भोजन एवं मानव स्वास्थ्य
पोषण- पोषण वह विधि है जिसके द्वारा सजीव अपनी आवश्यक
वर्द्धि व
स्वास्थ्य के लिए
पोषण ग्रहण करता है उसे पोषण कहते हैं।
संतुलित भोजन- संतुलित भोजन पर है जिसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व
उपस्थित होते हैं उसे संतुलित भोजन कहते हैं।
संतुलित भोजन के गुण-
· संतुलित आहार शरीर को मजबूत बनाता है।
· रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक
क्षमता को बढ़ाता है।
· दिमाग को तेज और स्वस्थ बनाता है।
· संतुलित आहार में सभी पोषक तत्व होते हैं।
कुपोषण- लंबे समय तक जब पोषण
में किसी एक या एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है तो उसे कुपोषण कहते हैं।
कुपोषण के प्रकार- विटामिन कुपोषण
- प्रोटीन
कुपोषण
-खनिज
कुपोषण
विटामिन- विटामिन एक
महत्वपूर्ण पोषक तत्व है विटामिन दो प्रकार के होते हैं जल में घुलनशील
विटामिन, वसा में घुलनशील
विटामिन।
मानव
तंत्र
पाचन तंत्र:- भोजन के विभिन्न घटक है जैसे-
कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन वसा विटामिन खनिज लवण आदि।
- भोजन में घुलनशील जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में बदलना ही पाचन कहलाता है।
- पाचन तंत्र में अंतग्रहण पाचन अवशोषण की प्रक्रिया होती है।
- आहार नाल मुख से लेकर गुदाद्वार तक की एक नलिका कार संरचना होती है जिस के विभिन्न अंग होते हैं जैसे मुख ग्रसनी, ग्रास नली, अमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलद्वार
- आहार नाल को पोषण नाल भी कहते हैं।
पाचक ग्रंथियां:- मानव तंत्र में तीन
प्रकार की पाचन ग्रंथियां पाई जाती है जैसे- लार ग्रंथि, यकृत, अग्नाशय।
श्वसन तंत्र:- कोशिका में ऑक्सीजन की उपस्थिति में खाद्य पदार्थों का ऑक्सीकरण
जिसमें ऊर्जा उत्पन्न होती है श्वसन कहलाता है।
- मानव श्वसन तंत्र को तीन भागों में बांटा गया है जैसे ऊपरी स्वसन तंत्र, निचला स्वसन तंत्र, स्वसन मांसपेशियां।
- स्वसन एक जैव रासायनिक क्रिया है।
अनुवांशिकी(Genetics)
आनुवंशिकी- जीव
विज्ञान की वह शाखा जिसमें संजीव के लक्षणों की अनुवांशिकता एवं विभिनताओअध्ययन
किया जाता है। उसे आनुवंशिकी कहते हैं।
जेनेटिक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम बेटसन किया था।
अनुवांशिक लक्षण- संख्याओं में लैंगिक जनन
क्रिया के समय युग्मको द्वारा विभिन्न लक्षणों का पीढ़ी दर पीढ़ी संचरण होता रहता
है। इन लक्षणों को अनुवांशिक लक्षण कहते हैं।
· आनुवांशिक लक्षणों का जनक
पीढ़ी से में संचरण ही वंशागति कहलाता है।
· हेरेडिटी शब्द का
प्रतिपादन स्पेंसर ने किया था
· ग्रेगर जॉन मेंडल को
आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है। मेंडल महोदय उद्यान मटर पर किए गए संक्रमण प्रयोगो
के परिणाम के आधार पर वंशागति के नियमों का प्रतिपादन किया।
प्रतिरक्षा एंव रक्त
समूह
प्रतिरक्षा विज्ञान :- रोगानुशों के उन्मूलन हेतु शरीर में होने
वाली क्रियाओं तया संबधित तंत्र के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान कहा जाता
है।
