सौंदर्य कितना कलात्मक है। इसमें सहज अभिव्यक्ति एवं हृदय
के भावों के आवेग को प्राथमिकता देनी चाहिए। स्वाभाविक भाषा शैली का प्रयोग करने
से ही डायरी का सही स्वरूप उभरता है। अतः कृत्रिमता से बचने के लिए डायरी लेखन में
हृदय की अनुभूति के अनुरूप ही भाषा शैली अपनानी चाहिए। इसी विधि से इसमें आत्मीयता
का समावेश होता है।
प्रश्न-
संदर्भ ग्रंथ किसे कहते हैं? इनका
क्या महत्त्व है?
उत्तर- शब्दकोश की तरह ही जिन ग्रंथों में मानव द्वारा संचित ज्ञान को संक्षेप
में प्रस्तुत किया जाता है अर्थात सभी विषयों की अत्यंत संक्षिप्त जानकारी दी जाती
है उसे ही संदर्भ ग्रंथ कहते हैं। संदर्भ ग्रंथ समस्त जानकारी एवं सूचनाओं के
संकलन होने से ज्ञान के भंडार माने जाते हैं। इनका महत्त्व गागर में सागर भरने के
समान है। संदर्भ ग्रंथों में किसी विषय पर तुरंत जानकारी मिल जाती है। इस कारण यह
अत्यंत महत्त्वपूर्ण व उपयोगी रहते हैं। इनमें जानकारियों एवं विविध विषयों का
संकलन क्रमानुसार और शब्दकोश के नियमों के अनुसार रहता है।
भ्रमरगीत से चयनित
कुछ पद- सूरदास
प्रश्न-
गोपियों को उद्धव का संदेश कैसा लग रहा है?
उत्तर-गोपियों को उद्धव का संदेश कड़वी ककड़ी के समान लग रहा है।
प्रश्न-
सूरदास भक्तिकाल की किस काव्य धारा के कवि हैं?
उत्तर- सूरदास भक्तिकाल की सगुण भक्ति शाखा में कृष्ण भक्ति काव्यधारा के कवि
माने जाते हैं।
प्रश्न-
सूरदास की भक्ति किस कोटि की मानी जाती है?
उत्तर- सूरदास की भक्ति सखा भाव की अर्थात सख्य भाव की मानी जाती है।
प्रश्न-
गोपियों को उद्धव का योग संदेश किसके समान लग रहा है?
उत्तर- गोपियों को उद्धव का योग संदेश कड़वी ककड़ी के समान लग रहा है। गोपियाँ
श्रीकृष्ण के साकार रूप से प्रेम करती हैं। उद्धव उनकी भावनाओं को न समझकर उन्हें
बार-बार योग साधना करने को प्रेरित कर रहे हैं। श्रीकृष्ण को भूलाकर निर्गुण, निराकार ईश्वर की आराधना करना गोपियों को तनिक भी नहीं सुहा
रहा था। इसलिए उन्होंने योग की तुलना कड़वी ककड़ी से की है।
प्रश्न-
सूरदास के पदों की काव्यगत विशेषताएं लिखिए।
उत्तर- सूरदास के पदों की काव्यगत विशेषताएँ निम्न हैं-
भाव पक्ष- इन पदों में गोपियों के उद्धव के साथ संवाद के
माध्यम से विरह की मार्मिकता, कृष्ण से अनन्य प्रेम, निर्गुण ब्रह्म पर सगुण ब्रह्म की श्रेष्ठता, गोपियों
की वाग्विदग्धता एवं वियोग शृंगार रस की छवि अप्रतिम है।
कला पक्ष- इन पदों की भाषा ब्रज है। अनुप्रास, उपमा,
रूपक, श्लेष और व्यतिरेक अलंकारों का प्रयोग हुआ है। संगीतात्मकता एवं माधुर्य तथा प्रसाद
काव्य गुणों का सम्यक निर्वहन हुआ है।
प्रश्न- ‘बिन गोपाल बैरिन भई कुंजै‘ पद के आधार पर गोपियों की विरह वेदना का वर्णन
कीजिए।
उत्तर- इस पद में गोपियाँ कृष्ण के विरह में दुःखी होकर उद्धव को बता रही हैं
कि सुख प्रदान करने वाली समस्त वस्तुएँ कृष्ण के वियोग में हमें कष्टकारक लग रही
हैं। श्रीकृष्ण के संयोग के समय ब्रज की ये लताएँ अत्यंत सुखकारी लगती थी किंतु अब
अग्नि की प्रचंड लपटों के समान कष्ट देने वाली लग रही हैं। यमुना का स्वच्छंद
प्रवाह, कोयल की मधुर ध्वनि, कमलों का खिलना, भ्रमरों का मधुर गुंजार आज सब
व्यर्थ है। शीतल पवन, कपूर और अमृतमयी चंद्र-किरणें आदि
समस्त शीतल उपकरण हमें सूर्य की किरणों के समान संताप दे रही हैं।
नीति के दोहे- रहीम
प्रश्न-
रहीम किसके भक्त थे?
उत्तर- रहीम कृष्ण के भक्त थे।
प्रश्न-
काज परे कछु और है, काज सरे कछु और।
रहीमन
भंवरी के भए, नदी सिरावत मोर।।
पद के माध्यम से कवि रहीम ने किन लोगों की ओर संकेत किया है या लोगों के किस
गुण के बारे में संकेत किया है?
उत्तर- कवि रहीम ने प्रस्तुत दोहे के माध्यम से लोगों के स्वार्थी स्वभाव पर
प्रहार किया हैं। मनुष्य की अवसरवादिता, और
मौकापरस्ती पर प्रहार किया है कि किस प्रकार मनुष्य अपना काम निकल जाने पर व्यवहार
बदल लेता है।
प्रश्न-
कवि रहीम ने रूठे लोगों को मनाने की बात क्यों कही है?
उत्तर- कवि रहीम कहते हैं कि रुठे हुए सज्जन व्यक्ति को मना लेना चाहिए। जिस
प्रकार से हम मोतियों की माला के टूट जाने पर उसको उन्हें माला में पिरो लेते हैं।
उसी प्रकार से रुठे हुए सज्जन भी मोतियों के समान है। अतः उन्हें बार-बार मनाते रहना चाहिए।
प्रश्न-
रहीम ने उत्तम प्रकृति के मनुष्य की क्या पहचान बताई है?
