google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 चुंबकीय आकर्षण

चुंबकीय आकर्षण



कुछ लोग चुंबक के समान होते हैं। जैसे ही वे एक कमरे में दाखिल होते हैं, उनकी मौजूदगी किरणों की भाँति व्याप्त हो जाती है। उनके चेहरे उनकी शख्सियत से आत्मविश्वास, जोश, निर्भयता, विश्वसनीयता और आकर्षण छलकता है। उनके व्यक्तित्व में वास्तव में चुंबकीय आकर्षण होता है।
कभी आपने उनमें से किसी एक के जैसा बनना चाहा है? क्या आपने कभी महसूस किया है कि यह संभव नहीं है?
क्या यह आकर्षण आप में है?
चुंबकीय आकर्षण या प्रभाव एक ऐसा गुण रहा है, जिसे लगभग सभी महान् व्यक्तियों से जोड़कर देखा जाता है। उनमें से बहुतों ने इस विशेष गुण को विकसित किया। कई दूसरों में यह गुण नैसर्गिक था और उन्होंने इसको विकसित या बेहतर करने के बारे में विचार किए बिना इसका उपयोग किया।
सबसे पहले, हमें यह जान लेना चाहिए कि वैयक्तिक चुंबकीय आकर्षण प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद रहता है। वास्तविकता तो यह है कि यह गुण उन लोगों में भी होता है, जिन्हें घोर नापसंद किया जाता है और भरोसा करने योग्य नहीं समझा जाता है। उनमें व्यक्तिगत चुंबकीय प्रभाव वास्तव में प्रबल होता है, अंतर सिर्फ इतना है कि वहाँ ऋणात्मक धुरव (नकारात्मक धुरव) काम कर रहा होता है। जिस प्रकार वैयक्तिक चुंबकत्व का धनात्मक धुरव वास्तव में प्रभावशाली और चमत्कारिक लोगों के लिए काम करता है, ठीक उसी तरह प्रबल ऋणात्मक धुरव इन लोगों के लिए सक्रिय रहता है। और उन लोगों का क्या, जो दोनों के बीच में हैं? वैयक्तिक आकर्षण उनमें फिर भी रहता है, बस इतना प्रबल नहीं होता जितना कि औरों में होता है। इसके प्रभाव का दायरा अपेक्षाकृत अधिक
छोटा होता है।
क्या आपने लोगों को किसी के बारे में यह कहते सुना है, "वह असलियत में बड़ी चीज है। एक बार उसको जानना जरूरी है।" इसका मतलब है कि उसके प्रभाव का दायरा बहुत निकट के परिचित लोगों तक सीमित रहता है। यह
व्यक्तिगत प्रभाव सबसे नीरस किस्म के व्यक्ति में भी होता है, हालाँकि बहुत सीमित रूप में होता है।
क्या आप इसे विकसित कर सकते हैं?
हाँ, आप निश्चय ही इसे विकसित कर सकते हैं, चाहे आप बहुत ही कम वैयक्तिक चुंबकत्व के साथ शुरू करें या अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव के साथ। आप इसका विकास हमेशा कर सकते हैं। आपको इस पर सिर्फ काम करने की आवश्यकता है-धैर्य और दृढ़ता से। और अगर आप इस दिशा में अपेक्षित प्रयास कर सकते हैं तो उसके लाभ अनंत हैं।
मानसिक और शारीरिक चुंबकत्व
आम आदमी के दृष्टिकोण के अनुसार वैयक्तिक आकर्षण-शक्ति पूर्णतया एक तरह का मानसिक वैशिष्टय है और भौतिक देह का उससे कोई संबंध नहीं है। सच में वैयक्तिक चुंबकत्व के दो धुरव होते हैं-शारीरिक और मानसिक। वास्तव में एक चुंबकीय प्रभावशाली व्यक्ति को दोनों धुरवों का विकास साथ साथ करना चाहिए। जब दोनों समकालिक और सुविकसित हों, तब आप वास्तव में एक चमत्कारिक व्यक्ति को उभरते देख सकते हैं, एक ऐसा व्यक्ति जिसके भाग्य में सफलता निश्चित होती है। वैयक्तिक चुंबकत्व के विख्यात शिक्षक प्रो. थेरन क्यू. ड्यूमॉट के अनुसार, “ऐसा आभास होगा जैसे कि शारीरिक चुंबकत्व की आवश्यकता इसलिए थी कि उसके जरिए मानसिक चुंबकत्व को 'शरीर' दिया जा सके, ठीक उसी तरह जैसे शारीरिक चुंबकत्व को रंग, चरित्र या 'आत्मा' प्रदान करने के लिए मानसिक चुंबकत्व जरूरी था।"
चुंबकत्व के दोनों पहलुओं को अत्युत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। साधारण शब्दों में, मानसिक चुंबकत्व उन विचार तरंगों को उत्पन्न कर सकता है, जो दूसरों को प्रभावित करती है। शारीरिक चुंबकत्व वह शक्ति है, जो दूसरों में उसी शक्ति को बाहर आने के लिए प्रेरित करती है।