शरिर में दो प्रकार
की प्रतिरक्षा विधियां कार्य करती है।
(अ) स्वाभाविक
प्रतिरक्षा विधि:
- यह जन्मनात्त प्रतिरक्षा विधि है।
- इसे सामान्य या प्राकृतिक प्रतिरक्षा भी कहा जाता है।
- यह प्रतिरक्षा किसी विशेष रोगाण से विशिष्ट रूप से रक्षा प्रदान नही करती है।
- यह सभी प्रतिजनों के विरत समान तरिके से कार्य करती है। स्वाभाविक प्रतिरक्षा के लिए निम्न कारक सहायक होते है।
(i) भौतिक अवरोधक :- जैसे त्वया , नासिका विद्रों तथा
अन्य अंगों में पाए जाने वाले पक्ष्माभ व कशाभ , श्लेष्म उपकला आदि ।
(2) रासायनिक अवरोधक:- असे आमाश्य में पाए
जाने वाले अम्ल, आमाश्य व योनि का अम्लीय वातावरण, त्वचा पर पाए जाने वाले रासायनिक
तत्व, विभिन्न देह
तरलों जैसे लार , पसीना आदि।
(3) कोशिका अवरोधक :- भतकागु क्रिया में
सक्षम कोशिकाएं जैसे-महाभक्षक, मोनोसाइटः, न्यूट्रोफिल कोशिकाएँ आदि
(ब) उपार्जित प्रतिरक्षा विधि :- यह अनुकूली अथवा विशिष्ट प्रतिरक्षा भी कहलाती है।
- इस प्रकार कि प्रतिरक्षा में एक पोषक किसी विशेष सूक्ष्मजीव अथवा बाहय पदार्य के प्रति अत्यंत विशिष्ट प्रद्यात करता है।
- इस प्रतिरक्षा में प्रतिरक्षीय का निर्माण किया जाता है।
विशिष्ट
प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है।
सक्रिय प्रतिरक्षा : ऐसी- प्रतिरक्षा
प्रणाली जिसमें मानव शरीर प्रतिजन के विरुद्ध स्वंय पतिरक्षियों
का निर्मान करता है।
निष्क्रिय
प्रतिरक्षा :- ऐसी प्ततिरक्षा प्रणाली में मानव शरिर में किसी
विशेष प्रतिजन के विरद्ध बाहर से विशिष्ट प्रतिरक्षी प्रविष्ट
करवाए जाते है।
प्रतिजन :- प्रतिजन वह बाहरी रोगाणु प्रदार्थ है। जिनका
आणविक भार 6000 डॉल्टन अथवा उससे
ज्यादा होता है। प्रतिजन विभिन्न रासायनिक संगठनों के हो सकते हैं। जैसे - प्रोटिन, पॉलीसेकेराइड.
शर्करा , लिपिड या न्यूक्लिफ
अम्ल कभी- कभी शरीर के अन्दर के पदार्थ तया कोशिकाएं भी प्रतिजन के तौर पर कार्य
करती है। प्रतिजन सम्पूर्ण अणु के रूप में प्रतिरक्षी से प्रतिक्रिया नहीं करते
इसके कुछ विशिष्ट अंशी प्रतिरक्षी से जुड़ते हैं इन
अंशों को एण्टीजनी निर्धारक एपीटोप कहा जाता है। एक प्रोटिन में कई एटीमनी
निर्धारक हो सकते है। इनकी संख्या को एन्टीजन की संयोजकता
कहा जाता है। अंधिकाश जीवाणु एण्टीजनी संयोजकता 100 या अधिक होती है।
प्रतिरक्षी :- प्रतिरक्षी को
इम्यूनोग्लोबिन भी कहा जाता है। ये प्लाविका कोशिकाओं द्वारा
निर्मित गामा ग्लोबिन प्रोटिन है। जो
पानियों के रक्त तथा अन्य तरल प्रदायों में पाए जाते है। प्रतिरक्षी का वह भाग जो
प्रतिजन से क्रिया करता है। पैराटीप कहलाता है।
यह चार सरंचनात्मक
इकाइयों से मिलकर बनी होती है।
आर. एच. कारक : आर एच कारक करीब
पांच अमीनों अम्लों का एक प्रोटीन है।
जिसकी
खोज मकाका रीसस नाम के बंदर में की गई थी।
यह
प्रोटिन मानव की रक्त कणिकाएं की सतह पर भी पायी जाती है। मानव में पांच प्रकार के
आर. एच. कारक पाए जाते हैं। Rh.D ,
Rh.E, Rh.e, Rh.c, Rh.c –
दैनिक जीवन में रसायन
अम्ल, क्षार
एवं लवण :
अम्ल:-
1. अम्ल स्वाद में
खट्टे होते हैं।
