google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बगड़ावत देवनारायण फड़ भाग -17

बगड़ावत देवनारायण फड़ भाग -17



दीपकंवर का युद्ध में काम आना -2


बाबा रुपनाथ जी नियाजी को अपनी कुटिया के अन्दर ले जाते हैं। उन्हें एक जड़ी-बूटी देते हैं और कहते हैं कि इसे अपने साथ युद्ध-भूमि पर ले जाओ। नियाजी को जड़ी देकर बाबा रुपनाथ कहते हैं कि यह ऐसी जड़ी है जिसके असर से सिर कटने के बाद भी तुम ८० पहर तक दुश्मन से लड़ सकते हो। तुम इसे अपनी जांघ पर बांध लो लेकिन इसकी खबर किसी को भी मत देना। बाबा रुपनाथजी निया से कहते हैं कि निया सब पहर का युद्ध करने के बाद सीधा तू मेरे पास आना। नियाजी कहते है बाबा गुरुजी मैदान से दिन भर की लड़ाई के बाद ंगा। ७ कोस चलकर आप के पास आना तो मुमकिन नहीं है। बाबा रुपनाथजी कहते है कि तेरी बात सही है, मैं ही तेरे साथ चलता हूं और नेगदिया में ही धूणी रमा बाबा रुपनाथ और नियाजी साथ-साथ नेगदिया आ जाते हैं। बाबा रुपनाथ नेगदिया गांव के बाहर ही अपनी धूणी लगा लेते हैं। शंकर भगवान के अवतार बाबा रुपनाथ जी नियाजी को आशीर्वाद देकर युद्ध के लिये विदा करते हैं। और जब तक नियाजी युद्ध करते हैं तब तक नेगदिया छोड़ कर नहीं जाते हैं। हर सुबह सूरज उगने के साथ नियाजी रण का डंका बजा कर रावजी की सेना पर टूट पड़ते और कई सैनिको और सामंतो को मार डालते। रावजी के खास निजाम ताजूखां पठान, और अजमल खां पठान की १२ हजार सेना का सफाया कर नियाजी उनके सिर काट देते हैं।
हर शाम नियाजी युद्ध भूमि से वापस लौटते समय अपने गुरु बाबा रुपनाथ जी की धूणी पर आते हैं। बाबा रुपनाथजी अपने हाथ का कड़ा नियाजी की देह पर घुमाते हैं और धूणी की राख लगाकर, अपने कमण्डल में से पानी के छीटें देते है जिससे नियांजी के सारे घाव भर जाते हैं और शरीर पर कहीं भी तलवार या भाले की चोट के निशान नहीं रहते हैं। बाबा रुपनाथ कहते हैं कि ये बात किसी को मत बताना, किसी को भी इसका जिक्र मत करना। अब बावड़ी पर स्नान कर शिवजी का ध्यान करके घर जाओ। नियाजी बावड़ी पर स्नान करते हैं, शिवजी का ध्यान कर रंग महल में आते हैं। नेतुजी उन्हें भोजन करवाती है, पंखा झलती है। नियाजी अगली सुबह वापस रण क्षेत्र में आ जाते हैं और युद्ध में मालवा के राजा को मार गिराते हैं। मन्दसोर के मियां मोहम्मद की फौजो का सफाया कर देते हैं। मियां का सिर काट देते हैं और वापस बाबा रुपनाथजी के पास आते हैं। और फिर बाबा रुपनाथजी नियाजी के ऊपर अपना लोहे का कड़ा घुमाते हैं, धूणी की राख लगाते हैं, पानी के छीटें देते हैं। नियाजी के सारे घाव फिर से भर जाते हैं। ये क्रम कई दिनों तक चलता रहता हैं। रण क्षेत्र में तेजाजी उधर तेजाजी बगड़ावतों के बड़े भाई युद्ध क्षेत्र में आते हैं। जब नियाजी से युद्ध करके जाने के बाद रावजी की सेना खाना बना रही होती है, रावजी के सैनिक बाट्यो सेक रहे होते हैं। तब तेजाजी अपनी सेना के साथ युद्ध क्षेत्र में आते है उनकी बाट्या वगैरा सब बिखेर देते हैं और सेना में भगदड़ मचा कर वापस चले जाते हैं। दोनों भाईयों का ये क्रम ३-४ दिनों तक चलता रहता है।
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