उत्तर- कवि रहीम कहते हैं कि उत्तम प्रकृति के व्यक्ति पर कुसंग का प्रभाव
नहीं पड़ता क्योंकि ऐसे व्यक्तियों का चरित्र विकारहीन होता है। कवि ने चंदन के
वृक्ष का उदाहरण देते हुए बताया है कि उस पर काले जहरीले साँप लिपटे रहते हैं
किंतु उस पर जहर का कोई असर नहीं पड़ता।
प्रश्न-
कवि रहीम ने किसी व्यक्ति की पहचान का क्या तरीका बताया है?
उत्तर- कवि रहीम व्यक्ति की पहचान का आधार उसके वाणी-व्यवहार को बताया है। वे
कहते हैं कि कौवा और कोयल दोनों दिखने में एक जैसे होते हैं लेकिन उनके बोलने से
ही पता चलता है कि कौन कोयल है और कौन कौवा। इसी प्रकार से मनुष्य के वाणी-व्यवहार
से ही पता चलता है कि कौन सज्जन है और कौन दुर्जन।
प्रश्न-
नीति काव्य के क्षेत्र में रहीम का स्थान सर्वोपरि है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- कवि रहीम को नीति संबंधी दोहों के कारण विशेष ख्याति प्राप्त हुई है।
उन्होंने अपने जीवन के विस्तृत अनुभवों को सरल एवं सुबोध भाषा में व्यक्त किया है।
कवि ने अपने निजी अनुभव के आधार पर काव्य रचना की है। उनके दोहे निजी अनुभव पर
आधारित हैं और समाज से जुड़े होने के कारण अधिक मार्मिक और प्रभावी बन पड़े हैं।
बिहारी सतसई के कुछ
पद: बिहारी
प्रश्न-
बिहारी किस काल और किस काव्य धारा के कवि थे?
उत्तर- बिहारी रीतिकाल के शृंगारी कवि थे। आप रीतिसिद्ध काव्यधारा के प्रमुख
कवियों में गिने जाते हैं।
प्रश्न-
समान आभा के कारण नजर न आने वाले नायिका के आभूषणों की पहचान किससे होती है?
उत्तर- नायिका के आभूषणों को स्पर्श करके उनकी कठोरता से ही उनकी पहचान की जा
सकती है।
प्रश्न-
कवि बिहारी ने यमुना तट की क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर- कवि बिहारी ने बताया है कि यमुना के तट पर पहुँचने पर वृक्षों, लताओं और घने कुंजो को सुखदायी, शीतल और
सुगंधित पवन से व्यक्ति के तन मन को सुख मिलता है और उसे लगता है जैसे वह
श्रीकृष्णकालीन ब्रज में पहुँच गए हों।
प्रश्न-
जगत् के चतुर चितेरे को भी मूढ़ बनना पड़ा। बिहारी ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर- नायिका का रूप सौंदर्य प्रतिपल बदल रहा था। चित्रकार के लिए गतिमान और
परिवर्तनशील वस्तुओं का चित्र बनाना कठिन होता है क्योंकि स्थिर वस्तु का ही चित्र
सही ढंग से बनता है। नायिका के गतिशील रूप सौंदर्य का चित्र न बना सकने से कवि ने
चतुर चित्रकार को भी मूढ़ बताया है। क्षण-क्षण में नयापन रखने वाले का चित्र कोई
नहीं बना सकता है।
प्रश्न-
ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों
उज्जलु होई। अनुरागी चित्त की इस गति का क्या रहस्य है?
उत्तर- कवि बिहारी ने प्रेम में डूबे व्यक्ति की गति विचित्र बताई है। क्योंकि सामान्य रूप से कोई वस्तु काले रंग में
डूबने पर काली हो जाती है परंतु कृष्ण प्रेम में डूबे चित्त की दशा ठीक इसके
विपरीत होती है। वह ज्यों-ज्यों साँवले रंग के कृष्ण के प्रेम में डूबता है
त्यों-त्यों उसकी स्थिति और अधिक उज्ज्वल और निर्मल हो जाती है अर्थात कृष्ण से
प्रेमाभक्ति रखने वाला अवगुणी व्यक्ति भी उज्ज्वल चरित्र वाला बन जाता है।
विरोधाभास अलंकार के कारण से इस पद में अर्थगत चमत्कार पैदा हुआ है।
वीर रस के कवित्त:
भूषण
प्रश्न-
भूषण के संकलित छंदों में कौनसा रस और गुण है?
उत्तर- कवि भूषण के संकलित छंदों में वीर रस और ओज गुण है।
प्रश्न-
भूषण की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर- भूषण की रचनाओं के नाम निम्न हैं- शिवराजभूषण, छत्रसालदशक, शिवाबावनी,
भूषणहजारा और भूषण उल्लास
प्रश्न-
तेरे हीं भुजानि जानी पर भूतल को भार है। कवित्त में कवि द्वारा शिवाजी की क्या
विशेषता बताई गई है?
उत्तर- कवित्त में कवि भूषण ने प्रशंसा भरे वचनों में बताया है कि उचित शासन
व्यवस्था एवं प्रजापालन का भारवहन करने में शिवाजी शेषनाग और हिमालय के समान हैं।
मानव का भरण पोषण करने के लिए ही धरती पर उनका जन्म हुआ है। शिवाजी अपनी प्रजा का
हित साधने में जहाँ सर्वसमर्थ हैं वहीं शत्रुओं का संहार करने में भी वे यमराज के
समान हैं। इस प्रकार शिवाजी को प्रजापालन में विशेष दक्ष बताया गया है।
प्रश्न-
पाठ्यक्रम में सम्मिलित अंश के आधार पर सिद्ध कीजिए कि भूषण वीर रस के कवि थे।
उत्तर- हिंदी साहित्य इतिहास के रीतिकाल में महाकवि भूषण वीर रस की कविता रचने
वाले अद्वितीय कवि थे। वैसे तो ‘शिवराजभूषण‘ में भूषण ने सभी रसों का वर्णन किया
है परंतु भूषण का मन वीर रस के वर्णन में विशेष रूप से रमा रहा है। उन्होंने
शिवाजी और छत्रसाल की वीरता एवं पराक्रम का अत्यंत ओजस्वी वर्णन किया है। वे इन
दोनों के आश्रय में रहे और इनकी वीरता के प्रशंसक भी। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि
‘आन राव राजा एक मन में लाऊँ अब, साहू को सराहौं
के अब सराहौं छत्रसाल को‘ रीतिकाल के कवि राजाओं की झूठी प्रशंसा करते थे परंतु
भूषण उनसे भिन्न हैं। उन्होंने हिंदू राष्ट्रीयता की रक्षा करने वाले, अन्याय का सामना करने वाले एवं मुगल
बादशाहों का सामना करने वाले महाराजा शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का वर्णन किया है।
इसीलिए भूषण को वीर रस का अप्रतिम कवि माना जाता है।
कविता- उषा
रचनाकार-
शमशेर बहादुर सिंह
प्रश्न-
उषा कविता में किस समय का वर्णन प्राप्त होता है?