2. अम्ल को अंग्रेजी में एसिड़ कहते है।,
3. जो कि लैटिन भाषा के शब्द एसिइस =
खट्टा से बना है। अध्ह्याय
अम्लों के गुण:
(i)अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं।
(ii) अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देते
है।
(ii) अम्ल जलीय विलयन में हाइड्रोजन भाधन [H’ देते हैं।
जैसे: हाइड्रोक्लोरिक अम्ल [HCL], नाइट्रिक अम्ल [HNO3]., सल्फ्यूरिक अम्ल ,ऐसीटिक अम्ल [CH3 CooH], फार्मिक अम्ल [HCooH]
आदि कई अम्लों का हमारे भोजन के रूप
में भी उपयोग किया जाता है। जैसे- नींब , संन्तरा, टमाटर, दही, कच्चे आम , आचारों में सिरका आदि
क्षार
:- यह स्वाद में कड़वा होता है। और यह
स्पर्श करने साबुन जैसा होता है।
क्षार के गुण :
(i) क्षार स्वाद में कड़वा होता है।
(ii) क्षार लाल लिटमस पत्र को नीला फर देते
है।
(iii) क्षार जलीय विलयन में हाइड्रोक्सील
भायन (OH) देते है। जैसे :- सोडियम हाइड्रॉक्साइड
[NaOH],लाइटिक अम्स)
पोटेशियम हाइड्रॉक्साइ [ ROH], एलुमिनियम हाइड्रोक्साइड अमोनियम हाइड्रॉक्साइड [ NHOH]
Note:- अम्ल तया क्षार दोनों जल में विलेय
होते है। यदि इनमें जल की मात्रा अधिक होती है।
तो ये तनु कहलाते है। और यदि जल की तुलना में अमल या क्षार की मात्रा अधिक
होती है। तो ये सांन्द्र कहलाते हैं।
लवण : अम्ल और क्षार की क्रिया द्वारा लवन और जल बनते है
अम्ल + क्षार → लवण + जल
यह अभिक्रिया उदासीनीकरण अभिक्रिया कहलाती है। तथा
उष्माक्षेपी अभिक्रिया होती है। →
प्रबल अम्ल तथा प्रबल क्षार से बने
लवण उदासिन होते हैं। जैसे : Nacl
, koh, Naoh ,
क्रिस्टलन जल : लवण के इकाई सुत्र में उपस्थित जल के अणुओं की
संख्या की क्रिस्टलन का जल कहते है। Example:- Na2co3.10H20 [ धावन सोड़ा ],
अम्ल व क्षार की आरेनियस संकल्पना :
अम्ल; आरेनियस के अनुसार ” जो प्रदार्थ जलीय विलयन में अपघटित
होकर हाइड्रोजन आयन (H) देते हैं। अम्ल कहलाते हैं। जैसे : नाइट्रिक अम्ल ये सभी अम्ल है
क्योकी जलीय विलयन में +आयन देते है।
प्रबल अम्ल;- वे अम्ल जी जलीय विलयन में पूर्णतया
आयनित हो जाते है।
प्रबल अम्ल कहलाते है। जैसे – Hcl, H2SO4, HNO3 आदि
दुर्बल अम्ल : वे अम्ल जो जलीय विलयन में पूर्ण रन्प
से आयनित नहीं होते हैं। दुर्बल अम्ल कहलाते है।
जैसे :- CHF COOH, H2Co3 आदि
क्षार :- आरेनियस के अनुसार : वे पदार्थ जी
जलीय विलयन मेंअपघटित होकर हाइड्रॉक्सील (OH) आयन देते है। क्षार
कहलाते है।
प्रबल क्षार:- वे क्षार जिनका जलीय विलयन में
पूर्णतः आघनन हो जाता है।, प्रबल क्षार कहलाते हैं।
दुर्बल क्षार :- वे क्षार जो जलीय विलयन में पूर्णत
आयनित्त नहीं होते है।, दुर्बल क्षार कहलाते हैं।
अम्ल व क्षार की ब्रांस्टेड – लोरी संकल्पना :
ब्रांस्टेड-लोरी के अनुसार ” वे पदार्थ जो प्रोटॉन CH) दाता होते हैं। अम्ल” कहलाते हैं। तथा प्रोटॉन (H+) को ग्रहण करने वाला प्रदार्थ
“क्षार” कहलाता है। इन्होने इसे समझाने के लिए
संयुग्मी अम्ल एंव संयुग्मी क्षार की अवधारण दी
रासायनिक अभिक्रिया एवं उत्प्रेरक
