अलंकार की परिभाषा:-
काव्य की शोभा बढाने वाले तत्वों को अलंकार कहते है | अर्थात् जिस माध्यम से काव्य की शोभा में वृद्धि होती है, उसे अलंकार का नाम दिया जाता है |
अलंकार के भेद – मुख्य रुप से अलंकार के दो भेद होते है – 1. शब्दालंकार 2. अर्थालंकार
शब्दालंकार की परिभाषा – जहाँ काव्य मे शब्द के माध्यम से काव्य की शोभा मे वृद्धि होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है |
अर्थालंकार की परिभाषा – जहाँ काव्य में अर्थ के माध्यम से काव्य की शोभा मे वृद्धि होती है वहाँ अर्थालंकार होता है |
उपमा , रुपक , उत्पेक्षा अर्थालंकार के भेद हैं |
(i) उपमा अलंकार की परिभाषा – जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु की किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु से तुनला या समानता बताई जाय वहाँ उपमा अलंकार होता है |
उपमा अलंकार के चार अंग है, जिसका विवरण निम्न है –
(i) उपमेय या प्रस्तुत – जिस व्यक्ति या वस्तु की उपमा दी जाय |
(ii) उपमान या अप्रस्तुत – जिससे उपमा दी जाय |
(iii) साधारण धर्म – वह गुण जिसके कारण उपमेय और उपमान में समानता दिखाया जाय |
(iv) वाचक – वह शब्द जिसके द्वारा उपमेय तथा उपमान की समानता प्रकट हो, वाचक कहा जाता है |
उपमा अलंकार के उदाहरण –
1. पीपर पात सरिस मन डोला |
स्पष्टीकरण –
उपमान-पीपर का पत्ता
उपमेय – मन
साधारण धर्म – डोला
वाचक – सरिस
2. करि कर सरिस सुभग भुजदण्डा |
स्पष्टीकरण –
उपमेय – भुजदण्डा
उपमान – सूँड
वाचक – सरिस
साधारण धर्म – सुभग
3. मुख मयंक सम मंजु मनोहर |
4. छिन्न – पत्र मकरनन्द लुटी – सी, ज्यो मुरझाई हुई कली |
(ii) रुपक अलंकार की परिभाषा – जहाँ उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप हो वहाँ रुपक अलंकार होता है | रुपक अलंकार मे उपमेय और उपमान मे एकरुपता दिखाई जाती है |
रुपक अलंकार का उदाहरण –
चरन-कमल बन्दौ हरि राई |
स्पष्टीकरण – इस पद में भगवान की कमलवत चरणों की वन्दना की गई है | इसमे भगवान के चरण और कमल से न ही तुलना की गई है और न ही समानता बताई गई है | इसमे चरण और कमल में अभेद किया गया है |
इस कारण इस पद रुपक अलंकार है |
2. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग |
विकसे सन्त सरोज सब, हरषे लोचन भृंग ||
3. भज मन चरण – कँवल अविनासी |
4. मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता |
(iii) उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा –
जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाय, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है | इस अलंकार के जनु, जानो , मनु ,मानो, मनहुँ, जनहुँ आदि वाचक शब्द है |
उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण –
सोहत ओढै पीतु पटु, स्याम सलौनै गात |
मनौ नीलमनि – सैल पर, आतपु परयौ प्रभात ||
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त दोहे में भगवान श्रीकृष्ण के ‘सलोने गात’ तथा ‘पीतु पटु’ में नील मणि शैल की सम्भावना व्यक्त की गई है | ‘मनौ’ वाचक शब्द का प्रयोग किया गया है | अत: यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है |
2. चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट – पट झीन |
मानहु सुरसरिता बिमल जल उछरत जुग मीन ||
3. मोर – मुकुट की चन्दिकनु, यौं राजत नँदनंद |
मनु ससि सेखर की अकस, किय सेखर सत चंद||
4. धाए धाम काम सब त्यागी | मनहुँ रंक निधि लूटन लागी |
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