यह कहानी एक शख्स की जिसने पूरा जीवन समाज सेवा में लगा दिया। यह कहानी हैं ऐसे दानवीर की जिसने अपनी सारी संपत्ति स्कूलों के नाम कर दी। यह कहानी हैं ऐसे शख्स की जिसने अब तक 4 करोड़ रुपये से ज्यादा छात्रों को उपहार के तौर पर प्रोत्साहित करने के लिए दे दिए। हम आज बात कर रहे है नागौर जिले की जायल तहसील के रहने वाले पूर्णाराम गोदारा की, जो जगत मामा के नाम से मशहूर हैं। आप यह कहानी पढ़ने के बाद सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आज इस चकाचौंध भरी जिंदगी में कोई आदमी ऐसा भी हैं।
वाह रेे मामा!🙏वाह जिंदगी! इस चराचर में प्रतिदिन लाखों प्राणी जन्म लेते हैं और लाखों ही इस मिट्टी में मिल जाते हैं, जो अगले ही दिन विस्मृत हो जाते हैं। परंतु कुछ इन्सान, उन्हें देवपुरुष कहना ज्यादा सही होगा, ऐसे अवतरित होते हैं जिनका अवतरण केवल मानव कल्याण और परहित के लिए ही होता है।आखिर कौन हैं यह जगत मामा?
आज मोह-माया से भरी इस दुनियां में एक ऐसा शख्स भी हैं, जो मोह-माया त्याग अपना जीवन छात्रों के नाम कर रहा हैं। जगत मामा राजस्थान के नागौर जिले की जायल तहसील के रहने वाले 85 वर्षीय पूर्णाराम गोदारा हैं। पूर्णाराम गोदारा सुबह होते ही घर से निकल पड़ते हैं और किसी भी स्कूल में पहुंच जाते हैं। स्कूल में बच्चों के बीच किसी ऐसे चेहरे को ढूंढने लग जाते हैं, जो आगे जाकर कुछ बन सके। फिर उन्हें अपनी मर्जी से नकद इनाम देते हैं। किसी भी स्कूल में कोई होनहार छात्र दिखाई देता हैं, तो उसको जगत मामा अपनी जेब से नकद ईनाम देते हैं।
जगत मामा जीवन परिचय :-
राजोद गांव में आज से लगभग 90 वर्ष पूर्व इस नागौर की पावन धरती पर प्रगट हुए। कुदरत ने शायद पहले ही यह निश्चय कर लिया होगा कि यह इन्सान अपने जीवन की पूर्णता सिद्ध करेगा, इसलिए नाम रखा गया पूर्णाराम! हां, मैं उन्हीं पूर्णाराम, जो नागौर जिले में ही नहीं आसपास के सभी जिलों में मामा (जगत मामा) के नाम से विख्यात हुए, की बात कर रहा हूं जो अब हमारे बीच में नहीं रहे।
जगत मामा का जीवन परमार्थ के लिए समर्पित :- एक महा मानव मामा क्या, एक सरलता की प्रतिमूर्ति, सादगी को वास्तविक अर्थ देता एक सीधा साधा सच्चा मानव,दिखावे और आडंबर से पूर्णतः मुक्त, निस्वार्थ कर्मयोगी, अपने मान सम्मान और प्रशंशा की चाहत से कोसों दूर रहने वाला योगी,अत्यंत साधारण वेशभूषा, प्यार और स्नेह से ओतप्रोत मर्दु भाषी, शिक्षा की अलख जगाने के लिए गांव गांव, स्कूल स्कूल एक अकेला चलता तपस्वी,जिसकी अपनी कोई मांग नहीं, सेंकड़ों,हजारों कोसों पैदल यात्रा, जहां आश्रय मिला वहीं रूखी सुखी खाकर रात गुजरने के साथ ही अथक चलने वाला राही,केवल देना और देना जिसका धेय, सबके लिए समान दृष्टि की विचारधारा,उंच नीच के भेद भाव से दूर और अंतिम और एकमात्र लक्ष्य सबके लिए शिक्षा का भाव।
परमार्थ के लिए सर्वस्व न्योछावर :- मामा के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को शब्दों में परिभाषित करना कठिन है, मैं इतना ही कह सकता हूं कि मामा जैसे सच्चे,सरल,दानवीर और शिक्षा के प्रति समर्पित इन्सान बिरले ही जन्म लेते हैं जो स्वयं अशिक्षित होते हुए भी सबको शिक्षित करने का धेय्य रखते हुए अपना सर्वस्व लूटा देते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि दानवीर मामा ने अपनी 300 बीघा जमीन परोपकार के लिए दान कर दी और अपने जीवन काल में लगभग 4 करोड़ रुपए शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए अपने भानुओ को बांट दिए और संपति के नाम पर अपने पास कुछ भी नहीं रखा।आज यद्यपि मामा का नस्वर शरीर हमारे बीच नहीं है परंतु मामा शिक्षा के लिए अपना सबकुछ निछावर कर हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गए।
अंत में मेरा सभी से एक विनम्र निवेदन🙏 चूंकि मामा ने बिना स्वार्थ के सबको शिक्षित करने के लिए अपना सबकुछ निछावर कर दिया, उनसे प्रत्येक माता पिता यह प्रेरणा ले कि कोई भी बालक बालिका शिक्षा से वंचित नहीं रहे, हर हाल में समाज के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा मिले,इसके लिए जो समर्थ हैं वो कमजोर की मदद करे। एक दूसरे का सहयोग करते हुए यदि हम प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित कर देंगे तो यही मामा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
परमआदरणीय मामा को मेरा शत शत नमन!