हमारे जीवन में बहुत सारी रासायनिक घटनाएं प्रतिदिन घटित होती है जिनमें पदार्थों का दूसरे रूपों में परिवर्तन होता रहता है इन्हीं परिवर्तनों को भौतिक व रासायनिक परिवर्तन कहते हैं
भौतिक परिवर्तन:-
· · ऐसा परिवर्तन जिसमें परिवर्तन का कारण हटाने पर पुणे प्रारंभिक पदार्थ प्राप्त होता है उसे भौतिक परिवर्तन कहते हैं।
· भौतिक परिवर्तन में भौतिक गुण में
परिवर्तन होता है।
· भौतिक परिवर्तन अस्थायी परिवर्तन होता
है।
· भौतिक परिवर्तन में नहीं पदार्थ का
निर्माण नहीं होता है।
· उदाहरण- लोहे का चमक बनाना, नौसादर का उर्ध्वपातन, शकर का पानी में विलय होना, आदि।
रासायनिक परिवर्तन:-
· ऐसा परिवर्तन जिसमें पदार्थों के
रासायनिक गुणों में परिवर्तन होता है
· इसमें नए पदार्थों का निर्माण होता
है।
· रासायनिक परिवर्तन में परिवर्तन का
कारण हटाने पर पुनः प्रारंभिक पदार्थ प्राप्त नहीं होता है।
· रासायनिक परिवर्तन स्थाई परिवर्तन
होता है।
· उदाहरण- दूध से दही जमना, बनी हुई सब्जियों का खराब होना, लोहे पर जंग लगना आदि।
रासायनिक अभिक्रिया(Chemical Reaction):- किसी पदार्थ में रासायनिक परिवर्तन होना ही रासायनिक अभिक्रिया कहलाती
हैं। रसायनिक अभिक्रिया के दौरान उत्पादों का निर्माण होता है परंतु पदार्थ का
द्रव मान संरक्षित रहता
विस्थापन अभिक्रिया:- ऐसी अभिक्रिया जिसमे
एक अभिकारक में उपस्थित परमाणु या परमाणु का समूह दूसरे अभिकारक के परमाणु या
परमाणु समूह द्वारा विस्थापित होता है इन अभिक्रिया में अभी कारकों के पहले से बने
बंध टूटते हैं और नए बँधो का निर्माण होता है। उसे विस्थापन अभिक्रिया कहते हैं।
परमाणु सिद्धांत, तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण व गुणधर्म
पदार्थ के बारे में
जानने के लिए मनुष्य बहुत ही प्राचीन काल से प्रयास करते जा रहे हैं। प्राचीन
भारतीय दार्शनिक महा श्री कणाद ने बताया की पदार्थ को छोटे-छोटे टुकड़ों में
लगातार विभाजित करने पर अंत में एक सूक्ष्मतम कण प्राप्त होगा जिसे परमाणु कहते
हैं। इन सूक्ष्म कण को और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकता है। एक अन्य वैज्ञानिक
का कात्यायम ने बताया कि पदार्थों के भिन्न भिन्न रूप इन कणों की संयुक्त होने से
प्राप्त होते हैं।
परमाणु सिद्धांत(Atomic Theory)
1. डाल्टन का परमाणु
सिद्धांत:- 1808 में जॉन डाल्टन नामक ब्रिटिश स्कूल
अध्यापक ने परमाणु की व्याख्या करने के लिए एक सिद्धांत दिया यह परमाणु सिद्धांत
रासायनिक संयोजन द्रव्यमान संरक्षण एवं निश्चित अनुपात के नियम के आधार पर दिया
गया है।
· · प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने होते हैं जिन्हें परमाणु कहते हैं।
· परमाणु अविभाज्य कण होते
हैं।
· एक ही तत्व के सभी परमाणु
समान अर्थात भार आकार व रासायनिक गुण धर्मों में समान होते हैं।
· भिन्न भिन्न तत्वों के
परमाणु भार आकार व रासायनिक गुण धर्मों में भिन्न-भिन्न होते हैं।
· अलग-अलग तत्वों के परमाणु
सदैव छोटी-छोटी पूर्ण संख्याओं के सरल अनुपात में सहयोग कर योग्य बनाते हैं।
2. थॉमसन का परमाणु मॉडल:- अब तक इलेक्ट्रॉन
प्रोटॉन की खोज हो चुकी है