उत्तर- उषा कविता में सूर्योदय के समय का वर्णन मिलता है।
प्रश्न- लाल केसर तथा लाल खड़िया चाक के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- उषा काल में जब धुँधले आसमान में सूर्य की हल्की लाल किरणें फैलने लगती
हैं तो उसके लिए कवि ने लाल केसर का फैलना बताया है। कुछ क्षण बाद जब आकाश राख के
रंग का लगता है तब सूर्य की लाल किरणें कुछ अधिक उभरने लगती हैं। इसी दृश्य को कवि
ने लाल खड़िया चाक को आकाश रूपी स्लेट पर मसलने जैसा बताया है। इस प्रकार कवि ने
भोर की लालिमा का चित्रण किया है।
प्रश्न-
उषा कविता की प्रमुख शिल्प गत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- उषा कविता की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं कि इसमें कवि ने परंपरा से हटकर
नवीन उपमानों का प्रयोग कर पाठकों का रुझान प्रकृति की तरफ किया है। श्लेष एवं
उपमा अलंकार के द्वारा उषाकाल के आकाश एवं चारों तरफ के आकर्षक एवं मनमोहक दृश्य
सुंदर शब्द चित्रों के माध्यम से उकेरे गए हैं। शब्दावली अत्यंत सरल, सुबोध, लघु आकार की एवं भावानुरूप
प्रयुक्त हुई है। बिम्ब योजना और शब्द-चित्र इसकी विशेषताएँ हैं।
प्रश्न-
शमशेर बहादुर सिंह की उषा कविता का प्रकृति चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- कवि अपनी छोटी सी कविता के माध्यम से कहता है कि भोर होने को है। गहरा
नीला आकाश एक विशालकाय नीले शंख जैसा प्रतीत हो रहा है। नीले आकाश में भोर का
धुँधला प्रकाश ऐसा लग रहा है जैसे वह राख से लीपा गया गीला चौका हो। यह आकाश एक
विशाल काली सिल के समान है जिसे केसर से धो दिया गया हो। नीले आसमान में उषा की यह
लालिमा इस प्रकार लगती है मानो स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया गया हो। यह नीले जल
में झिलमिलाता हुआ किसी रमणी की गौर वर्ण शरीर जैसा है जो लहरों के जल में खिलता
हुआ सा दिखाई दे रहा है और इसी के साथ ही सूर्य का उदय हो रहा है। सूर्य के उदय के
साथ-साथ भोर का यह मनमोहक दृश्य लुप्त होता जा रहा है।
प्रश्न-
उषा कविता में कवि का संदेश क्या है?
उत्तर- उषा कविता में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने यह संदेश व्यक्त किया है कि
प्रातः काल प्राकृतिक परिवेश में जिस प्रकार गतिशीलता और जीवंतता आ जाती है उसी
प्रकार हमें भी अपने जीवन को गतिशील एवं जीवंत रखना चाहिए। हमें प्रकृति से शिक्षा
ग्रहण करनी चाहिए। हमें आलस्य में नहीं पड़ना चाहिए। हमें अपने उत्थान के लिए
प्रयास करते रहना चाहिए और खुशियों से पुलकित रहना चाहिए।
पाठ्यपुस्तक सृजन
का गद्य खंड
पाठ - भय
लेखक-
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
प्रश्न-
भय किस प्रकार का संवेग है?
उत्तर- भय दुःखात्मक संवर्ग का भाव है।भय क्रोध का विपरीत मनोविकार है। इसमें
दुःख से बचने की अथवा उससे होने वाली हानि से दूर रहने की भावना बनती है।
पाठ्यपुस्तक- प्रश्नोत्तर हिंदी अनिवार्य कक्षा -12
प्रश्न-
भय के कितने रूप होते हैं?
उत्तर- भय के दो रूप होते हैं- पहला असाध्य और दूसरा साध्य। जिसका निवारण संभव
न हो उसे असाध्य कहते हैं तथा जिसे प्रयास से दूर किया जा सकता है वह भय का साध्य
रूप कहलाता है।
प्रश्न-
साहसी व्यक्ति कठिनाई में फँस जाने पर क्या करता है?
उत्तर- साहसी व्यक्ति कठिनाई में फँस जाने पर पहले तो जल्दी ही घबराता नहीं और
घबराता भी है तो जल्द ही संभलकर अपने बचाव कार्य में लग जाता है।
प्रश्न-
भीरुता की उत्पत्ति का मूल कारण क्या है?
उत्तर- कष्ट सहन करने की क्षमता न होने तथा अपनी शक्ति से कलह को दूर करने का
आत्मविश्वास न होने से भय या भीरुता की उत्पत्ति होती है।
प्रश्न-
आशंका और भय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- दुःख या आपत्ति का पूर्ण निश्चय न रहने पर उसकी संभावना मात्र के
अनुमान से जो आवेग-शून्य भय होता है, उसे
आशंका कहते हैं। मसलन एक घने जंगल में पैदल चलने वाला यात्री इस आशंका में रहता है
कि कहीं कोई चीता न मिल जाए, फिर भी वह चलता रहता है। यदि
उसे आवेगपूर्ण स्थिति में असली भय हो जाएगा, तो फिर वह जंगल
में एक कदम भी नहीं रखेगा। इस प्रकार आशंका से स्तम्भकारक स्थिति अल्पकालिक या कुछ
देर के लिए होती है, जबकि भय में वह दीर्घकालिक या पूर्ण रूप
से बनी रहती है।
प्रश्न-
सभ्य और असभ्य प्राणियों के भय में क्या अंतर है?
