नाविक ने देखा बालक खड़ा हुआ है, नाव में नहीं बैठ रहा है। अन्य यात्री नाव में बैठ रहे थे।
नाविक ने बालक से कहा, 'अरे लल्ला वहां क्यों खड़े हो, जल्दी नाव में बैठ जाओ, वरना
नाव भर जाएगी।'
लाल बहादुर ने कहा, 'मैं
आज नाव में नहीं बैठ पाऊंगा, क्योंकि मेरे पास
पैसे नहीं हैं।'
नाविक ने कहा, 'कोई
बात नहीं, तुम पढ़ने जाते हो। एक ही सवारी की जगह बची है। मैं
दूसरी सवारी को रोकता हूं और तुम्हें बैठाता हूं।'
बच्चे ने विचार किया कि नाव वाला दूसरी सवारी को
बैठाएगा तो सवारी उसे पैसे देगी और मैं नहीं दे पाऊंगा। मैं गरीब हूं तो ये भी
गरीब ही है। बच्चे ने सिर पर किताबें रखीं और नदी में छलांग लगा दी। उसने तैरकर
नदी पार की।
किनारे पर पहुंचकर उस बच्चे ने अपने कपड़े सुखाए और
स्कूल पहुंच गया। स्कूल से लौटकर बच्चे ने ये घटना अपनी मां को बताई। ये बात सुनकर
मां पहले तो प्रसन्न हो गईं और फिर उन्होंने कहा, 'तुमने
ऐसा किया क्यों?'
बालक ने कहा, 'मेरे
पास उसे देने के लिए पैसे तो थे नहीं। अगर मैं उसकी नाव में बैठ जाता तो उस गरीब
नाविक को एक सवारी के पैसे नहीं मिलते। मैं तो तैरकर नदी पार कर सकता था, नाव में जो दूसरी सवारी बैठी, उसने
नाविक को पैसा दिया।'
सीख - दूसरों
की कमाई हो जाए, दूसरों का भला हो जाए, ऐसा
सोचना भी परमात्मा की सेवा करने जैसा ही है। सिर्फ खुद के हित के बारे में न
सोचें। हमारे हर काम में परिवार के साथ ही समाज का भला करने का भाव होना चाहिए।