· · परमाणु में इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन की संरचना को समझाने के लिए थॉमसन ने एक मॉडल प्रस्तुत किया।
· परमाणु में संरचना संबंधी
सबसे पहले मॉडल जे जे थॉमसन ने प्रस्तुत किया था।
· परमाणु एक धन आवेशित गोला
होता है इसमें इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं।
· परमाणु विद्युत रूप से
उदासीन होता है।
3. रदरफोर्ड का स्वर्ण पत्र प्रयोग:- रदरफोर्ड
तथा उनके शिष्यों ने सन 1911 में
सोने की बहुत पतली पन्नी पर अल्फा कणों की बमबारी का प्रयोग किया। इसके जिले के
चारों तरफ जिंक सल्फाइड का वार्ताकार पर्दा रखा। अधिकांश अल्फा कण सोने की झिल्ली
से बिना विक्षेपित हुए ही सीधे निकल गए। बहुत कम अल्फा कण कुछ अंश कोण से विकसित
हुए।
कार्बन एवं उसके यौगिक(Carbon and it's compound)
वर्जिनियस की धारणा
यह थी कि कार्बनिक योगिकों का निर्माण केवल जीव धारियों से ही संभव है तथा इनका
कृत्रिम वीधीयो द्वारा प्रयोगशाला में संश्लेषण संभव नहीं है इसे जैव शक्ति
सिद्धांत कहां गया है इसके पश्चात जीव धारियों से प्राप्त होने वाले योगिकों को कार्बनिक योगिक कहते हैं।
कार्बन परमाणु की विशेषताएं:-
· · कार्बन परमाणु आवर सारणी के परमाणु क्रमांक 6 पर पाया जाता है।
· कार्बन का आकार छोटा होने के कारण यह
सिग्मा बंध तथा पाई बंध द्वारा दिवबंध तथा त्रिबंध का निर्माण करता है।
· कार्बन परमाणु को c से व्यक्त करते हैं।
· कार्बन परमाणु की संयोजकता चार होती
है।
· कार्बन परमाणु की ज्यामिति समचतुषक
फ़लकीय होती हैं।
· कार्बन परमाणु में श्रकलन का गुण पाया
जाता है
कार्बन के अपरूप
किसी तत्व के दो या दो से अधिक रूप जो गुणधर्म
में एक दूसरे से भिन्न होते हैं उसे अपरूप कहते हैं इस गुण को अपरूपता कहते हैं।
प्रकृति में कार्बन
अनेक रूपों में पाया जाता है जैसे हीरा ग्रेफाइट फुलरीन आदि।
क्रिस्टलीय अपरूप:- वह अपरूप जिसमें
कार्बन परमाणु एक निश्चित व्यवस्था में व्यवस्थित रहते हुए एक निश्चित समिति से
निश्चित बन्धकोंण का निर्माण करता है उसे क्रिस्टलीय अपरूप कहते हैं।
1. हीरा(Diamond):- हीरे में कार्बन का प्रत्येक कार्बन परमाणु
कार्बन के चार अन्य कार्बन परमाणु के साथ आमंत्रित होकर एक दृढ़ त्रिआयामी चतुर
फलकिय संरचना का निर्माण करते हैं।
· · यह कार्बन का सबसे शुद्ध रूप माना जाता है।
· हीरा विद्युत का कुचालक होता है
क्योंकि इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉन अनुपस्थित होते हैं।
· हीरा पारदर्शक होता है।
· प्रकृति में सर्वाधिक कठोर पदार्थ
हीरा ही है।
· हीरे का प्रयोग का काच तथा पत्थर को
काटने में किया जाता है।
प्रकाश (Light)
हम हर दिन में चारों तरफ विभिन्न रंगों की
वस्तुओं को देखते हैं लेकिन अंधेरे कमरे में या रात के समय हम आसानी से वस्तुओं को
देख नहीं पाते हैं यदि रात के समय हम बल्ब जलाए तो हमें वस्तु दिखाई देती है
पृथ्वी पर प्रकाश का मुख्य स्त्रोत सूर्य हैं जब प्रकाश किसी वस्तु पर गिरता है तो
वस्तु प्रकाश के कुछ रंगों को अवशोषित कर लेती है। कुछ रंगों को परावर्तित करती है