उत्तर- सभ्य समाज में भय के कारण लोग उतने नहीं घबराते जितने कि असभ्य लोग
घबराते हैं। असभ्य प्राणी भय के कारणों से सदैव अपनी रक्षा के लिए चिंतित रहता है।
इसी कारण जंगली और असभ्य जातियों में भय अधिक होता है। इसके विपरीत सभ्य लोग भय से
इतने भयभीत नहीं होते जिनते कि असभ्य लोग। सभ्य लोग अपनी बुद्धि के बल पर भय के
कारणों का समाधान खोज लेते हैं। इस तरह सभ्य और असभ्य प्राणियों की भय में काफी
अंतर है।
प्रश्न-
सभ्यता का विकास होने से पूर्व मनुष्य का भय किस प्रकार का था जो अब नहीं है? इस संबंध में आपका क्या कहना है?
उत्तर- सभ्यता का विकास होने से पूर्व मनुष्य का भय वर्तमान के भय से भिन्न
प्रकार का था। उस समय लोग भूत-प्रेत, जंगली
और हिंसक पशुओं से अधिक भयभीत रहते थे जबकि वर्तमान समय में मनुष्य को मनुष्य से
ही भय है। झूठे गवाह पेश करके मुकदमा जीत लेना, कानून की आड़
से दूसरों की संपत्ति हथिया लेना, कमजोर लोगों के खेत-खलिहान,
घर, रुपए-पैसे जबरन छीन लेना ये सब वर्तमान
समय के भय हैं।
पाठ- बाजार दर्शन
लेखक-
जैनेंद्र
प्रश्न-
लेखक के अनुसार बाजार का जादू किस राह से काम करता है?
उत्तर- लेखक के अनुसार बाजार का जादू आँख की राह से काम करता है।
प्रश्न-
पैसे की पर्चेजिंग-पावर से क्या आशय है?
उत्तर- पैसे की पर्चेजिंग पावर से आशय है- पैसे की क्रय शक्ति या पैसे की
प्रचुरता से मनचाही वस्तुएँ खरीदने की क्षमता।
प्रश्न-
हमें बाजार से वस्तुएँ खरीदते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर- बाजार दर्शन पाठ के अनुसार बाजार से वस्तुएँ खरीदते समय मन भरा होना
चाहिए। उस समय मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। क्रय-शक्ति होने पर भी लालच नहीं रखना
चाहिए और बाजार की चकाचौंध से आकर्षित होने से भी बचना चाहिए। केवल उपयोगी एवं
आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने का दृढ़ निश्चय करना चाहिए। लालच से या व्यर्थ की लालसा
से सर्वथा मुक्त रहना चाहिए। विवेक और पर्चेजिंग-पावर का सदुपयोग करना चाहिए।
प्रश्न-
बाजारूपन से क्या आशय है? किस प्रकार के
व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजार की सार्थकता किसमें है?
उत्तर- बाजारूपन का आशय है ऊपरी चमक-दमक और कोरा दिखावा। जब व्यापारी बेकार की
वस्तुओं को आकर्षित बना कर ग्राहकों को ठगने लगता है तो वहाँ बाजारूपन हावी हो
जाता है। ग्राहक भी जब क्रय-शक्ति के गर्व में अपने पैसे से अनावश्यक चीजों को
खरीद कर विनाशक शैतानी-शक्ति को बढ़ावा देता है तो बाजारूपन हावी हो जाता है। परंतु
जो लोग बाजार की चकाचौंध में न आकर अपनी आवश्यकता की ही वस्तुएँ खरीदते हैं वे
बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही बाजार
का कार्य है और उसी में उसकी सार्थकता है।
प्रश्न-
लेखक ने किस अर्थशास्त्र को मायावी तथा अनीतिशास्त्र कहा है?
उत्तर- धन एवं व्यवसाय में उचित संतुलन रखने और विक्रय, लाभ आदि में मानवीय दृष्टिकोण रखने से अर्थशास्त्र को उपयोगी
माना जाता है परंतु जब बाजार का लक्ष्य अपने स्वार्थ में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त
करने और तरह-तरह के विज्ञापन द्वारा ग्राहकों को ठगने और उनके साथ कपट भरा आचरण
करने का हो जाता है तब लेखक ने उस अर्थशास्त्र को मायावी और अनीतिशास्त्र कहा है।
प्रश्न-
बाजार दर्शन निबंध का प्रतिपाद्य या संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- बाजार दर्शन निबंध में लेखक ने आधुनिक काल के बाजारवाद और उपभोक्तावाद
का चिंतन कर इसके मूल तत्त्व को समझाने का प्रयास किया है। इसका संदेश यह है कि
व्यक्ति को बाजार के आकर्षण से बचना चाहिए। अपनी पर्चेजिंग पावर का दुरुपयोग नहीं
करना चाहिए तथा बाजार जाने से पहले अपनी आवश्यकताओं की पहचान कर लेनी चाहिए तथा
जरूरत की वस्तुओं को तय कर लेना चाहिए। तभी उसे बाजार का लाभ मिल पाएगा और बाजार
की सार्थकता सिद्ध होगी।
पाठ- ठेले पर हिमालय(निबंध)
लेखक-
धर्मवीर भारती।
प्रश्न-
लेखक की सारी खिन्नता व चिंता कब दूर हो गई?
उत्तर- कौसानी पहुँचने पर हिमालय की शुभ्र-हिम दर्शन से लेखक की सारी खिन्नता
व निराशा दूर हो गई।
प्रश्न-
त्रिताप कौन-कौन से होते हैं? हिमालय
की शीतलता से वे कैसे दूर हो गए?
