कक्षा -10 हिन्दी अनिवार्य
सूरदास -भाग -1
जीवन परिचय-
- सूरदास का जन्म सन 1478 में हुआ था ।
- एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था।
- दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है।
- महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
- वह मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट में रहते थे और श्रीनाथजी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे।
रचनाएँ-
(1) सूरसागर - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।
(2) सूरसारावली
(3) साहित्य-लहरी -
जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं।
- सूरदास को वात्सल्य और श्रृंगार रस का श्रेष्ठ कवि माना जाता हैं। इनकी कविताओं में बृज भाषा का निखरा हुआ रूप मिलता है।
- सूरसागर का मुख्य वर्ण्य विषय श्री कृष्ण की लीलाओं का गान रहा है।
- सूरसारावली में कवि ने जिन कृष्ण विषयक कथात्मक और सेवा परक पदों का गान किया उन्ही के सार रूप में उन्होंने सारावली की रचना की है।
- सहित्यलहरी मैं सूर के दृष्टिकूट पद संकलित हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
सूर ने वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रसों को मुख्य रूप से अपनाया है। सूर ने अपनी कल्पना और प्रतिभा के सहारे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर,
सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है। बालकों की चपलता,
स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप का चित्रण किया है। बाल-कृष्ण की एक-एक चेष्टा के चित्रण में कवि ने कमाल की होशियारी एवं सूक्ष्म निरीक्षण का परिचय दिया है़-
मैया कबहिं बढैगी चौटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
सूर के कृष्ण प्रेम और माधुर्य प्रतिमूर्ति है। जिसकी अभिव्यक्ति बड़ी ही स्वाभाविक और सजीव रूप में हुई है।
सूरदास के
पदों का सार
यहां सूरदास के “सूरसागर के भ्रमरगीत” से चार पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों को सन्देश भेजा था। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया । लेकिन गोपियाँ ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थी। इसी कारण उन्हें उद्धव का यह संदेश पसंद नहीं आया। और वो उद्धव पर तरह – तरह के व्यंग बाण छोड़ने लगी।
प्रथम पद में जिसमें गोपियाँ श्री कृष्ण के परम् सखा उद्धव से अपने मन की व्यथा को व्यंग रूप में कह रही हैं।
द्वितीय पद में गोपियां उद्धव से कहती हैं कि कृष्ण के गोकुल से चले जाने के बाद उनके मन की सारी अभिलाषाएं मन में ही रह गई है। वो कृष्ण से अपने मन की बात कहना चाहती थी। लेकिन अब वो कभी भी अपने मन की बात कृष्ण से कह नहीं पाएंगी।
तीसरे पद में गोपियां उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव !
जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजों से लकड़ी को मजबूती के साथ पकड़े रहता है। लकड़ी को ही अपने जीवन का आधार समझ कर उसे कभी गिरने नहीं देता हैं। ठीक उसी प्रकार कृष्ण भी हम गोपीयों के जीने का आधार है।
अंतिम पद में गोपियां कहती हैं कि उद्धव तो पहले से ही चालाक है और कृष्ण के द्वारा उसे राजनीति का पाठ पढ़ाने से वह और भी चतुर हो गया है। अब वह हमें छल-कपट के माध्यम से बड़ी चतुराई के साथ श्री कृष्ण का योग संदेश सुना रहा है।
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Q.1. मन की मन ही मांझ रही - ये पंक्तिया कौन किससे कह रहा है?
उत्तर- गोपिया उद्धव से कहती है हे उद्धव! हमारे मन में छिपी बात तो मन में
ही रह गई है अर्थात् वे तो सोचती थीं कि जब श्रीकृष्ण वापिस आएंगे तब वे उन्हें
विरह-वियोग में झेले सारे कष्टों की बातें सुनाएंगी पर अब तो उन्होंने निराकार
ब्रह्म को प्राप्त करने का संदेश भेज दिया है।
Q.2. सूरदास अब धीर धरही क्यों मरजादा न लही - इन पंक्तियों में मरजादा शब्द का क्या आशय है?
उत्तर- प्रेम की यही मर्यादा है कि प्रेमी और
प्रेमिका दोनों प्रेम को निभाएँ। वे प्रेम की सच्ची भावना को समझें और उसकी मर्यादा
की रक्षा करें। परंतु कृष्ण ने गोपियों से प्रेम निभाने की बजाय उनके लिए नीरस
योग-संदेश भेज दिया, जो कि एक छलावा था, भटकाव था। इसी छल को गोपियों ने मर्यादा का
उल्लंघन कहा है।
Q.3. हमारे हरि
हारिल की लकरी - इन पंक्तिओं का भावार्थ संक्षिप्त में बताइये।
उत्तर गोपियाँ श्री कृष्ण
जी से कह रही हैं की हमारे मन में कृष्ण के प्रति अनन्य और अटूट प्रेम है जो
तुम्हारे योग के सन्देश से कम नहीं होगा अपितु अधिक बढ़ जाएगा. जैसे हारिल (एक
पक्षी) अपन पंजों में विशेष प्रकार की लकड़ी को पकडे रहता है वैसे ही हमने अपने
हृदय में श्री कृष्ण को मन वचन और क्रिया से पकड़ रखा है. रात दिन सोते जागते हमने
कृष्ण जी को ही पकड़ रखा है.
Q.4. पद्यांश में आए हुए व्याधि शब्द का अर्थ बताइये।
उत्तर व्याधि शब्द का
अर्थ रोग अथवा मुसीबत
Q.5. हरि है राजनीति
पढ़ी आए - इन पंक्तिओं का क्या आशय है?
उत्तर गोपियां श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए योग संदेश को उनका अन्याय और
अत्याचार मानते हुए आपस में कहती हैं कि हे सखि! अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति की
शिक्षा प्राप्त कर ली है। वे राजनीति में पूरी तरह निपुण हो गए हैं। यह भँवरा हमसे
जो बात कह रहा है वह क्या तुम्हें समझ आई? क्या
तुम्हें कुछ समाचार प्राप्त हुआ? एक तो
श्रीकृष्ण पहले ही बहुत चतुर-चालाक थे और अब तो गुरु ने उन्हें ग्रंथ भी पढ़ा दिए
हैं।