यही प्रकाश जब हमारे नेत्र पर पड़ता है तब नेत्र में उसका प्रतिबिंब रेटिना पर
बनता है जब कोई वस्तु हमें लाल दिखाई देती है क्योंकि उस पर गिरने वाले प्रकाश के
लाल रंग की किरणों को वह वस्तु परावर्तित करती है जब प्रकाश किसी वस्तु के आर-पार
निकल जाता है तो वह हमें पारदर्शी दिखाई देती है जब कोई वस्तु सभी रंगों को
अवशोषित कर लेती है तो वह काली दिखाई देती है।
प्रकाश का द्वैत सिद्धांत बोगली ने दिया
था। मोगली ने बताया कि प्रकाश तरंग और कर्ण दोनों की तरह व्यवहार करता है।
प्रकाश का परावर्तन:- जब
प्रकाश की किरण है किसी पृष्ठ पर गिरती है तो उनमें से अधिकांश किरणें निश्चित
दिशाओं में गमन करती है यही प्रकाश का परावर्तन कहलाता है। प्रकाश
का परावर्तन दो प्रकार का होता है नियमित परावर्तन तथा विसरित परावर्तन।
नियमित परावर्तन:- जब प्रकाश किसी
प्रकाश पुंज को चिकने फर्स्ट द्वारा उसी माध्यम में एक विशेष दिशा में भेज देने को
नियमित प्रकाश कहते हैं।
विस्तृत परावर्तन:- खुरदरे सतह द्वारा
प्रकाश को सभी दिशाओं में विकिरण के प्रभाव को विस्तृत परावर्तन कहते हैं।
विधुत
धारा
विद्युत धारा :- किसी भी विद्युत
परिपथ में किसी बिन्दु से इकाई समय में गुमरने वाले आवेश की माता को विधुत धारा
कहते है।
विद्युत धारा (1) = आवेश (9)/समय (t)
विद्युत
धारा का मानक: ऐम्पियर
एक ऐम्पियर की परिभाषा :- यदि किसी विद्युत
परिपथ के किसी विन्दु से 1 सेकेन्ड
में 1 कलॉम आवेश गुजरता
है। तो उस परिपथ में धारा एक ऐम्पियर होगी
Note :- विद्युत धारा मापन के लिए अमीटर का उपयोग
किया जाता है।इसे परिपथ में श्रेणीक्रम में लगाते हैं।
विद्युत विभवान्तर :- किसी विद्युत परिपथ
में एकांक धन आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य उन
दो बिन्दुओ के मध्य विभवांनतर के बराबर होता है।
विद्युत विभव : किसी विन्दं पर
विद्युत विभव अनन से एकांक धन आवेश को उस बिन्दू तक लाने में किये गए कार्य के
बराबर होता है।
Note:- विभवान्तर का मापन
वोल्टमीटर द्वारा किया जाता है।
इसे परिपथ में समान्तर क्रम में लगाते
हैं।
ओम का नियम : इस नियम के अनुसार यदि किसी चालक तार की भौतिक अवस्था, जैसे- ताप, दाब, लम्बाई, अनुप्तस्थ काट क्षेत्रफल
आदि स्थिर रहे, तो उनके सिरी के मध्य विभवान्तर उसमें
प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है। इसे 1 ओम का नियम कहते है।
ओम के नियम का प्रायोगिक सत्यापन :- परिपथ में एक सेल, धारा नियंत्रक, अमीटर, और कुंजी को
श्रेणीक्रम में जोड़ देते है। और चालक तार को वोल्टमीटर के समाजर फ्रम में जोड़
देते है। चालक जार में विभिन्न मान की धारा प्रवाहित फर अमीटर से ज्ञात कर लेते
है। इन सभी धाराओं के संगत विभवान्तर पोल्ट मीटर से ज्ञात करते हैं। विभवान्तर ।
और के पाठयाकों के मध्य
ग्राफ
खिचने है। ग्राफ एक सरल रेखा के रूप में प्राप्त होता है। याफ से सिद्ध होता है।
कि, चालक के सिरों के
मध्य उत्पन्न विन्नवान्तर प्रवाहित धारा के समानुपात्ती होता है। यही ओम का नियम
है।
कार्य, ऊर्जा
और शक्ति
कार्य:- बल का उपयोग करके