मानसिक चुंबकत्व
जब हम सोचते हैं, हमारे मस्तिष्क में कुछ क्षेत्र उत्तेजित हो जाते हैं। उसका तात्पर्य यह है कि मस्तिष्क के ऊतक इस विचार को उत्पन्न करने के लिए ऊर्जा
नष्ट करते हैं और फिर ऊष्मा बनती है। मस्तिष्क एक चुंबक के समान हो जाता
एक शक्ति क्षेत्र निर्मित होता है, जिसका उन पर प्रभाव पड़ता है, जो उनके करीब आते हैं।
सीधे-सरल शब्दों में कहें तो क्या आप पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं और एक ऐसी 'संकल्प-शक्ति' महसूस की है कि वह व्यक्ति किसी योग्य नहीं है, या कि वह आपके विश्वास के काबिल नहीं है, भले ही उसका व्यवहार बेहद परिष्कृत हो? वह मानसिक चुंबकत्व का काम था। उसकी विचार तरंगें आपके मस्तिष्क को प्रभावित कर रही थीं और आपसे कह रही थीं कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ, बहुत अधिक फूहड़ किस्म का व्यक्ति भी हमारे अंदर फिर से विश्वास और चाहत की भावना जगा सकता है। यह वैयक्तिक चुंबकत्व का काम है।
मानसिक चुंबकत्व के दो पहलू हैं
1. किसी मानसिक स्थिति को बनाए रखकर विचार तरंगें या 'स्पंदन' पैदा
करना। 2. इन स्पंदनों को अपने आस-पास के लोगों तक पहुँचाना।
हमारी मानसिक दशा यह निर्णय करती है कि क्या हमारे स्पंदन प्रफुल्ल, विश्वस्त, भरोसे योग्य, विषादपूर्ण, कपटी या असुरक्षित हैं। और हमारे संपर्क में आनेवाले दूसरे लोग इन प्रतिक्रियात्मक गुणों को ग्रहण कर सकते हैं, भले ही वे कुछ भी कहते या करते हों। इसे प्राय: ‘मानवोचित वातावरण' कहा जाता है। एक प्रबल मानसिक अवस्था उतने ही प्रबल स्पंदन भी उत्पन्न करती है चाहे वे भरोसे, आत्मविश्वास और उल्लास के भावनापूर्ण गुण हों या अविश्वास, असुरक्षा और विषाद के नकारात्मक गुण। उनके संपर्क में आनेवाला कोई भी व्यक्ति अत्यंत प्रबल स्पंदनों को सहज ही ग्रहण कर लेता है।
व्यक्तिगत चुंबकीय आकर्षण का सबसे बड़ा रहस्य यह जानना है कि वे मानसिक स्थितियाँ कैसे उत्पन्न की जाएँ और बनाए रखी जाएँ जो दूसरों को आकृष्ट करती हैं।
तल्लीनता
हम सबका अपना 'प्रभामंडल' या प्रभाव-क्षेत्र होता है। यह हमारी मानसिक दशा या मनोवृत्ति के अनुसार बदल जाता है। यह सिर्फ विचार नहीं है, यह विचार की एक अवस्था है। बहुत प्रबल और स्थिर मानसिक दशा बहुत प्रबल स्पंदन उत्पन्न करती है। अगर हमारा उद्देश्य यह अनुभूति या संकल्प स्पष्ट हो तो इससे वह दशा उत्पन्न हो सकी है। यह सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है और तदनुसार लोगों को हमारी ओर आकृष्ट या विमुख करती है। हमें साहस, आत्मविश्वास, दबंगपन, पहल, उत्साह, उमंग, आत्मसम्मान आदि की सकारात्मक मानसिक दशाओं को हमेशा बनाए रखने की चेष्टा करनी चाहिए, जो हमें अधिक ताकतवर बनाती हैं। हमारे मन में सकारात्मक मानसिक दशा की ओर थोड़ा सा भी
परिवर्तन तत्काल उन भाव-गुणों में एक सुधार के रूप में दर्ज हो जाता है, जो हम उधर भेजते हैं।
प्रक्षेपण (प्रविष्ट करना)
हम अपनी मानसिक दशाओं का प्रक्षेपण अपने व्यक्तिगत वातावरण में कर सकते हैं और दूसरों के मन में भी। हम अपनी मानसिक दशा का प्रक्षेपण उसी प्रकार कर सकते हैं जैसे हम शारीरिक दशा या जीवनी शक्ति का करते हैं। हमें अपनी मानसिक दशा का प्रक्षेपण करने की अपनी योग्यता में विश्वास होना चाहिए और उसे बाहर प्रदर्शित करने की अपनी इच्छा-शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
शारीरिक चुंबकत्व
