SMILE 3.0 गृहकार्य दिनांक 07 सितम्बर
2021
कक्षा-9 विषय- हिन्दी
कबीरदास
संक्षिप्त जीवनपरिचय
- जन्म: विक्रमी संवत 1455 (सन् 1398 ई ) वाराणसी, (उत्तर प्रदेश, भारत)
- ग्राम: मगहर (उत्तर प्रदेश, भारत)
- मृत्यु: विक्रमी संवत 1551 (सन् 1494 ई )
- कार्यक्षेत्र: कवि, भक्त, (सूत कातकर) कपड़ा बनाना
- प्रमुख कृतियाँ: बीजक, साखी, सबद, रमैनी
- प्रभाव: सिद्ध, गोरखनाथ, रामानंद
- इनसे प्रभावित: दादू, नानक, पीपा, हजारी प्रसाद द्विवेदी
- भक्तिकालीन युग
में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे।
कबीर दास की साखियाँ
इस पाठ में कबीर द्वारा रचित सात सखियों का संकलन है। इनमें प्रेम का
महत्त्व, संत के लक्षण, ज्ञान की महिमा, बाह्याडंबरों का विरोध, सहज भक्ति का महत्त्व, अच्छे कर्मों की महत्ता आदि भावों का
उल्लेख हुआ है। इसके अलावा पाठ में कवि के दो सबद (पदों) का संकलन है, जिसमें पहले सबद में बाह्याडंबरों का विरोध तथा अपने भीतर ही ईश्वर
की व्याप्ति का संकेत है। दूसरे सबद में ज्ञान की आँधी रूपक के सहारे ज्ञान के
महत्व का वर्णन है। कवि का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी सभी
दुर्बलताओं पर विजय पा सकता है।
SMILE 3.0 गृहकार्य दिनांक 07 सितम्बर
2021
प्रश्न -1. कबीर की रचनाओ के संग्रह का क्या नाम है ?
उत्तर
– शिष्यों ने उनकी वाणियों (भाषाओं) का संग्रह “बीजक” नाम के एक ग्रंथ मे किया जिसके तीन मुख्य भाग हैं : साखी , सबद , रमैनी ।
प्रश्न -2 कबीर जी के अनुसार ह्रदय का विष अमृत में कब बदल जाता है ?
उत्तर
– सच्चा साधक ईश्वर रूपी प्रेमी के मिलने पर
मन की सारी बुराइयों रूपी विष को अच्छाइयों रूपी अमृत में बदल देता है।
प्रश्न -3 प्रभु के सच्चे साधक को किस प्रकार की साधना करनी चाहिए ?
उत्तर – कबीर कहते हैं कि हे साधकों ज्ञान-प्राप्ति के लिए तुम ज्ञान रूपी हाथी पर सहज समाधि में आसन लगाकर बैठ जाओ। इस संसार की परवाह मत करो क्योंकि यह संसार स्वान (कुत्ता) के समान है जो हाथी को मार्ग में चलते देखकर अकारण भौंकता रहता है। अपना समय और शक्ति व्यर्थ करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सच्चे साधक को संसार की परवाह न करते हुए सहज रूप से ईश्वर की साधना में लगे रहना चाहिए।
प्रश्न -4 कबीरजी ने असली ज्ञानी किसे कहा है ?
उत्तर
– कबीर दास कहते हैं कि पक्ष और विपक्ष के कारण सारा संसार विस्मृत है और अपने-अपने पक्ष (संप्रदाय) को श्रेष्ठ बताने में लगे हुए हैं। परन्तु जो निष्पक्ष होकर ईश्वर का भजन करता है वही सच्चा ज्ञानी है, वही सच्चा संत है।
प्रश्न -5 कबीरजी के अनुसार व्यक्ति महान कब बनता है ?
उत्तर
– कबीरदास यह कहना चाहते हैं कि व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है ना कि ऊंचे कुल में जन्म लेने मात्र से। मनुष्य के अच्छे कर्म ही उसे महान बनाते हैं। उदाहरण देते हुए कबीर कहते हैं कि सोने के पात्र में शराब भरी हो तो साधु व्यक्ति उसकी निंदा ही करते हैं। अर्थात स्वर्ण पात्र में शराब रख देने से वह अमृत नहीं बन जाता। वह शराब ही रहता है। अतः ऊंचे कुल में जन्म लेने मात्र से कोई महान नहीं बन जाता बल्कि उसके कर्म उसे महान बनाते हैं।