किसी वस्तु की
विरामावस्था
में परिवर्तन करना ही कार्य कहलाता है
अथवा
गतिशील
वस्तु की गति में परिवर्तन करना ही कार्य है।
कार्य =
· बल x बल की दिशा में विस्थापन
· कार्य एक अदिश राशि है।
· कार्य का का मान धनात्मक
या धनात्मक हो सकता है।
· यदि बल या बल का घटक
विस्थापन मी में हो तो कार्य धनात्मक होता है।
· कार्य का मात्रक - जूल
एक जल की परिभाषा:- 1 -यूटन बल से किसी
वस्तु को 1 मीटर
विस्थापित किया जाए तो किया गया कार्य 4 जूल होगा
ऊर्जा ;-
· किसी वस्तु में कार्य
करने की क्षमता को ही ऊर्जा कहते हैं।
· किसी वस्तु में विद्यमान
ऊर्जा की माप इस पस्तु द्वारा किये जा सकने वाले कार्य से करते है।
· किसी भी कार्य को करने के
लिए ऊर्जा की आवशयकता होती है।
· ऊर्जा का मात्रक भी जूल होता है।
ऊर्जा के प्रकार :- ऊर्जा विभिन्न रूप
में विद्यमानी होती है।
सूर्य हमारे लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक
स्त्रोत है।
ऊर्जा के विभिन्न रूपों में से कुछ निम्न
प्रकार है
(1) यांत्रिक
ऊर्जा :- किसी
पस्तु. की गति, स्थिति
अथवा दोनों के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है।, उसे यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं।
(2 ) उष्मीय
ऊर्जा :उष्मीय के कारण
सूक्ष्मकणो द्वारा गतिमान ऊर्जा की
उम्मीय ऊर्जा कहते हैं।
(3 )रासायनिक ऊर्जा:- रासायनिक
क्रियाओं द्वारा प्राप्त ऊर्जा को
रासायनिक, ऊर्जा कहते है। बैटरी, कोयला, रसोई गैस, भोजन भादि सभी
रासायनिक ऊर्जा के उदाहरण है।
(4 ) विद्युत
ऊर्जा :- विद्युत
आवेशो द्वारा उत्पन्न ऊर्जा विधुत ऊर्जा कहलाती है। हम धरों में बिजली की जो भी
भुक्तियाँ उपयोग में लेते हैं। वो विद्युत ऊर्मा से ही चलती है।
(5 )गुरुत्वीय
ऊर्जा - वस्तुओं में
गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उत्पन्न ऊर्जा गुरुत्वीय ऊर्जा कहलाती है। इसी ऊर्जा के
कारण सरनों व नदियों में पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है।
(6 )नाभिकीय
ऊर्जा:- नाभिकीय विखण्डन एंव संलयन के परिणाम
स्वरम्प प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है। सभी प्रकार. की ऊर्जा मुख्यत: दो
रूपों में
होती है।
- गतिज ऊर्जा
-
स्थितिज ऊर्जा
गतिज ऊर्जा:- गति के कारण कार्य करने कि दर गतिज ऊजा कहलाती है। पेड़ से गिरता हुआ फल, नदी में बहता हुआ पानी, 3ड़ता हुआ हवाई जहाज, चलती हुई कार , उड़ता हुआ पक्षी आदि
- गतिज ऊर्जा सदेव धनात्मक
होती है।
- वस्तु के द्रव्यमान एंव
वेग पर निर्भर करती है।
- गतिज ऊर्जा वेग की दिशा पर निर्भर नहीं करती है।
स्थितिज ऊर्जा:- स्थिति के कारण कार्य
करने कि दर स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। रबर को खींचने, स्निंग को संपीडित करने अथवा खीचने एंव
वस्तु को किसी ऊंचाई तक उठाने में कार्य किया जाता है।
विद्यत्त क्षेत्र:- आवेशित कणों के
चारों ओर वह क्षेत्र जिसमें कोई अन्य आवेश आकर्षण या प्रतिकर्षण का अनुभव करता है।
विद्युत क्षेत्र कहलाता है।
विद्युत संयंत्रो के प्रकार :
(1.) कोयला