क्या आपने कभी इस ओर ध्यान दिया है कि आपके अंदर या दूसरों के अंदर नाड़ी-शक्ति होती है? उसे 'स्नायविक ऊर्जा', 'जीवनी शक्ति', 'प्राण', 'प्राण शक्ति' इत्यादि कहते हैं। यह हमारे अंदर की शक्ति है, जो हमारे नाड़ी-तंत्र से संचारित होती है, लेकिन जिसकी सृष्टि नाड़ी-ऊतकों से नहीं होती है। यह एक ऐसी शक्ति है, एक ऊर्जा है, जो हम सब में मौजूद है और प्रवाहित है। यह नाड़ी-तंत्र में पहुँचाई जाती है, लेकिन वहाँ यह उत्पन्न नहीं होती है। शारीरिक
चुंबकत्व के पीछे यही शक्ति काम करती है।
शारीरिक चुंबकत्व के दो पहलू हैं 1. नाड़ी-शक्ति उत्पन्न करना। 2. नाड़ी-शक्ति को आस-पास के लोगों में पहुँचाना।
विद्युत् की तरह, यह नाड़ी-शक्ति हमारे चारों ओर के वातावरण में मौजूद रहती है। हमारा शरीर इसे अपने अंदर सोख लेता है और जरूरत पड़ने पर हम इसका उपयोग करते हैं। और वास्तव में कैसे इसे खींचा जाता है? श्वसन-क्रिया के जरिए हम केवल ऑक्सीजन तथा अन्य गैसों को अंदर खींचते हैं, बल्कि ब्रह्मांड में मौजूद नाड़ी-शक्ति को भी खींच लेते हैं।
इस शक्ति को दूसरों तक किस तरह संप्रेषित या प्रक्षेपित किया जाता है? जिस प्रक्रिया द्वारा यह किया जाता है, उसे 'प्रेरण' कहते हैं। चुंबकों के बीच वास्तव में कोई संपर्क होने पर भी वे हवा के माध्यम से एक-दूसरे को खींच लेते हैं।
चुंबकत्व और विद्युत् को भी संचारित करने के लिए संचालन सामग्री का वास्तव में संपर्क में आना प्राय: आवश्यक नहीं होता है और नाड़ी-शक्ति के संबंध में भी यही सच है। क्या आपने कभी उन लोगों को नहीं देखा है, जो प्राण-शक्ति या ऊर्जा या नाड़ी-शक्ति से इतने भरे-पूरे होते हैं कि जब आप उनसे मिलते हैं, वे आपको जोश और ऊर्जा से भर देते हैं? क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा है, जिनके अंदर यह शक्ति इतनी कम होती है कि वे आपकी 'नाड़ी-शक्ति' को खाते हैं अथवा उस पर निर्भर करते हैं और आपको कमजोर तथा उदासीन बनाकर छोड़ जाते हैं? हालाँकि स्नायु शक्ति ब्रह्मांड में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, फिर भी इस शक्ति को अपने अंदर समेटने और बचाए रखने में कुछ ही लोग सफल होते हैं, क्योंकि आमतौर पर उनकी आदतें और उनकी जीवन-शैली इस तरह की होती है।
आत्मसात् करना (सोखना)
आपको जानकारी होगी कि व्यक्तिगत आकर्षण-शक्ति का भौतिक अंश एक जीवनी शक्ति से आता है, जिसे श्वसन-क्रिया के जरिए खींचा जा सकता है। इस शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से यह आवश्यक हो जाता है कि हम साँस लेने का कोई विशेष तरीका अपनाएँ। जब हम पूरी तरह और गहराई से साँस भरते हैं, तब हम उस प्राण-शक्ति को बड़ी मात्रा में अपने अंदर खींच लेते हैं। अत: जरूरी है कि हम साँस भरने के व्यायाम पर अपना ध्यान केंद्रित करें और पूरी साँस भरने, गहरी साँस लेने की आदत डालें।
अगर आप निकट से देखें, आप पता लगा सकते हैं कि जब आप भिन्न-भिन्न भावनाओं का अनुभव करते हैं तब आपकी साँस भी अलग तरह से चलती है। हम जैसा महसूस करते हैं, हमारा साँस लेने का तरीका भी उसी तरह बदल जाता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कोई विशेष भावना या मानसिक अवस्था
उत्पन्न करने के लिए हमें साँस भरने की क्रिया भी वही अपनानी चाहिए, जो उसके अनुकूल हो। हम सिर्फ अपने साँस लेने पर नियंत्रण बनाए रखकर आत्म नियंत्रण की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। क्या आपने कभी इस ओर ध्यान दिया है कि नींद से जाग उठने पर हम किस तरह जंभाई लेते हैं और हमें कुछ अतिरिक्त प्राण-शक्ति की जरूरत होती है? क्या आपने पूर्ण चेतनावस्था अथवा सजगता में पहुंचने पर अपनी श्वसन-क्रिया पर कभी ध्यान दिया है? इन बातों की जानकारी से आपको जीवनी-शक्ति के आत्मसात्करण की श्वसन-प्रणाली की गुत्थी को सुलझाने और समझने में आसानी होगी।

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