उत्तर- धर्म शास्त्रों में दैहिक, दैविक
और भौतिक कष्टों के ताप को त्रिताप कहा गया है। ये त्रिताप सांसारिक मनुष्य को
कष्ट देते हैं तथा ईश्वर की कृपा भक्ति से उनसे शांति मिलती है। लेखक को जब हिमालय
के दर्शन हुए तो उनके मन की खिन्नता, शारीरिक थकान, सारे संघर्ष एवं अंतर्द्वंद्व सब एक साथ जैसे नष्ट हो गये। इस प्रकार
हिमालय की शीतलता, पवित्रता और शांति से लेखक की सारी
खिन्नता दूर हो गई और वह अब एकदम ताजगी महसूस कर रहे थे।
प्रश्न-
कौसानी के प्राकृतिक सौंदर्य को लेकर लेखक ने क्या सुना था?
उत्तर- लेखक ने अनेक लोगों से सुना था कि कौसानी में अतुलित प्राकृतिक सौंदर्य
है। उनके एक सहयोगी ने कहा था कि कश्मीर के मुकाबले उन्हें कौसानी अधिक आकर्षक
लगा। गाँधीजी ने यहीं पर अनासक्ति योग लिखा था और कहा था कि कौसानी में
स्विट्जरलैंड का आभास होता है। कौसानी सोमेश्वर घाटी की ऊँची पर्वतमाला के शिखर पर
स्थित सुंदर पर्वतीय स्थल है वह पर्यटकों को अत्यधिक आकर्षित करता है।
प्रश्न-
बिलकुल ठगे गए हम लोग। लेखक को ऐसा क्यों लगा कि वह ठगे गए?
उत्तर- बस कौसानी के अड्डे पर रुकी। यह एक छोटा और उजड़ा-सा गाँव था। वहाँ बर्फ
का नामोनिशान भी नहीं था। लेखक बर्फ को निकट से देखने की इरादे से कौसानी गया था।
उसने कौसानी की बहुत तारीफ सुनी थी। अतः लेखक को लगा कि लोगों की बातों पर विश्वास
करके गलती की। उसके अनुसार वह बुरी तरह ठगा गया था।
प्रश्न-
और यकीन कीजिए इसे बिलकुल ढूंढना नहीं पड़ा, बैठे-बैठे
मिल गया। लेखक धर्मवीर भारती ने किसके बारे में कहा है?
उत्तर- लेखक धर्मवीर भारती ने यह बात अपने निबंध ‘ठेले पर हिमालय‘ की शीर्षक
के बारे में कही है। लेखक अपने गुरुजन उपन्यासकार मित्र के साथ पान की दुकान पर
खड़ा था। वहाँ एक बर्फ वाला ठेले पर बर्फ की सिल्लियाँ लादकर लाया। उसे देखकर मित्र
बोले यह बर्फ तो हिमालय की शोभा है।
सुनते ही लेखक ने अपने लेख का शीर्षक ‘ठेले पर हिमालय‘ रख दिया।
प्रश्न-
कौसानी जाते समय लेखक के चेहरे पर अधैर्य, असंतोष
एवं क्षोभ क्यों झलक उठा?
उत्तर- लेखक को बताया गया था कि कौसानी बहुत ही सुंदर स्थान है। लेकिन
कष्टप्रद, टेढ़ी-मेढ़ी सड़क देखकर और बर्फ का
नामोनिशान न पाकर लेखक के मन में अधैर्य, असंतोष और क्षोभ
पैदा हो गया।
प्रश्न-
पर्यटन का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर- पर्यटन का आशय भ्रमण करने या स्वेच्छा से कहीं भी सैर करने जाने से है।
मानव की जिज्ञासा, महत्त्वाकांक्षा, सौंदर्य-प्रियता, ज्ञानार्जन की आदत उसमें पर्यटन की
रुचि जागृत करती है। पर्यटन धार्मिक, ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक
दृष्टि से प्रसिद्ध स्थानों का किया जाता है। शैक्षिक दृष्टि से भी पर्यटन का
विशेष महत्त्व है। लोगों के मुख से किसी स्थान की विशेषता सुन लेने या पुस्तकों को
पढ़ने से उस स्थान की पूरी जानकारी नहीं मिल पाती है परंतु वहां भ्रमण करने से,
अपनी आँखों से सारे स्थानों पर घूमने से उसका सर्वांगीण ज्ञान हो
जाता है, जो सदा-सदा के लिए मन में अंकित हो जाता है। इस
प्रकार पर्यटन का हमारे जीवन पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। पर्यटन से ज्ञान की
प्राप्ति होती है। पर्यटन आनंदवर्द्धक एवं मनोरंजक भी होता है। शरीर में
चुस्ती-फुर्ती आ जाती है। जीवन के अनुभव बढ़ते हैं। लोगों से मेलजोल बढ़ता है और
अनेक स्थानों की परंपराओं, खानपान, वाणी-व्यवहार
का पता चलता है। पर्यटन से व्यवसाय-व्यापार भी बढ़ता है। पर्यटन स्थलों का विकास भी
होता है तथा जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण की जानकारी मिलती है। इस प्रकार पर्यटन का
मानव जीवन में अत्यधिक महत्त्व है।
पाठ- तौलिए(एकांकी)
लेखक-
उपेंद्रनाथ अश्क
प्रश्न-
चूहासैदन शाह के लोगों की तंदुरुस्ती का राज क्या था?
उत्तर- डॉक्टरों के अनुसार चूहासैदन शाह के एक जाट के रक्त का परीक्षण किया
था। उन्हें मालूम हुआ कि वहाँ के लोगों के रक्त में रोग का मुकाबला करने वालों की
लाल कीटाणु अधिक मात्रा में हैं। ये लोग दही और लस्सी का प्रयोग अधिक करते हैं।
दही में भी बहुत-सी बीमारियों के कीटाणुओं को मारने की शक्ति होती है। रोगों को
रोकने की शक्ति होने से चूहासैदन शाह के लोग तंदुरुस्त रहते थे।
प्रश्न-
तौलिए एकांकी में आधुनिक जीवन की किन विसंगतियों का चित्रण हुआ है?