संयंत्र : इसमें
कोयले के दहन से रासायनिक ऊर्जा को उष्मा के रज्य में प्राप्त किया जाता है। इस
उष्मा से पानी को 'भाप में
बदला जाता है। यह फीवान भाम टरबाइन को गति प्रदान करती है। इस टरबाइन से जुड़ी हुई
जनित्र से विद्युत उत्पादन होता है।
(2.) नाभिकिय
संयंत्र :- नाभिकीय
संयंत्र में नाभिकीय विखन्डन से प्राप्त उप्मीय ऊर्जा से पानी को वाप्प में बदला
जाता है। इस वाष्प द्वारा टरबाइन को घुमाया जाता है।
(3) जल
विद्युत संयंत्र : जब
विद्युत संयंत्रो में नाँध बनाकर पानी की ऊँचाई से गिराया जाता है। पानी की
स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदलकर टरबाइन की धुमाया जाता है। टरबाइन के धूमने
पर उससे नई जनिन्न द्वारा विद्युत उत्पादन होता है।
(4 )पवन
ऊर्जा संयंत्र : पवन
चक्की में हवा की गतिज ऊर्जा से टरबाइन को धुमाकर जनिन्न द्वारा विद्युत उत्पादन
किया जाता है। यह नवीकरणीय ऊर्जा स्तीन दुसरे ऊर्जा संयंती के मुकाबले में वातावरण
के लिए हितकारी है।
(5). सौर
उष्मा संयंत्र
: सूर्य से प्राप्त
होने वाली ऊर्जा को उनल लेंन्स या अवतल दर्पण की सहायता से केन्द्रित करके इसे
उष्मा में बदला जाता है। इस उष्मा से भाप टरबाइन को घुमाया जाता है। जिससे विद्युत
जनिन्न उत्पादन करता है।
प्रमुख प्राकृतिक संसाधन
प्राकृतिक संसाधन का तात्यर्य :- मनुष्य के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष
रूप से उपयोग में आने वाली हर वस्तु संसाधन कहलाती है।
प्राकृतिक संसाधनों के
प्रकार :- प्राकृतिक संसाधनों को तीन भागों में
बांटा गया है।
- विकास एवं प्रयोग के आधार पर
-
उदगम या उत्पत्ति के आधार पर
भंडारण या वितरन के आधार पर विकास एंव प्रयोग के आधार पर
प्राकृतिक संसाधन
विकास एवं प्रयोग के आधार पर प्राकृतिक
संसाधन निम्नलिखित
दो प्रकार के होते है।
(1) वास्तविक संसाधन:- वे संसाधन या वस्तुएं जिनका प्रयोग हम हर समय कर रहे हैं। जिनकी मात्रा या संरचना हमें ज्ञान है। वास्तविक संसाधन कहलाते हैं। जैसे-: ... महाराष्ट्र में काली मिट्टी की माना, जर्मनी में कोयले की मात्रा, पश्चिम एशिया में खनिज तेल की मात्रा
(2) संभाव्य संसाधन:- वे संसाधन या वस्तुष्टं जिनकी निश्चित माना था संरख्या का हम पत्ता नहीं लगा सकते हैं।
संभाव्य संसाधन:- वर्तमान में हम इनका प्रयोग नही कर रहे हैं। परन्तु आगे आने वाले
समय में कर सकते है।, संभाव्य संसाधन कहलाती है। जैसे: लाख
में पाया गया यूरेनियम भी एक संभाव्य संसाधन है।
जैव संसाधन:- सजीव या जीवित वस्तुएं जैव संसाधन कहलाती है। जैसे-: जीव-जन्तु पेड़-पौधे, मनुष्य आदि,
अजैव संसाधन:- जो वस्नु जीवित नहीं है, अजैव संसाधन कहलाती है।
जैसे- वायु , मृदा, प्रकाश
वितरण के आधार पर
संसाधन:-
सर्वव्यापक:- जो वस्तुएँ सभी जगह पायी जाती है। तथा
आसानी से उपलब्ध हो जाती है। सर्वव्यापक संसाधन कहलाती है। उदाहरण - वायु आदि
स्थानिक:- जो वस्तुएँ कुछ गिने- धुने स्थानों पर ही पायी जाती है। स्थानिक संसाधन कहलाते
हैं। उदाहरसा- ताँबा, लौह अयस्क आदि
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