उत्तर- एकांकी में आधुनिक शहरी मध्यवर्गीय सभ्य और शिक्षित कहलाने वाले समाज
की अडम्बरप्रियता, अनुकरण की प्रवृत्ति, स्वयं को सब कुछ अधिक मानने की प्रवृत्ति तथा कृत्रिम दिखावे की आदत आदि विसंगतियों
का चित्रण किया गया है। इस तरह की प्रवृत्तियों से उनके पारिवारिक रिश्तों में
प्रगाढ़ता एवं आत्मीयता नहीं रहती है। फलस्वरूप सहजता और सरलता से जीवन जीने की
आनंद लुप्त हो जाता है। एकांकी में इन्हीं विसंगतियों का चित्रण किया गया है।
प्रश्न-
तौलिए एकांकी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- तौलिए एकांकी में मध्यमवर्गीय परिवारों में तथाकथित सभ्यता एवं सुरुचि
के नाम पर जो सिद्धांत गढ़े जाते हैं और आडंबर और दिखावे की प्रवृत्ति बन रही है।
उस पर सशक्त व्यंग्य किया गया है। सफाई रखना अच्छा गुण है किंतु स्वच्छता के प्रति
सनक सवार होना भी ठीक नहीं है क्योंकि इससे परिवार में अशांति रहती है।
पाठ- ममता(कहानी)
लेखक-
जयशंकर प्रसाद
छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि। ऐतिहासिक उपन्यास, नाटक, निबंध एवं कहानियों के लेखक।
प्रश्न-
ममता ने स्वर्ण मुद्राओं का उपहार लेने से मना क्यों कर दिया था?
उत्तर- ममता संतोषी और त्यागी स्वभाव की थी। उसमें जरा भी लोभ-लालच नहीं था।
उसके पिता जो स्वर्ण मुद्राएं लाए थे, वे
विधर्मी से रिश्वत रूप में ली गई थी। उसे म्लेच्छ से उत्कोच कदापि स्वीकार नहीं
था। वह मानती थी कि विपत्ति आने पर ब्राह्मण होने के नाते अन्य लोग उनकी सहायता
अवश्य करेंगे। अतः भावी विपदा की आशंका से घूस लेना अनुचित मानकर ममता ने स्वर्ण
मुद्राएं लेने से मना कर दिया था।
प्रश्न-
ममता कहानी में भारतीय संस्कृति के किन-किन मूल्यों को उभारा गया है?
उत्तर- ममता कहानी के माध्यम से भारतीय संस्कृति के निम्न मूल्यों पर प्रकाश डाला गया है-
· शरणागत की सहायता करनी चाहिए।
· विपदा ग्रस्त व्यक्ति को आश्रय देना मानव का कर्तव्य है।
· किसी भी हालत में उत्कोच या रिश्वत नहीं लेनी चाहिए।
· त्याग, संतोष, निर्लोभ,
सहनशीलता आदि गुणों को अपनाना चाहिए।
· कृतज्ञता एवं मानवता को परम धर्म मानना चाहिए।
· दीन-दुःखियों पर दया करनी चाहिए।
प्रश्न-
ममता की झोपड़ी की स्थान पर किस बादशाह ने अष्टकोण मंदिर बनवाया था?
उत्तर- ममता की झोपड़ी के स्थान पर मुगल बादशाह अकबर ने अष्टकोण मंदिर का
निर्माण करवाया था।
प्रश्न-
मंत्री चूड़ामणि ने किस आशय से उत्कोच स्वीकार किया था?
उत्तर- मंत्री चूड़ामणि को जवानी में विधवा हुई पुत्री ममता की चिंता थी।
चूड़ामणि वृद्ध था और वह ममता को भविष्य में बेसहारा होने पर भी सुख-सुविधा मिले, इसके लिए धन संचित करना चाहता था। उसे ज्ञात था कि रोहतास
दुर्ग का सामंत कमजोर है और उसका शीघ्र ही पतन हो सकता है और शेरशाह उस पर अधिकार
कर सकता है। तब न उसका मंत्री पद रहेगा और न जीवन। ऐसी दशा में ममता सुखी रहें इसी
आशय से उन्होंने उत्कोच लिया था।
प्रश्न-
ममता कहानी में जयशंकर प्रसाद ने भारतीय नारी के किन गुणों का चित्रण किया है?
उत्तर- ममता कहानी में जयशंकर प्रसाद में भारतीय नारी के विविध गुणों का
चित्रण किया है। ममता के माध्यम से भारतीय नारी को त्याग, स्वाभिमान, जातीय गौरव, जातीय संस्कार, सेवाभाव, देशप्रेम, कष्ट-सहिष्णुता और नैतिक आचरण के साथ ही
अतिथि सेवा तथा शरणागत सुरक्षा जैसे गुणों से मंडित बताया गया है। प्रसाद ने
भारतीय नारी में जातीय स्वाभिमान, कर्तव्य निष्ठा एवं आस्तिक
भावना आदि गुणों का चित्रण किया है।
भाषा, लिपि और व्याकरण संबंधी प्रश्न-
प्रश्न-
भाषा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और विचारों के
आदान-प्रदान के लिए काम में लिए जाने वाले ध्वनि संकेत ही भाषा कहलाते हैं। इसमें
साहित्य रचना भी होती है।
प्रश्न-
बोली किसे कहते हैं?
उत्तर- बोली भाषा का वह रूप है जिसका व्यवहार बहुत ही सीमित क्षेत्र में होता
है। भाषा का यह रूप मूलतः भूगोल पर आधारित होता है। यह साहित्यिक नहीं होती।
प्रश्न-
विभाषा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- विभाषा का क्षेत्र बोली से थोड़ा विस्तृत तथा भाषा से थोड़ा कम होता है।
यह एक प्रांत या उपप्रांत में प्रचलित होती है। वस्तुतः जब कोई बोली अपना क्षेत्र
विस्तृत कर परिष्कृत हो जाती है और एक बड़े क्षेत्र के निवासियों द्वारा बोली जाने
लगती है तो वह विभाषा कहलाती है। इसमें अल्प मात्रा में साहित्य रचना भी होती है।
प्रश्न-
भाषा के कितने रूप होते हैं?
उत्तर- भाषा की दो रूप माने जाते हैं- लिखित एवं मौखिक। भाषा का एक और रूप भी
देखने में आता है जिसे सांकेतिक कहा जाता है।
प्रश्न-
भाषा के किस रूप में समाज की संस्कृति, इतिहास
व साहित्य सुरक्षित रहते हैं?
उत्तर- किसी भी भाषा के दो स्वरूप होते हैं लिखित एवं मौखिक। मूल रूप से तो
भाषा का लिखित रूप ही समाज की संस्कृति, इतिहास
व साहित्य का संरक्षक होता है लेकिन हमने देखा है कि वाचिक या मौखिक रूप से भी
संस्कृति, इतिहास एवं साहित्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में
स्थानांतरित हुए हैं।
प्रश्न-
लिपि किसे कहते हैं? हिंदी की लिपि कौनसी है?
उत्तर- भाषा के लिखित रूप को ही लिपि कहा जाता है अर्थात भाषा के ध्वनि
संकेतों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होने वाले प्रतीक चिह्न ही लिपि है। हिंदी
भाषा की लिपि का नाम देवनागरी है।
प्रश्न-
देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- देवनागरी एक आदर्श एवं वैज्ञानिक लिपि है। एक आदर्श एवं वैज्ञानिक सहज
रूप में देखी जाने वाली समस्त विशेषताएँ देवनागरी में दृष्टिगत होती हैंय यथा-
· ध्वनि के अनुरूप चिह्नों के नाम।
· एक ध्वनि के लिए एक चिह्न। क्, च्,
ट् इत्यादि
· लिपि चिह्नों की पर्याप्त संख्या।
· लघु एवं दीर्घ स्वरों के लिए स्वतंत्र चिह्न।
· सुंदर एवं कलात्मक लेखन।
प्रश्न- भारत की प्राचीन लिपियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर- प्राचीन भारत में मुख्यतः दो लिपियाँ प्रचलित थीं- ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपि।
प्रश्न-
भारत की प्राचीन लिपियों के बारे में लिखिए।
उत्तर- ब्राह्मी लिपि- यह लिपि भारत की व्यापक एवं श्रेष्ठ लिपि मानी जाती है।
यह बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी। खरोष्ठी लिपि- यह लिपि विदेश से भारत आई थी। यह
ईरान से पश्चिमोत्तर के रास्ते भारत आई। यह दाएँ से बाएँ लिखी जाती है। इसमें 5
स्वर एवं 32 व्यंजन अर्थात कुल 37 वर्ण हैं। इस लिपि के अक्षर खर अर्थात गधे के
ओष्ठों के समान बेढ़ंगे होने के कारण इसका नाम खरोष्ठी पड़ा। एक अन्य मत के अनुसार
गधे की खाल पर लिखे जाने के कारण इसे खरपोश्त (खर-पृष्ठ) कहा जाता था इसी का
अपभ्रंश खरोष्ठ एवं खरोष्ठी के रूप में हुआ।
प्रश्न-
व्याकरण किसे कहते हैं?
उत्तर- व्याकरण नियमों का वह शास्त्र है जिसके द्वारा भाषा को शुद्ध बोलने व
लिखने का ज्ञान प्राप्त होता है।
प्रश्न-
व्याकरण किसे कहते हैं?
उत्तर- व्याकरण वह शास्त्र है जो हमें किसी भाषा के शुद्ध रूप को लिखने और
बोलने की नियमों का ज्ञान करवाता है। व्याकरण के नियमों से भाषा में स्थिरता आती
है। नियमों की स्थिरता से भाषा में एक प्रकार की मानकता स्थापित होती है। यही
मानकता भाषा को परिनिष्ठित एवं परिष्कृत रूप प्रदान करती है। अतः व्याकरण ही ऐसा
शास्त्र है जो भाषा को सर्वमान्य, शिष्ट-सम्मत
एवं स्थायी रूप प्रदान करता है।
प्रश्न-
भाषा के किस रूप में व्याकरण सम्मतता की संभावना रहती है?
उत्तर- भाषा के दो रूप प्रयुक्त होते हैं- लिखित और मौखिक। दोनों ही रूप
व्याकरण के नियमों से अनुशासित होते हैं परंतु मौखिक रूप में व्याकरण का अनुशासन
थोड़ा कम होता है। व्यक्ति धाराप्रवाह बोलता है अतः व्याकरण के नियमों का उल्लंघन
स्वाभाविक हो जाता है। लिखित रूप में भाषा का प्रयोग एक विचार के साथ होता है।
लेखक के पास समय भी होता है। शीघ्रता अपनाना आवश्यक नहीं होता और सबसे खास बात
लेखन के बाद संशोधन की गुंजाइश भी बनी रहती है। अतः लिखित रूप अधिक व्याकरण सम्मत
होता है।
प्रश्न-
भाषा और व्याकरण का संबंध बताइए।
उत्तर- व्याकरण भाषा की वर्तनी को निश्चित रूप प्रदान करता है अर्थात जो भाषा
मानक रूप में प्रयुक्त होती है उसके वर्णो, व्यंजनों,
शब्दों एवं वाक्यों का विवेचन एवं प्रतिपादन व्याकरण के द्वारा ही
होता है। अतः वाचिक माध्यम भाषा को बोलने लिखने में नियमों से साधने वाली वर्तनी
को व्याकरण कहते हैं। स्पष्ट रूप से व्याकरण भाषा के स्वरूप को नियंत्रित करती है
उसे शुद्ध रूप प्रदान करती है। व्याकरण के अभाव में भाषा का परिष्कार नहीं हो
पाता।
प्रश्न-
व्याकरण के प्रमुख अंगो का परिचय दीजिए।
उत्तर- व्याकरण के मुख्य रूप से चार अंग होते हैं-
1. वर्ण विचार- इसके अंतर्गत वर्णों से संबंधित उनके आकार, उच्चारण, वर्गीकरण एवं उनके मेल से शब्द
निर्माण प्रक्रिया का ज्ञान होता है।
2. शब्द विचार- इसमें शब्द के भेद उत्पत्ति, व्युत्पत्ति
एवं रचना के साथ-साथ शब्दों के प्रकारों का ज्ञान होता है।
3. पद विचार- इसमें शब्द से पद निर्माण की प्रक्रिया और पदों के विविध रूपों का
वर्णन प्राप्त होता है।
4. वाक्य विचार- इसके अंतर्गत वाक्य से संबंधित उसके भेद, अन्वय, विश्लेषण, संश्लेषण,
रचना एवं वाक्य निर्माण प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न-
भाषा की प्रमुख इकाइयों का परिचय दीजिए।
उत्तर- भाषा की निम्न इकाइयाँ होती हैं-
1. ध्वनि- हमारे मुख से निकलने वाली प्रत्येक आवाज ध्वनि कहलाती है।
2. वर्ण- वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई मानी जाती है।
3. शब्द- वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं।
4. पद- वाक्य में प्रयुक्त पद को शब्द कहा जाता है अर्थात जब कोई शब्द वाक्य में
प्रयुक्त होकर अन्य शब्दों के साथ अपना संबंध स्थापित कर लेता है तो वह पद कहलाता
है।
वाक्य- शब्दों के मेल से जब एक पूर्ण विचार प्रकट होता है तो वह शब्द समूह
वाक्य कहलाता है अर्थात शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं।
अलंकार संबंधी
प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
‘काली घटा का घमंड घटा‘ पंक्ति में कौन सा अलंकार है? समझाइए।
उत्तर- उक्त पंक्ति में यमक अलंकार है। जब किसी पद में एक ही शब्द एक से अधिक
बार प्रयुक्त हो और हर बार उसका अलग अर्थ ग्रहण किया जाए तो वहाँ यमक अलंकार माना
जाता है। प्रस्तुत पंक्ति में घटा शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ है और दोनों बार
अलग-अलग अर्थ प्रकट हुए हैं। घटा- बादलीध्मेघमाला और कम होना।
प्रश्न-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून।।
प्रस्तुत
पद में कौन सा अलंकार है, समझाइए।
उत्तर- प्रस्तुत पद में श्लेष अलंकार है। जब कोई शब्द प्रसंग के अनुसार
अलग-अलग अर्थ प्रकट करने लगता है तो वहाँ श्लेष अलंकार माना जाता है। उक्त पद में
पानी शब्द मोती, मनुष्य और चूने के संदर्भ में क्रम
से चमक, मान-सम्मान और जल के अर्थ को प्रकट कर रहा है।
प्रश्न-
चरण धरत चिंता करत, भावत नींद न शोर।
सुवरण
को ढूँढ़त फिरे, कवि, कामी अरु चोर।।
प्रस्तुत
पद में अलंकार का व कारण बताइए।
उत्तर- उक्त पद में श्लेष अलंकार है जब किसी पद में प्रयुक्त कोई एक शब्द
संदर्भ के अनुसार अलग-अलग अर्थ प्रकट करने लगता है तो वहाँ श्लेष अलंकार माना जाता
है। प्रस्तुत पद में सुवरण शब्द कवि के संदर्भ में सुंदर रचना, कामी पुरुष के संदर्भ में गौर वर्ण स्त्री और चोर के संदर्भ
में स्वर्ण या सोने के अर्थ की प्रतीति करवा रहा है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार माना
जाएगा।
प्रश्न-
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सो।
वारै
उजियारो करे, बाढ़े अंधेरो होय।।
प्रस्तुत
पद अलंकार का प्रकार व कारण बताइए
उत्तर- प्रस्तुत पद में श्लेष अलंकार प्रयुक्त हुआ है। जब किसी पद में कोई
शब्द संदर्भ के अनुसार अलग-अलग अर्थ प्रकट करता है तो वहाँ श्लेष अलंकार माना जाता
है। उक्त पद में दीपक और कपूर में समानता बताते हुए ‘वारे‘ और ‘बाढ़े‘ शब्द के अर्थ
दोनों के संदर्भ में अलग-अलग प्रकट हुए हैं। अतः यहाँ श्लेष अलंकार माना जाएगा।
प्रश्न-
‘कोटि कुलिश सम वचन तुम्हारा‘ पद में अलंकार और उसका कारण बताइए।
उत्तर- प्रस्तुत पद में उपमा अलंकार है। जब किसी पद में किसी एक सामान्य
पदार्थ को एक प्रसिद्ध पदार्थ के समान मान लिया जाता है तो वहाँ उपमा अलंकार माना
जाता है। प्रस्तुत पद में लक्ष्मण के वचनों को करोड़ों पत्थरों के समान कठोर बताया
गया है। अतः यहां उपमा अलंकार माना जाएगा।
प्रश्न-
काम सा रूप, प्रताप दिनेश सा सोम सा शील है, राम महीप का।
प्रस्तुत
पद में अलंकार व उसका कारण बताइए।
उत्तर- प्रस्तुत पद में उपमा अलंकार है। जब किसी साधारण चीज को किसी एक
प्रसिद्ध पदार्थ के समान मान लिया जाता है तो वहाँ उपमा अलंकार माना जाता है। उक्त
पद में राम को कामदेव, सूर्य और चंद्रमा के समान माना गया
है। अतः उपमा अलंकार माना जाएगा।
प्रश्न-
अरुण भए कोमल चरण, भूवि चलबे ते मानु। प्रस्तुत पद में अलंकार
और उसका कारण बताइए।
उत्तर- उक्त पद में उत्प्रेक्षा अलंकार प्रयुक्त हुआ है। जब किसी पद में उपमेय
उपमान को समान तो नहीं किंतु उपमेय में उपमान की संभावना प्रकट की जाती है तो वहाँ
उत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।
प्रश्न-
‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए‘ प्रस्तुत पद में अलंकार का कारण प्रकार और
कारण लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत पद में अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है। जब किसी काव्य रचना
में किसी एक ही वर्ण की एक निश्चित क्रम में आवृत्ति होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार
माना जाता है।
प्रश्न-
‘सब जाति फटी दुःख की दुपटी, कपटी
रहें न जहँ एक‘ प्रस्तुत पद में कौनसा अलंकार प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर- प्रस्तुत पद में अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है। जब किसी काव्य रचना
में किसी एक ही वर्ण की निश्चित क्रम में आवृत्ति होती है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार
माना जाता है।
प्रश्न-
पूत कपूत तो क्यों धन संचौ,
पूत
सपूत तो क्यों धन संचौ?
पद
में प्रयुक्त अलंकार और उसका कारण लिखिए।
उत्तर- विवेच्य पद में अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है। जब किसी काव्य रचना
में किसी एक ही वर्ण की एक निश्चित क्रम में आवृत्ति होती है तो वहाँ अनुप्रास
अलंकार माना जाता है। यह लाटानुप्रास का उदाहरण है। जहाँ पूरे पद की जो की त्यों
आवृत्ति होती है परंतु अर्थ में परिवर्तन नहीं होता तो वहाँ लाटानुप्रास माना जाता
है।